यह कहते हुए कि ‘मेरे पास अब समय नहीं है,’ उम्रदराज कांग्रेस अध्यक्ष सीताराम केसरी ने 90 के दशक में बारी-बारी से अकारण केंद्र की दो सरकारें गिरवा दी थीं. ऐसा उन्होंने खुद प्रधानमंत्री बनने के लिए किया. पर सफल नहीं हो सके.
गुजराल सरकार को गिराने की कहानी प्रणब मुखर्जी ने अपनी किताब में बताई है. पर केसरी उससे पहले एच.डी देवगौड़ा की सरकार भी गिरवा चुके थे. संयुक्त मोर्चा की ये सरकारें कांग्रेस के बाहरी समर्थन पर चल रही थीं. केसरी ने देवगौड़ा पर आरोप लगाया कि ‘देवगौड़ा सांप्रदायिक शक्तियों को रोकने में विफल रहे.’
जब केसरी ने राजीव गांधी की हत्या के लिए डीएमके को जिम्मेदार ठहराया
गुजराल पर केसरी का आरोप था कि उन्होंने डीएमके को मंत्रिमंडल से निकाल बाहर करने से इनकार कर दिया जबकि जैन आयोग की रिपोर्ट के अनुसार राजीव गांधी की हत्या में डीएमके का हाथ था. जबकि, जैन आयोग ने अभी अंतरिम रिपोर्ट दी थी. बाद में फाइनल रिपोर्ट में जैन आयोग ने डीएमके को क्लीन चिट दे दी.
देवगौड़ा को हटाने की कोशिश के दिनों में तो केसरी जी मेहरौली के छत्तरपुर मंदिर में पूजा भी कर आए थे. पर पूजा भी काम नहीं आई. देवगौड़ा सरकार से कांगेस का समर्थन वापस लेने की घोषणा की खबर सुनकर लोकसभा में कांग्रेस के नेता शरद पवार ने 30 मार्च 1997 को कहा कि ‘यह निर्णय मेरे लिए अप्रत्याशित है.’
याद रहे कि एच.डी देवगौड़ा 1 जून 1996 से 21 अप्रैल 1997 तक प्रधानमंत्री रहे. आई.के गुजराल का कार्यकाल 21 अप्रैल 1997 से 19 मार्च 1998 तक रहा. 1998 में लोकसभा का मध्यावधि चुनाव हो गया और बीजेपी सत्ता में आ गई. आई.के गुजराल मंत्रिमंडल को सन् 1997 में एक ऐसे आरोप में इस्तीफा देने के लिए बाध्य कर दिया गया था जिस आरोप में कोई दम ही नहीं था.
गुजराल मंत्रिमंडल के पतन का प्रकरण इस देश के इतिहास में एक ऐसा प्रकरण है जिससे शिक्षा मिलती है. वह शिक्षा यह है कि किसी न्यायिक आयोग की भी मात्र अंतरिम रिपोर्ट के आधार पर कोई निर्णय नहीं किया जाना चाहिए.
याद रहे कि राजीव गांधी हत्याकांड की परिस्थितियों की जांच के लिए जैन आयोग बनाया गया था. वह एक न्यायिक आयोग था. उससे उम्मीद की जाती थी कि वह जिम्मेदाराना तरीके से जांच रिपोर्ट देगा. पर उसने अपनी अंतरिम रिपोर्ट में यह कह दिया कि राजीव गांधी हत्याकांड में द्रविड़ मुनेत्र कड़गम का भी हाथ था. सन् 1997 में जब यह अंतरिम रिपोर्ट आई, उस समय डीएमके के तीन मंत्री गुजराल सरकार में थे.
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गुजराल ने उन मंत्रियों को हटाने से मना कर दिया. केसरी ने इसकी मांग की थी. पर, गुजराल सरकार को गिराने का नुकसान खुद कांग्रेस को सालों तक भुगतना पड़ा. वह प्रत्यक्ष या परोक्ष सत्ता से अगले छह साल तक दूर रही. याद रहे कि गुजराल सरकार के पतन के बाद अटल बिहारी वाजपेयी 6 साल तक प्रधानमंत्री रहे.
