आसमां जहांगीर नहीं रहीं. भारत पाक के संबंधों में थोड़ी सी भी रुचि रखने वालों ने उनका नाम सुना होगा. हो सकता है उनके काम को याद करने के लिए हिंदुस्तानियों को दिमाग पर थोड़ा जोर डालना पड़े. मगर उनके कई बयान और बातें भारतीयों को बड़े अच्छे लगते हैं. उनकी बातें पाकिस्तानी हुकूमत को चुभने वाली होती हैं. अगर वो हिंदुस्तान के संदर्भ में यही बातें कहतीं तो शायद उनसे नाराज़ रहने वाले यहां भी होते.
मिसाल के तौर पर आसमां एक वीडियो भारत में वायरल हुआ था. आसमां ने पाकिस्तानी सेना को कब्ज़ा करने वाला ग्रुप बता दिया था. हालांकि आसमां साफ करती थीं कि वो पाकिस्तान के आम फौजियों की बात नहीं कर रही थीं. वो पाकिस्तान के जनरल्स की बात करती थीं जो दिन भर गॉल्फ खेलते हैं और ठट्ठे मारते हैं.
भारतीयों को पाक फौज की ये आलोचना बड़ी अच्छी लगी थी. लेकिन अगर यही बात कोई मानवाधिकार कार्यकर्ता भारतीय जनरलों के बारे में कहे तो.... इसी तरह कुलभूषण जाधव को जब पाकिस्तान ने काउंसलर नहीं दिया तो आसमां ने इसकी मुखालिफत की. आसमां ने कहा था, 'जाधव को काउंसलर पहंच नहीं देना बड़ी गलती है. इससे भारतीय जेलों में बंद कैदियों के अधिकारों पर खतरा बढ़ेगा. अंतर्राष्ट्रीय कानून नहीं बदल सकते.'
ऐसी बातों के चलते आसमां पाकिस्तानी सेना की हिट लिस्ट में रहीं. पाकिस्तानी सेना के एक अधिकारी ने उन्हें मारने की कोशिश की थी. पाकिस्तानी सेना ने ये साजिश आसमां की भारत यात्रा के दौरान की थी. इसका खुलासा अमेरिकी अखबार वॉशिंगटन पोस्ट ने किया था. आसमां महिलाओं और बच्चों के लिए काम करने वाली आसमां पाकिस्तान में मानवाधिकार की शुरुआत थी. पाकिस्तान में जब ज़ियाउल हक़ सरकार ने देश के इस्लामीकरण के लिए ईशनिंदा जैसे कानूनों को बढ़ावा दिया तो आसमां उसके विरोध में आईं.
1983 में पाकिस्तान में एक 13 साल की अंधी लड़की साफिया का बलात्कार हुआ. ये बलात्कार साफिया को नौकरी पर रखने वालों ने ही किया था. साफिया प्रेगनेंट हो गई. उसे ज़िना (शादी से पहले अवैध संबंध) बनाने के जुर्म में जेल में डाल दिया गया. साफिया इसमें खुल के राष्ट्रपति हक़ के विरोध में आ गईं. उन्हें लिटिल हीरोइन का तमगा भी दिया गया.
इसके बाद आसमां लोकप्रिय और कुख्यात दोनों ही होती रहीं. एक तबके के लिए वो रोल मॉडल थीं, दूसरे के लिए उनका नाम सुनना भी पाप था. आसमां के लिए ये कोई नई बात नहीं थी. उनके पिता मलिक गुलाम जिलानी ने पूर्वी पाकिस्तान में सेना के अत्याचारों का विरोध किया था. इसके चलते उन्हें हाउस अरेस्ट भी किया गया. काफी समय तक आसमां और उनकी बहन को गद्दार की औलाद कह कर बुलाया जाता था. मगर आसमां नहीं रुकीं. अपनी पुरजोर ताकत के साथ लड़ती रहीं. कई बार पाकिस्तानी हिंदुओं के समर्थन में सरकार से लड़ गईं. 2007 में उन्हें भी हाउस अरेस्ट किया गया. आसमां के जाने के बाद उनके काम को आगे कौन बढ़ाएगा हमें पता नहीं है. आसमां जो करके गई हैं वो तारीख में दर्ज रहेगा.
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