अगर जाकिर हुसैन को हम हिंदुस्तानी शास्त्रीय संगीत का सुपरस्टार कहें, तो आप कहेंगे ‘अरे हुज़ूर, इंडिया का सुपरस्टार नहीं ग्लोबल सुपरस्टार कहिए’. कुछ ऐसा ही जलवा है जाकिर हुसैन का, जिनकी अंगुलियां जब तबले पर रक्स करती हैं तो सुनने वाला कह उठता है- वाह! उस्ताद वाह.
ये जाकिर हुसैन की लोकप्रियता ही है कि वो दुनिया के सबसे ज्यादा प्यार पाने वाले कलाकारों में शुमार हैं. उनकी अंगुलियों और तबले में गजब का मेल है. उस्ताद जाकिर हुसैन उन चंद कलाकारों में से हैं जिन्होंने लोकप्रियता के पैमाने पर अपने उस्ताद और वालिद उस्ताद अल्लारखा खां साहब को भी पीछे छोड़ दिया.
सालों पहले हिंदुस्तान के जन-जन ने बाप-बेटे को दूरदर्शन पर एक वीडियो में जुगलबंदी करते हुए देखा था. वो सफर आज बहुत आगे निकल गया है. पूरी दुनिया में आज तबले के कलाकारों की फेहरिस्त उस्ताद जाकिर हुसैन के नाम के साथ शुरू होती है. दुनिया भर के बड़े से बड़े नामी कलाकारों के साथ मंच की शोभा बढ़ा चुके उस्ताद जाकिर हुसैन आज 67 साल के हो गए हैं.
जब पंडित रविशंकर के साथ अल्लारखा खां ने तबला बजाया
करीब तीन साल की उम्र थी जाकिर हुसैन की, जब अब्बा ने उन्हें पखावज सीखाना शुरू किया था. अब्बा उस्ताद अल्लारखां खां हिंदुस्तान के जाने-माने कलाकार थे. उनकी तालीम और जाकिर हुसैन की काबिलियत थी जल्दी ही जाकिर हुसैन ने तमाम कार्यक्रमों में शिरकत करना शुरू कर दिया.
11-12 साल की उम्र तक आते-आते जाकिर हुसैन तबले पर अपने विस्तार को दिखाना शुरू कर चुके थे. जाकिर हुसैन जब 18 बरस के रहे होंगे तब लंदन में होने वाले संगीत समारोह ‘वुडफेस्ट’ में पंडित रविशंकर के साथ उनके अब्बा अल्लारखा खां साहब ने तबला बजाया.
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भारतीय शास्त्रीय संगीत की आज जो पूरी दुनिया में गूंज है, उसके पीछे उस कार्यक्रम का बड़ा रोल है. पंडित रविशंकर और अल्लारखा खां की उस जुगलबंदी ने अंग्रेजों को भी हिंदुस्तानी संगीत का दीवाना बना दिया था. आज इतने बरस बीत जाने के बाद भी पूरी दुनिया में उस तरह के आले दर्जे का संगीत समारोह शायद ही कहीं होता हो. जाहिर है इन बातों का असर जाकिर हुसैन पर भी पड़ा.
उन्होंने बचपन से बड़े होने तक में यही देखा कि कला की साधना और काबिलियत का संगम संगीत प्रेमियों के सिर पर चढ़कर बोलता है. 1987 का साल था, जब जाकिर हुसैन का पहला सोलो एलबम ‘मेकिंग म्यूजिक’ रिलीज हुआ था. इस एल्बम ने उन्हें एक अलग पहचान दिलाई. पहली बार संगीतप्रेमियों ने इसी एल्बम में ताल-वाद्य में पश्चिमी देशों के संगीत के साथ हिंदुस्तानी संगीत का अद्भुत संयोग पाया.
इसके बाद आने वाले सालों में जाकिर हुसैन की लोकप्रियता का ग्राफ बढ़ता ही चला गया. वो तमाम भारतीय दिग्गज कलाकारों के चहेते संगीतकार बन गए. उनके सोलो कार्यक्रमों की धूम मचने लगी. उन्होंने पूरी दुनिया के कलाकारों के साथ तबले की जुगलबंदी की. कार्यक्रमों के साथ-साथ अंग्रेजी फिल्म ‘ऐपोकेल्पस नाव इन कस्टडी’, ‘द मिस्टिक मेजर, हिट एंड डस्ट, और ‘लिटिल बुद्ध’ जैसी फिल्मों में उन्हें सुनने का मौका मिला. उन्होंने पश्चिमी देशों के तमाम पॉपुलर बैंड्स के साथ भी प्रस्तुतियां दी. इसी दौरान उन्होंने हिंदी फिल्मों में अभिनय में भी हाथ आजमाया.