केसरी का बहाना यह था कि डीएमके भी राजीव गांधी हत्याकांड के लिए जिम्मेदार है और प्रधानमंत्री उस दल के मंत्रियों को अपने मंत्रिमंडल से नहीं हटा रहे हैं. गुजराल व उनके सहयोगी दलों ने इस मामले में यह रुख अपनाया कि जैन आयोग की अतार्किक रिपोर्ट को आधार बना कर डीएमके मंत्रियों को नहीं हटाया जाएगा. जैन आयोग ने अपनी अंतरिम रिपोर्ट में डीएमके की संलिप्तता का कोई सबूत ही नहीं दिया था. बाद के सालों में डीएमके और कांग्रेस ने मिलकर चुनाव भी लड़ा और मनमोहन सरकार में भी डीएमके शामिल रहा.
राजीव गांधी की हत्या के समय चंद्रशेखर प्रधानमंत्री थे
गुजराल सरकार से समर्थन वापस लेने के कांग्रेस के निर्णय की सूचना राष्ट्रपति को देते हुए कांग्रेस अध्यक्ष सीताराम केसरी ने जैन आयोग की टिप्पणियों की पृष्ठभूमि में लिखा ‘मैं जोर देकर कहना चाहूंगा कि हम एलटीटीई को तमिलनाडु में मजबूत बनाने के लिए सारी तमिल जनता को जिम्मेदार नहीं मानते हैं. यह तो डीएमके पार्टी का एक वर्ग और उसका प्रमुख नेतृत्व ही एलटीटीई की राष्ट्रविरोधी और आतंकवादी गतिविधियों को बढ़ावा देने में लगा हुआ था. खासकर 1987 के भारत-श्रीलंका समझौते के बाद.’
जैन आयोग की विवादास्पद अंतरिम रिपोर्ट पर इस देश के कुछ प्रमुख नेताओं ने भी खूब बयानबाजी की. कांग्रेस कार्यसमिति के सदस्य अर्जुन सिंह ने राजीव गांधी की हत्या के लिए वी.पी सिंह, चंद्र शेखर और करुणानिधि को जिम्मेदार ठहरा दिया. इसके जवाब में वी.पी सिंह ने कहा कि ‘उनकी हत्या के लिए कांग्रेसी नेता और कार्यकर्ता जिम्मेदार थे जिन्होंने आत्मघाती मानव बम को राजीव गांधी के पास आने दिया. उन्होंने यह भी कहा कि राजीव गांधी ने ही तो तमिल मुक्ति चीतों को धन व हथियार से मदद की थी.’
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इस विवाद पर चंद्र शेखर ने कहा कि वी.पी सिंह की सरकार ने राजीव गांधी से एस.पी.जी सुरक्षा नहीं हटाई थी, बल्कि कानून के तहत वी.पी सिंह प्रतिपक्ष के नेता को एस.पी.जी सुरक्षा नहीं दे सकते थे. यह कानून तभी बना था जब राजीव गांधी प्रधानमंत्री थे. राजीव गांधी ने एस.पी.जी सुरक्षा का कानूनी प्रावधान सिर्फ प्रधानमंत्री के लिए कराया था.
याद रहे कि राजीव गांधी की जब हत्या हुई थी तब चंद्रशेखर प्रधानमंत्री थे. चंद्रशेखर ने राजीव गांधी की सुरक्षा की कमी के आरोप का जवाब देते हुए कहा था कि ‘अगर कांग्रेस या राजीव गांधी कहते तो उनकी सुरक्षा में और अधिकारी लगाए जा सकते थे. रेणुका चौधरी ने मुझे फोन किया था कि मेरा कारखाना जलाया जा रहा है और हो सकता है कि थोड़ी देर में घर में आग लगाने के लिए लोग आ जाएं. इस पर मैंने 15 मिनट के भीतर सेना की एक टुकड़ी तैनात करा दी थी.’
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