जीवन में समयांतर स्मृतियों के बीच आवाजाही है, जबकि मध्यांतर नई स्मृतियों की खोज. हम स्मृतियों के बीच आवाजाही करते हैं और वर्तमान हरा-भरा करते हैं. मुंबई मेरी स्मृतियों का कोलाज है तो अभिनेता नाना पाटेकर उसका महास्वप्न. वे ना केवल एक बेहतरीन अदाकार और अभिनेता हैं, बल्कि उनकी ठेठ मराठी जीवनशैली, खाटी महाराष्ट्रीयन जबान, जीवन के प्रति सादगी, सरलता और सहजता मुझे शुरू से ही बहुत अच्छी लगती रही है, आकर्षित करती रही है. आज नाना पाटेकर का जन्मदिन है और मेरे लिए एक समयांतर में प्रवेश, पुरानी स्मृतियों के साथ आवाजाही का समय.
उनसे पहली मुलाकात साल 2005 में इंदौर में हुई थी, वह एक तरह से मेरा पहला इंटरव्यू, था, जो कॉलेज की एक मैग्जीन के लिए था. नाना उस समय नेशनल लेवल के शूटिंग कॉम्पिटीशन का हिस्सा थे. दरअसल, वे एक अच्छे शूटर भी हैं, जब उनसे मिलने पहुंचा तो हंसकर बोले काय रे...! मैं मुस्कुरा दिया. जाहिर है अक्सर महाराष्ट्र में बोली जाने वाली हिंदी, हिंदी भाषियों को बदतमीजी सी लगती है जबकि वह एक अंदाज भर होता है. तो उनका यह अंदाज अलग नहीं लगा क्योंकि मेरा पूरा ननिहाल ही महाराष्ट्र का होने के चलते नाना के इस भाव को समझ गया और मुस्कुरा दिया. उम्र मेरी बहुत कम थी, सो बावजूद इसके वह इंटरव्यू अच्छा बन पडा.
किसानों जैसा किसानों का हीरो
बहरहाल, मेरे इस प्रिय अभिनेता से दूसरी मुलाकात गणपति के ही दिनों में मुंबई में माहिम स्थित उनके घर पर 2007 में हुई थी. उन दिनों मैं दैनिक भास्कर में था. वहां भी उनका ठेठ देसी मराठी अंदाज, किसान वाली टोपी, कुर्ता पैजामा, बंडी और माथे पर तिलक, और मुस्कुराकर मुझे दी गई आरती और परसाद, उनके व्यक्तित्व को देखकर अचरज में डाल गया. यूं कहूं कि उनके प्रति श्रद्धा से भर गया.
कितना अच्छा लगता है न कि टीवी और फिल्मों के कलाकार इतनी सरलता से मिले और बात करें. वह मुलाकात तो अविस्मरणीय रही. जैसे की उनकी फिल्में थी. अंकुश, प्रहार, परिंदा के साथ क्रांतिवीर जैसी फिल्में, जिनमें उनका अभिनय आपको हिंदी सिनेमा में कैमरे के सामने अभिनय की नई शैली और पंरपरा से परिचित कराता है. संवादों की झटके से ठेठ अदायगी, सपाटता, अभिनय की सहजता यह सब कुछ इस 64 साल के अभिनेता में बेहद नया है. आपको बांधे रखने के लिए काफी है.
हां तो कह रहा था कि नाना मेरे लिए स्मृतियों की आवाजाही है. 1 जनवरी उनका जन्मदिन होता है तो उसके बहाने उनकी मराठी फिल्मों के बीच मेरा मध्यांतर. दो साल पहले एक पोस्ट के जरिये नाना को इसलिए याद किया था कि वे महाराष्ट्र में आत्महत्या कर रहे किसानों की हालत से विचलित थे और उन दिनों अपनी कमाई से 15 हजार रुपए तक के चेक किसानों को बांट रहे थे.
किसानों और विधवाओं को दान में देते हैं 70% आय
बीते साल भी वे लगातार इसी काम में सक्रिय रहे. नाना ने महाराष्ट्र के अलग-अलग इलाकों में जाकर किसानों की करीब 300 विधवाओं की आर्थिक मदद की थी और मकरंद अनासपुरे के साथ मिलकर किसान परिवारों के लिए 'नाम' नामक संस्था भी शुरु की. मीडिया में आई खबरें बताती हैं कि नाना अपनी आय का 70 प्रतिशत किसानों की विधवाओं को दान दे देते हैं. मराठवाड़ा उनके कामों का साक्षी है. तो वहीं कारगिल युद्ध के दौरान सैनिकों के बीच होना उनका गौरवशाली अतीत.
बहरहाल, किसानों की मदद पर एक टीवी पत्रकार ने जब पूछा था कि इस मामले में आप राजनीतिज्ञों और नेताओं को क्या कहना चाहेंगे? नाना ने ठेठ उसी खाटी अंदाज में जवाब दिया था कि वो उनका काम कर रहे हैं मैं मेरा काम कर रहा हूं. इतना बोल नाना चुप हो गए थे.
नाना पाटेकर जैसे लोग फिल्म इंडस्ट्री की चकाचौंध करने वाली दुनिया में सादगी, सरलता, सहजता के बीच मानवीय गुणों, ग्रामीण देशज संस्कृति के प्रति अनुराग और कृतज्ञता की अनूठी मिसाल हैं. वे रील नहीं बल्कि रीयल लाइफ के हीरो हैं.
नाना अभिनय के बीच सादगी का सितारा हैं. किसान उनके मन में अन्नदाता है तो सैनिक जीवन का प्रहरी. सादगी उन्हें जीवन का नायक बनाती है, तो संवेदनशीलता जीवन और मनुष्यता के प्रति कृतज्ञ. मैं नाना पाटेकर को जीवन के समयांतर और मध्यांतर दोनों के बीच पाऊंगा. मनुष्य की कमजोरियों के साथ और अभिनेता के बीच जिंदगी के नायक के रूप में.
हैप्पी बर्थडे नाना..!
इस रूप में भी तुम याद रखे जाओगे..!
(न्यूज18 के लिए सारंग उपाध्याय)
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