जाकिर हुसैन ने एक कार्यक्रम में तबले पर घोड़ों की टाप सुनाई
ये कहानी दिलचस्प है. 90 के दशक में जाकिर हुसैन ने सई परांजपे की बनाई फिल्म साज में अभिनय भी किया. इस फिल्म में संगीत भी उनका ही था. शबाना आजमी के ‘अपोजिट’ जाकिर हुसैन का अभिनय देखना दिलचस्प था. कहते हैं कि ये फिल्म भारत रत्न से सम्मानित गायिका लता मंगेशकर और उनकी बहन आशा भोंसले संबंधों पर आधारित थी. फिल्म इंडस्ट्री में ऐसी चर्चा खूब रही है कि लता मंगेशकर की वजह से आशा भोंसले को वो मुकाम हासिल नहीं हुआ जिसकी वो हकदार थीं. हालांकि आशा भोंसले ने ना सिर्फ इस बात का खंडन किया है बल्कि उन्होंने फिल्म की आलोचना भी की थी.
खैर, हम लौटते हैं उस्ताद जाकिर हुसैन की कहानी पर. करीब एक दशक पुरानी बात होगी उस्ताद जाकिर हुसैन ने एक कार्यक्रम में तबले पर घोड़ों की टाप सुनाई. बिजली के कड़कने और बारिश होने की आवाज सुनाई. ये बात ध्यान देने की है कि उन्होंने इस दौरान शास्त्रीयता को पूरी शिद्दत के साथ बरता.
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ऐसे प्रयोगों के अलावा तबले पर डमरू की आवाज सुनाते सुनाते जाकिर हुसैन कब श्रोताओं को भगवान शिव के करीब ले जाते हैं पता ही नहीं चलता है. ऐसी गैर परंपरागत प्रस्तुतियों के जरिए वो ध्वनि की अलग परिभाषा गढ़ते हैं. इस बात के सैकड़ों लोग गवाह मिल जाएंगे जब उस्ताद जाकिर हुसैन तबला बजा रहे हैं और उनके साथ बैठे संगत कलाकार सिर्फ उन्हें और उनकी अंगुलियों को देख रहे हैं. संगत कलाकारों की आंखों और चेहरे पर अचरज के भाव है, मन के भीतर ये सवाल है कि आखिर जाकिर हुसैन कर क्या रहे हैं.
इस दौरान उस्ताद जाकिर हुसैन के चेहरे पर बस हल्की सी मुस्कान होती है. शायद वो कहना चाहते हैं कि यही संगीत की साधना है. जिस सहजता से वो ये कारनामा करते हैं उससे समझ आता है कि तबले को लेकर उनकी उपज और विस्तार किस दर्जे पर पहुंच चुके हैं.
जाकिर हुसैन ग्रैमी अवॉर्ड हासिल कर चुके हैं
विश्व स्तर पर भारतीय शास्त्रीय संगीत को पहचान दिलाने वाले कलाकारों में उनका रोल अहम है. यही वजह है कि जाकिर हुसैन जब महज 37 साल के थे तब उन्हें भारत सरकार ने पद्मश्री से सम्मानित किया. शायद सबसे कम उम्र में ये सम्मान उन्हें मिला होगा. महज 51 साल की उम्र में वो तीसरे सबसे बड़े नागरिक सम्मान पद्मभूषण से नवाजे जा चुके थे. संगीत नाटक अकादेमी अवॉर्ड उन्हें मिल चुका है. वो ग्रैमी अवॉर्ड हासिल कर चुके हैं. अमेरिका में कलाकारों को दिया जाने वाला सर्वोच्च सम्मान उन्हें मिल चुका है. इस सम्मानों की फेहरिस्त से अलग वो सुकुन और उत्साह से पूरी दुनिया के संगीतप्रेमियों का प्यार और दुआएं बटोर रहे हैं. उस्ताद जाकिर हुसैन यूं ही अपने वादन का विस्तार करते रहें ऐसी दुआ है.
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