शेर की तरह दहाड़ती हुई उनकी आवाज़ साढ़े तीन सप्तकों में फर्राटे से दौड़ती है. मुर्कियां, गमक, मींड और छूट की तानें उनकी गायकी की खासियत हैं. उनके सुरों का जादू कृष्ण की मुरली की तरह है जिसे सुननेवाले सुध-बुध बिसरा देते हैं. उन्हें जाननेवाले उन्हें रसराज कहते हैं. हमारे दौर में बहुत कम संगीतकार ऐसे हैं जिनका संगीत आपको आध्यात्म से जोड़ सकता है, किसी दैवीय लोक में पहुंचा सकता है. संगीत मार्तंड पंडित जसराज ऐसे ही गायक हैं. पंडित जसराज खुद कहते हैं कि संगीत ईश्वर से जोड़ने का ज़रिया है.
ऊं श्री अनंत हरि नारायण
मंगलम् भगवान विष्णु, मंगलम् गरुणध्वज:
मंगलम् पुंडरीकाक्ष: मंगलाय तनो हरि:
इसी श्लोक के साथ जसराज जी किसी भी राग की शुरुआत करते हैं. सबसे पहले प्रभु का नमन और फिर सुरों की अनहद यात्रा. पंडित जसराज के मुंह से राग भैरव में ‘मेरो अल्लाह मेहरबान’ सुनते हुए लगता है कि ईश्वर और अल्लाह के नाम पर फ़साद करने वाले कितने नासमझ लोग हैं.
सात साल की उम्र में जसराज जी तबला लेकर स्टेज पर उतर चुके थे
पंडित जसराज का जन्म 28 जनवरी 1930 को हरियाणा के हिसार में हुआ था. उनके घराने को मेवात घराना या मेवाती घराना कहते हैं. हालांकि पंडित जसराज का बचपन हैदराबाद में बीता. पिता पंडित मोतीराम शास्त्रीय गायक थे. जसराज जब तीन साल के थे तभी से पिता ने उनमें सुर संस्कार डालना शुरू कर दिया. बात 1934 की है. जसराज जी तब चार साल के हो गए थे. हैदराबाद में पिता पंडित मोतीराम का एक कॉन्सर्ट होना था और इसी कॉन्सर्ट में पंडित मोतीराम को हैदराबाद के निजाम नवाब उस्मान अली खान के दरबार में दरबारी गायक घोषित किया जाना था. लेकिन दुर्भाग्य से कॉन्सर्ट से करीब पांच घंटे पहले उनका देहांत हो गया. पिता के गुज़र जाने के बाद बालक जसराज की तालीम की जिम्मेदारी ली उनके बड़े भाई पंडित मणिराम जी ने.
उन्होंने बचपन में जसराज जी को तबला सिखाया. मंझले भाई पंडित प्रताप नारायण भी शास्त्रीय गायक थे, उन्होंने जसराज जी को तबला सिखाया और अपने साथ संगत पर ले जाना शुरू कर दिया. सात साल की उम्र में जसराज जी तबला लेकर स्टेज पर उतर चुके थे. धीरे-धीरे तबले पर उनका हाथ काफी अच्छा हो गया. पंडित जसराज अपने एक इंटरव्यू में बताते हैं कि एक बार जाने-माने गायक पंडित कुमार गंधर्व की लाहौर रेडियो स्टेशन में रिकॉर्डिंग थी. जसराज भी अपने बड़े भाई के साथ किसी प्रोग्राम के सिलसिले में लाहौर में थे.
पंडित कुमार गंधर्व तबला संगत के लिए जसराज को अपने साथ ले गए. इस रिकॉर्डिंग में कुमार जी ने राग भीमपलासी गाया था. रिकॉर्डिंग के दूसरे दिन कुमार जी की गायकी को लेकर पंडित अमरनाथ और जसराज जी के बड़े भाई के बीच कुछ चर्चा चल रही थी, इसमें जसराज अपनी राय देने लगे. जवाब में बड़े भाई से तीखी झिड़की मिली- जसराज, तुम मरा हुआ चमड़ा बजाते हो, तुम्हें रागदारी का क्या पता? इससे जसराज जी को बहुत धक्का पहुंचा. लेकिन वो बताते हैं कि बड़े भाई ने दूसरे दिन से ही उनके गाने की तालीम शुरू कर दी. ये नंद उत्सव का दिन था.
