ये दिलचस्प संयोग ही है कि 24 दिसंबर को रफी साहब का जन्म हुआ था और आज यानी 25 दिसंबर को नौशाद साहब का. दोनों बाकमाल दोस्त थे. दोनों ने एक दूसरे के साथ खूब काम किया. दोनों ने फिल्म इंडस्ट्री को एक से बढ़कर शानदार गीत दिए.
25 दिसंबर 1919 को लखनऊ में पैदा हुए नौशाद साहब का संगीत सफर चुनौतियों से भरा रहा. उन्होंने कई रातें भूखे पेट काटी हैं. फिर वो दौर भी आया जब नौशाद साहब ने मिट्टी को भी हाथ लगाया तो वो सोना हो गई.
नौशाद साहब के बेहतरीन संगीत की बदौलत तमाम फिल्मों को सफलता मिली. उन्हें फिल्मफेयर से लेकर दादा साहब पुरस्कार से सम्मानित किया गया. भारत सरकार ने उन्हें पद्मभूषण से नवाजा. 5 मई 2006 को उनका इंतकाल हुआ.
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उनकी याद में डाक टिकट भी रिलीज किया गया था. आपको नौशाद साहब की जिंदगी के 10 अनसुने किस्से सुनाते हैं:
• नौशाद साहब बचपन में एक म्यूजिक इंस्ट्रूमेंट्स की एक दुकान में सिर्फ इस मकसद से काम करते थे कि दुकान के मालिक की गैरमौजूदगी में उन्हें हारमोनियम बजाने का मौका मिल जाता था.
एक रोज उनकी ये चोरी पकड़ी गई. दुकान के मालिक ने बड़ी खूबसूरत सजा दी. पहले तो उन्होंने नौशाद को डांटा और उसके बाद कहा कि सजा के तौर पर वो हारमोनियम घर ले जाएं और रियाज करें.
इतना ही नहीं दुकान के मालिक ने अगले ही रोज नौशाद की मुलाकात रॉयल सिनेमा में ऑर्केस्ट्रा बजाने वाले कलाकार से भी करवा दी. इसके बाद से नौशाद के लिए रॉयल सिनेमा में एंट्री फ्री हो गई.
• नौशाद साहब के पिता कचहरी में काम करते थे. उन्हें संगीत से कोई लगाव नहीं था. अलबत्ता उन्हें इस बात से नाराजगी जरूर थी कि नौशाद देरी से घर क्यों आते हैं. इसी डर के चलते नौशाद कई बार घर पहुंचने के बाद बगैर खाना खाए सो जाते थे. जिससे घर में आवाज ना हो.
बावजूद इसके यहां भी एक रोज नौशाद की चोरी पकड़ी गई. घर में घुसते ही पिता सामने खड़े थे. उन्होंने गुस्से में नौशाद का हारमोनियम घर के बाहर फेंक दिया और कहा कि वो बिना हारमोनियम के अंदर आना चाहें तो आ सकते हैं. नौशाद ने घर के बजाए हारमोनियम यानी अपने संगीत को चुना और घर छोड़कर मुंबई चले गए.
• नौशाद साहब के मुंबई के शुरूआती संघर्ष का अंत तब हुआ जब उन्हें एक म्यूजिक कंपनी में नौकरी मिली. इस नौकरी के लिए उस्ताद झंडे खान जैसे दिग्गज कलाकार ने नौशाद साहब को चुना था.
इंटरव्यू के दौरान जब उन्होंने नौशाद से कुछ सुनाने को कहा तो उन्होंने जवाब दिया कि इतने बड़े उस्ताद के सामने उनकी सुनाने की क्या मजाल वो तो बस इसी बहाने उनके दर्शन के लिए आ गए थे.
बहुत कहने पर नौशाद साहब ने पियानो पर कुछ सुनाया. उन्हें कतई इस बात की उम्मीद नहीं थी कि उन्हें इस काम के लिए चुना जाएगा लेकिन कुछ रोज बाद उनकी नियुक्ति की चिट्ठी आ गई.
