चार्ल्स डार्विन का नाम आते ही सबसे पहले हमें एक ही बात याद आती है कि इंसान के पूर्वज बंदर थे. बंदर से इंसान बनने के तथाकथित क्रमिक विकास की एक फोटो भी अलग-अलग समय पर शेयर होती है. सोशल मीडिया पर इस तस्वीर को लेकर काफी जोक्स भी बने हैं.
आज के बाद विज्ञान की कसम खाकर आपकी चप्पल चुराने वाले बंदर को अपना परदादा, लकड़दादा मानना बंद कर दीजिए क्योंकि डार्विन के सिद्धांत ने ये कभी नहीं कहा कि हमारे और आपके पूर्वज बंदर थे.
तो कहा क्या है डार्विन ने?
डार्विन 4-5 साल बीगल नाम के जहाज पर घूमे. इस सफर में उन्होंने कई रोचक जगहों के बारे में खूब नोट्स बनाए. बाद में किताब लिखी, ‘ओरिजिन ऑफ द स्पिशीज’. किताब के हिसाब से क्रमिक विकास में एक प्रजाति के जानवरों में कुछ जमीन पर रहने लगे, कुछ पेड़ों पर बस गए. इसके चलते उनके अंग उसी हिसाब से विकसित हो गए. लाखों सालों में ये अंतर इतना बढ़ गया कि प्रजातियां एक दूसरे से बिलकुल अलग हों गईं.
मतलब, आपके और आपके शहर के चिड़ियाघर में बंद चिंपैंजी के परदादा के परदादा के दादा... (भावना समझ लें) एक ही थे. एक बेटा पेड़ पर रहने लगा. एक जमीन पर सीधा चलकर खेती बाड़ी में लग गया. तो जनाब बंदर, ओरांग उटांग, चिंपैंजी वगैरह आपके बेहद दूर के मौसेरे, ममेरे, फुफेरे चचेरे भाई हुए न कि पूर्वज. ये भी कह सकते हैं कि आदमियों और बंदरों के पूर्वज एक हैं.
सबसे योग्य ही जिंदा रहता है
‘Survival of the fittest’ इस वाक्य को डार्विन की सर्वाइवल थ्योरी की तरह खूब इस्तेमाल किया जाता है. मगर असल में ये फ्रेज पश्चिमी दार्शनिक हर्बर्ट स्पेंसर का लिखा हुआ है. डार्विन ने बताया था कि प्रकृति सबसे योग्य का चुनाव करती है.
मतलब अफ्रीका में पहले लंबी और छोटी गर्दन वाले जिराफ होते थे. वहां की जलवायु में ऊंचे-ऊंचे पेड़ ही होने लगे तो छोटी गर्दन वाले जिराफ मर गए और लंबी गर्दन वाले बचे रहे. हालांकि डार्विन इस बात का कोई स्पष्टीकरण नहीं दे पाए कि दो तरह की गर्दन वाले जिराफ विकसित ही क्यों हुए.
अकेले डार्विन का ही नहीं था एवोल्यूशन का सिद्धांत
ब्रिटेन के वेल्स में पैदा हुए वैज्ञानिक अल्फ्रेड वॉलेस का भी डार्विन की विकास की थ्योरी में योगदान है. वॉलेस लंबे समय तक दुनिया भर में घूमे और अपनी रिसर्च की. डार्विन के साथ उनका पत्राचार होता था.
बताया जाता है कि डार्विन 'थ्योरी ऑफ एवोल्यूशन' को दुनिया के सामने रखने में डर रहे थे क्योंकि उन्हें चर्च के विरोध का डर था. वॉलेस ने डार्विन को प्रेरित किया. पहली बार जब ये थ्योरी दुनिया के सामने आई तो इसमें दोनों का नाम था. वॉलेस को जीव विज्ञान की दुनिया में उनके काम का क्रेडिट मिलता है मगर आम जनता में डार्विन ही लोकप्रिय हैं.
(हम ये लेख पुन: प्रकाशित कर रहे हैं)
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