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जसराज ने प्रतिज्ञा ली कि जब तक गाना सीख नहीं लूंगा बाल नहीं कटवाउंगा. सात साल तक उन्होंने अपने बाल नहीं कटवाए. उन्होंने बाल तब कटवाए जब ऑल इंडिया रेडियो में उनकी पहली रिकॉर्डिंग हुई. उन्होंने इस प्रोग्राम में राग कौंसी कान्हड़ा गाया था.
जसराज बचपन में ग़ज़ल गायिका बेग़म अख़्तर की आवाज़ के बड़े मुरीद थे. वो खुद बताते हैं कि स्कूल जाते समय रास्ते में एक रेस्टोरेंट पड़ता था. वहां बेग़म की एक ही ग़ज़ल चलती रहती थी- दीवाना बनाना है तो दीवाना बना दे, वरना कहीं तकदीर तमाशा ना बना दे. ये गज़ल सुनकर जसराज दीवाने हो गए और उन्होंने पक्का कर लिया कि गाना ही गाना है. अपने बड़े भाइयों से, खासतौर पर पंडित मणिराम जी से वो संगीत सीखते रहे. 1960 में पटियाला घराने के गायक उस्ताद बड़े गुलाम अली खान बीमार पड़े.
मधुरा से उनकी मुलाकात 1955 में हुई थी
जसराज जी उनसे मिलने अस्पताल गए तो खान साहब ने उनसे कहा मेरे शागिर्द बन जाओ. इतने बड़े गुरु से ये ऑफर सुनकर पंडित जसराज को आश्चर्य और खुशी तो हुई लेकिन उन्होंने बड़ी विनम्रता से जवाब दिया- ‘चचाजान, मैं आपका शागिर्द नहीं बन सकता, आपसे गाना सीखना मेरी तकदीर में नहीं है, मैं अपने बाप की गायकी को ज़िंदा करना चाहता हूं’. पंडित जसराज बताते हैं कि ये सुनकर बड़े ग़ुलाम अली ख़ां साहब रो पड़े. बोले- ‘देख बेटा, तेरा बाप था जो मुझे संगीत में लेकर आया, मैं तो पहलवान था’. खां साहब वैसे से दिग्गज गायकों के घराने से थे, लेकिन शुरुआत में वो पहलवानी करते थे.
जसराज जी ने हवेली संगीत पर बहुत काम किया है और एक से बढ़कर एक बंदिशें बनाई हैं. पंडित जसराज कुछ बहुत ही रेयर राग गाते हैं, मसलन- चारजू की मल्हार, अबीरी तोड़ी, भवसाख, देवसाख, गुंजी कान्हड़ा वगैरह. 1962 में जसराज जी की शादी हुई जाने-माने फिल्म निर्देशक वी शांताराम की बेटी मधुरा से. मधुरा से उनकी मुलाकात 1955 में हुई थी जब वी शांताराम झनक-झनक पायल बाजे की शूटिंग कर रहे थे.
शादी के बाद पंडित जसराज अपनी पत्नी के साथ कोलकाता में रहने लगे. वहीं उनके बेटे शारंग देव और बेटी दुर्गा जसराज का जन्म हुआ. शारंग देव म्यूजिक कंपोजर हैं और दुर्गा जसराज टेलीविजन पर एंकरिंग करती रही हैं. इसके अलावा वो शास्त्रीय संगीत के प्रचार प्रसार की दिशा में कई महत्वूर्ण प्रोजेक्ट्स करती हैं. पत्नी मधुरा खुद भी बहुत प्रतिभाशाली हैं. उन्होंने कई डॉक्यूमेंट्री और बाल-नाटकों का निर्देशन किया है. पंडित जसराज को साल 2000 में भारत सरकार ने पद्मविभूषण सम्मान दिया. पंडित जी ऐसे ही गाते रहें और लोगों की जिंदगी में संगीत का रस घोलते रहें, यही दुआ है.
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