रघुवीर सहाय को खबरों का कवि कहा जाता है. खबरों पर कविता लिखना एक जोखिम का काम है. यह जोखिम का काम इसलिए भी है क्योंकि खबरें पुरानी होने के बाद अप्रासंगिक हो जाती हैं. ऐसी स्थिति में कविता के अप्रासंगिक हो जाने का खतरा होता है. वैसे तो कई साहित्यकार हैं जो पत्रकार भी रहे हैं लेकिन खबरों पर कविता लिखने का जोखिम कुछ साहित्यकारों ने ही उठाया है. रघुवीर सहाय भी इनमें से एक हैं.
रघुवीर सहाय साहित्यकार और पत्रकार को अलग-अलग करके नहीं देखते थे. उनके लिए दोनों के काम का उद्देश्य एक ही है. वे कहते हैं- ‘पत्रकार और साहित्यकार में कोई अंतर है क्या? मैं मानता हूं कि नहीं है. इसलिए नहीं कि साहित्यकार रोजी के लिए अखबार में नौकरी करते हैं, बल्कि इसलिए कि पत्रकार और साहित्कार दोनों नए मानव संबंध की तलाश करते हैं. दोनों ही दिखाना चाहते हैं कि दो मनुष्यों के बीच नया संबंध क्या बना...’ दोनों के बीच के अंतर को बताते हुए वे कहते हैं- ‘पत्रकार के लिए यथार्थ वही है जो संभव हो चुका है. साहित्यकार के लिए वह है जो संभव हो सकता है.’
खबर के पीछे की खबर बताने वाला कवि
किसी घटना को साहित्यिक अभिव्यक्ति देने का काम रघुवीर सहाय बड़ी बखूबी से करते हैं. कोई मानवीय त्रासदी खबर क्यों बन रही है? इस बात की तह में रघुवीर सहाय अपनी कविताओं में जाते हैं. उदाहरण के लिए उनकी ये कविता देखी जा सकती है-
फिर जाड़ा आया फिर गर्मी आई फिर आदमियों के पाले से लू से मरने की खबर आई न जाड़ा ज्यादा था न लू ज्यादा वे खड़े रहते हैं तब नहीं दिखते मर जाते हैं तब लोग जाड़े और लू की मौत की खबर बताते हैं
रघुवीर सहाय खबरों के पीछे की खबर अपनी कविता में बयान करते हैं. हम अक्सर कई बार किसी भंयकर मानवीय त्रासदी के हो जाने के बाद सुनते हैं कि फलां पत्रकार ने बहुत पहले अपनी रिपोर्ट में किसी ऐसे मानवीय त्रासदी की संभावना जताई थी लेकिन तब उसकी खबर पर व्यवस्था या किसी ने सुध नहीं ली. अगर समय रहते कोई कार्रवाई होती तो दुर्घटना को टाला जा सकता था.
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रघुवीर सहाय अपनी कविताओं के माध्यम से इसी तरह की प्रक्रिया या रिपोर्टिंग को कलात्मक ढंग से पेश करते हैं. इसी तरह का एक और उदाहरण देखिए-
700 मर गए अखबार कहता है खंडहर और लाश दूरदर्शन दिखाता है बहुत-सी खबरें मेरे अंदर से आती हैं सबको चीर कर हहराती
नारी जीवन की पीड़ा को दिया स्वर
दरअसल ये खबरें समाज में घटित होने वाली सिर्फ सामान्य सी खबरें नहीं हैं. रघुवीर सहाय खबरों के पीछे की खबरों को उद्घाटित करने में यकीन रखते हैं. जीवन की सामान्य सी लगने वाली घटनाएं, जिन्हें हम बहुत ही साधारण घटना समझते हैं उसे रघुवीर सहाय अपनी कविता में इस तरह पेश करते हैं कि उस सामान्य और साधारण सी लगनी वाली घटना के पीछे का सत्य बहुत ही आसान भाषा में पाठकों के सामने आ जाती है. उदाहरण के लिए यह कविता देखेः
पढ़िए गीता बनिए सीता फिर इन सबमें लगा पलीता किसी मूर्ख की हो परिणीता निज घरबार बसाइए होंय कंटीली आंखें गीली लकड़ी सीली, तबीयत ढीली घर की सबसे बड़ी पतीली भरकर भात पसाइए इसी तरह की एक और कविता देखिएः नारी बिचारी है पुरुष की मारी है तन से क्षुदित है मन से मुदित है लपककर झपककर अंत में चित है
दोनों कविताओं में वे महिलाओं के जीवन में घटने वाली की सामान्य सी घटना के बारे में लिख रहे हैं लेकिन यह नारी जीवन की पीड़ा पूरी आत्मीयता से पेश करते हैं.
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रघुवीर सहाय की कविता में लोकतंत्र और आजादी की आकांक्षा भी है. वे बदलते हुए समय में कविता की भूमिका को नए उद्देश्यों से जोड़ते हैं. वे आजादी और लोकतंत्र के असली मायने की तलाश अपनी कविता में करते हैः
राष्ट्रगीत में भला कौन वह भारत-भाग्य-विधाता है फटा सुथन्ना पहने जिसका गुन हरचरना गाता है. मखमल टमटम बल्लम तुरही पगड़ी छत्र चंवर के साथ तोप छुड़ाकर ढोल बजाकर जय-जय कौन कराता है.
रघुवीर सहाय की कविताओं में एक तरफ समाज की परेशान हाल जिंदगी का वर्णन मिलता है, वहीं मानव मन की सहज और सुकोमल प्रवृत्तियों जैसे प्रेम, हास्य, व्यंग्य और करुणा की भी मार्मिक अभिव्यक्ति मिलती है. यही बात उनकी कविताओं को आज भी प्रासंगिक बनाती है.
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