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• नौशाद साहब के फिल्मी संगीत में शास्त्रीय संगीत की अद्भुत खुशबु आती है. उन्होंने खुद भी बाकायदा शास्त्रीय संगीत की तालीम ली थी. उनके शुरूआती गुरूओं में बब्बन साहब और यूसुफ अली खां का नाम लिया जाता है.
उन्होंने अलग अलग शास्त्रीय संगीत पर आधारित तमाम फिल्मी गाने बनाए. शास्त्रीय राग केदार उनका पसंदीदा राग था. इसके अलावा उन्होंने अपने संगीत में हिंदुस्तान के लोक संगीत का शानदार इस्तेमाल किया था.
• हिंदुस्तान के फिल्म इतिहास की अमर फिल्म ‘पाकीजा’ के संगीत में भी नौशाद साहब का योगदान था. गुलाम मोहम्मद साहब के इंतकाल के बाद नौशाद ने ही उस फिल्म का संगीत पूरा किया था. दिलचस्प बात ये है कि उस बचे हुए संगीत पक्ष में उन्होंने हिंदुस्तानी लोकसंगीत का जमकर इस्तेमाल किया था. जो बैकग्राउंड में बजते थे.
• फिल्म कोहिनूर में दिलीप कुमार पर गाना फिल्माया जाना था- मधुबन में राधिका नाचे रे. इस गाने की रिकॉर्डिंग से पहले नौशाद साहब ने दिलीप कुमार को सितार बजाना सिखाया था. जिससे इस गाने की खूबसूरती और निखर गई.
नौशाद साहब ने ही पहली बार केएल सहगल को कहा था कि वो बगैर शराब पिए गाना गाएं. उससे पहले केएल सहगल बिना शराब पिए गाना नहीं गाते थे. जब नौशाद साहब ने उन्हें ये प्रस्ताव दिया तो पहले वो घबराए. उन्हें डर था कि बिना शराब पिए गाने पर वो बेसुरे लगेंगे. लेकिन नौशाद साहब के विश्वास देने पर ही उन्होंने रिकॉर्डिंग की.
वो गाना था- जब दिल ही टूट गया हम जी कर क्या करेंगे.
• संगीतकार के साथ साथ नौशाद साहब एक कमाल के शायर भी थे. उन्होंने जो गज़लें कहीं वो लाजवाब हैं. उन्होंने अपने दोस्तों को जेहन में रखकर भी शेर कहे.
रफी साहब के इंतकाल के बाद उन्होंने कहा था – कहता है दिल कि दिल गया, दिलबर चला गया. साहिल पुकारता है समंदर चला गया.
• फिल्म बैजू बावरा में ‘दूर कोई धुन गाए’ गाने के लिए नौशाद साहब ने मीना कुमारी के लिए लता मंगेशकर की आवाज को इस्तेमाल किया था. इसी गाने के बाद से हिंदी फिल्म इंडस्ट्री में लता मंगेशकर का सिक्का जम गया. लता जी के साथ नौशाद साहब के हिट गानों की लंबी फेहरिस्त है. दोनों अच्छे दोस्त भी थे.
• फिल्मी संगीत के अलावा नौशाद साहब ने सीरियलों के भी संगीत दिया था. लोकप्रिय धारवाहिक 'सॉर्ड ऑफ टीपू सुल्तान' में नौशाद साहब का संगीत था. इसके अलावा उन्होंने सम्राट अकबर पर बनाए गए धारावाहिक में भी संगीत दिया था. उन्होंने अपने फिल्मी करियर में करीब सौ फिल्मों में संगीत दिया.
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• नौशाद साहब अपने समकालीन कलाकारों की तारीफ में कभी पीछे नहीं रहते थे. मशहूर संगीतकार मदन मोहन भी उसी समयकाल के संगीतकार हैं. 60 के दशक में एक फिल्म रिलीज हुई थी- अनपढ़.
इस फिल्म का संगीत मदन मोहन ने दिया था. जिसमें एक गाना था- है इसी में प्यार की आबरू वो जफा करें मैं वफा करूं. नौशाद साहब को ये गाना इतना पसंद था कि वो कहा करते थे कि उनका बनाया सारा संगीत मदन मोहन के इस एक गाने पर कुर्बान है.
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