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न्यूटन से कुछ कम बड़ी नहीं है ब्रह्मगुप्त की देन

ब्रह्मगुप्त के गणित के सिद्धांतों को मान्यता मिली हुई है. उन्हें हाशिए पर नहीं मानकर सनसनी नहीं फैलाई जा सकती

Updated On: Jan 10, 2018 03:07 PM IST

Animesh Mukharjee Animesh Mukharjee

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न्यूटन से कुछ कम बड़ी नहीं है ब्रह्मगुप्त की देन

हिंदी में कुछ क्रियाएं हैं, फेंकना, छिड़कना या फिर उलट देना. इन क्रियाओं की बात छोड़िए, गौर करिए कि राजस्थान के शिक्षा मंत्री वासुदेव देवनानी का कहना है कि गुरुत्वाकर्षण का सिद्धांत न्यूटन ने नहीं ब्रह्मगुप्त ने दिया था.

मंत्री जी ने गुरुत्वाकर्षण का सिद्धांत किस तरह और कहां पढ़ा वो पता नहीं, मगर न्यूटन के सिद्धांत का एक सूत्र है. न्यूटन का गुरुत्वाकर्षण सिद्धांत सिर्फ इतना नहीं है कि चीजें गुरुत्वाकर्षण की वजह से धरती पर गिरती हैं. g और G दो तरह के गुरुत्वीय बल हैं. इनसे जुड़े अलग-अलग कई सूत्र हैं जिनसे फिजिक्स की तमाम चीजें पता चली हैं. न्यूटन की बात से हटकर ब्रह्मगुप्त की बात करते हैं.

क्या है ब्रह्मगुप्त का योगदान?

अगर आप पूछेंगे गुरुत्वाकर्षण सिद्धांत? तो जवाब होगा पता नहीं. ब्रह्मगुप्त ने क्या वास्तव में थ्योरी ऑफ ग्रैविटी पर कुछ लिखा था हम इतनी जल्दी नहीं बता सकते, मगर उन्होंने दुनिया को वो सिद्धांत दिया जिसके दम पर हम दुनिया भर में अपनी तारीफ करते रहते हैं. ज़ीरो. ब्रह्मगुप्त की सबसे बड़ी देन ज़ीरो है. अगर आप वॉट्सऐप से आए ज्ञान के जरिए आर्यभट्ट को ज़ीरो की खोज का श्रेय देते हैं तो जानकारी दुरुस्त कर लीजिए. आर्यभट्ट ने ग्रहों से जुड़े कई सिद्धांत दिए, पाई (जिससे गोले और वृत का क्षेत्रफल मापा जाता है) का कॉन्सेप्ट दिया. मगर ज़ीरो की खोज ब्रह्मगुप्त ने की.

ब्रह्मगुप्त ने शून्य का आधुनिक रूप दिया मतलब वही 0 गोल-गोल ज़ीरो. ब्रह्मगुप्त ने शून्य के चार सिद्धांत दिए. इनमें से 3 सही हैं और एक गलत. ब्रह्मगुप्त के अनुसार-

किसी भी चीज़ में शून्य को जोड़ने पर वो वैसी ही रहती है. क + 0 = क

किसी भी संख्या में शून्य हटाने पर वो वैसी ही रहती है. क - 0 = क

किसी भी चीज़ में ज़ीरो का गुणा करने पर वो ज़ीरो हो जाती है. क X 0 = 0

किसी चीज़ में शून्य से भाग देने पर वो ज़ीरो हो जाती है. क / 0 = 0

किसी भी चीज़ में शून्य से भाग देने पर वो शून्य नहीं अनंत हो जाती है. ब्रह्मगुप्त यहां पर गलत थे. अगर आपके भारतीय स्वाभिमान को इससे ठेस पहुंची हो तो जान लीजिए कि इस गलती को भास्कराचार्य नाम के दूसरे गणितज्ञ ने अपनी किताब लीलावती में सही किया.

इसके अलावा ब्रह्मगुप्त ने द्विघाती समीकरण (क्वार्डिटिक इक्वेशन) में दो हल (आंसर) होने की संभावना की बात भी कही. इसके अलावा ब्रह्गुप्त ने टिग्नोमेट्री पर भी काफी काम किया.  उन्होंने पाई को अंडररूट 10 के बराबर माना. जो लगभग सही मान है. इसके अलावा भी उन्होंने एक चक्रीय चतुर्भुज के लिए एक फॉर्मुला दिया जो ब्रह्मगुप्त का फॉर्मूला ही कहलाता है.

भारतीय गणितज्ञों ने जो खोज की वो संस्कृत के श्लोक की तरह लिखी हैं. आधुनिक गणित की तरह नहीं. इसलिए उनकी खोज सदियों तक आम गणितज्ञ इस्तेमाल नहीं कर पाए. संस्कृत सिर्फ पंडितों की भाषा रहेगी, जैसी आदतों ने इन लोगों के काम को सदियों पीछे ही रहने दिया. आज ये सिद्धांत आधुनिक गणित से बहुत पीछे रह गए हैं, क्योंकि उनपर हजारो सालों में काम ही नहीं होने दिया गया. जाति की श्रेष्ठता से हुए सबसे बड़े नुकसानों में ये भी एक है.

इसके बाद एक और समस्या है. नीम हकीम खतरा-ए-जान. जो दूसरे का है उसे उसी का रहने दें. न्यूटन ने संस्कृत नहीं पढ़ी थी. उन्होंने अपनी खोज खुद की, उसे विकसित किया, पूरा जीवन दिया. उनके समाज और लोगों ने उसे आगे बढ़ाया. 'जब ज़ीरो दिया मेरे भारत ने' गाने फिल्मों में अच्छे लगते हैं. देश की शिक्षा व्यवस्था में नहीं. हजार साल पहले किसी विद्वान ने क्या श्लोक कहा था पता नहीं. मगर देश में प्राइमरी से लेकर उच्च शिक्षा की हालत खराब है. प्राइमरी के स्कूलों की खबर पढ़ाई से ज्यादा मिड डे मील से बनती है और यूनिवर्सिटी की देशद्रोह और अमेरिकी कंपनियों के पैकेज की खबरों से. बाकी सब ठीक है.

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