अगर बच्चों के नाम से पिता की पहचान होना सौभाग्य है तो हिंदुस्तान में कुछ परम सौभाग्यशाली लोग हैं, जिसमें आप कवि हरिवंश राय बच्चन, उस्ताद अल्लारखा के साथ एक और बहुत बड़ा नाम ले सकते हैं वो नाम है पंडित दीनानाथ मंगेशकर का. इन सौभाग्यशाली शख्सियतों की किस्मत ही है कि इनके जाने के बाद भी इस दुनिया में इनका नाम रोशन है. आगे भी सदियों-सदियों तक रोशन रहेगा. सच ये भी है कि आज सदी के महानायक अमिताभ बच्चन हों, तबला सम्राट उस्ताद जाकिर हुसैन हों या फिर भारत रत्न से सम्मानित महान गायिका लता मंगेशकर हों; इन सभी की शख्सियत में काबिलियत के साथ साथ जो संस्कार हैं वो इन्हें अपने-अपने पिता से मिले हैं.
आज दुनिया भले ही इनका ऐहतराम ज्यादा करती है लेकिन जानता हर कोई है कि इन महानायकों या महानायिकाओं की जड़ें कहां से निकलीं. ये पंडित दीनानाथ मंगेशकर के दिए संस्कार ही थे कि लता मंगेशकर का समूचा जीवन उन्हें एक अलग ही मुकाम पर ले गया. बड़ों ने दुआएं दीं. पूरी दुनिया ने उन्हें सम्मान दिया. करोड़ों लोगों ने उन्हें प्यार दिया.
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पंडित दीनानाथ मंगेशकर खुद एक बड़े कलाकार थे. मराठी रंगमंच में उनका नाम आज भी बहुत इज्जत से लिया जाता है. आज ही के दिन गोवा के एक गांव मंगेशी में उनका जन्म हुआ था. पिता गांव के ही एक मंदिर में पूजा-पाठ कराते थे. मां देवदासी संप्रदाय की थीं. वो भी भक्ति में डूबी रहती थीं. इसी गांव के नाम पर पंडित दीनानाथ के नाम के साथ मंगेशकर जुड़ा. इस तरह दीनानाथ हार्दिकर दीनानाथ मंगेशकर हो गए.
उन्होंने भी कम उम्र में ही संगीत की विधिवत तालीम लेना शुरू कर दिया था. शुरुआत हुई बाबा माशेलकर से जिनके पास दीनानाथ मंगेशकर पांच-छह साल की उम्र में ही चले गए थे. इसके बाद संगीत की समझ, परिवार की स्थिति और जरूरतों के आधार पर दीनानाथ मंगेशकर ने पंडित रामकृष्ण, पंडित सुखदेव मिश्र से भी संगीत की शिक्षा ली.
पंडित रामकृष्ण दीनानाथ मंगेशकर को गंडा बांधने वाले गुरु थे. गंडा बांधकर शिक्षा लेना भारतीय शास्त्रीय कलाओं की परंपरा है. खैर, बचपन में गुणीजनों के सानिध्य में संगीत साधने का दीनानाथ मंगेशकर को फायदा हुआ. बहुत कम उम्र में ही वो मंझे हुए कलाकार की तरह प्रस्तुतियां देने लगे. सिर्फ 11 साल की उम्र में वो ‘किर्लोस्कर नाटक मंडली’ से जुड़ गए. ‘किर्लोस्कर नाटक मंडली’ बलवंत पांडुरंग किर्लोस्कर ने बनाई थी. महाराष्ट्र के कोने कोने में इस नाटक मंडली ने प्रस्तुतियां दीं. कुछ ही समय में दीनानाथ मंगेशकर ने इस मंडली में अपनी खास जगह बना ली थी.
‘किर्लोस्कर नाटक मंडली’ और दीनानाथ मंगेशकर का साथ कुछ सालों तक चला. इसके बाद दीनानाथ मंगेशकर ने अपनी नाटक मंडली बनाई. उसका नाम रखा गया- बलवंत संगीत मंडली. इस मंडली में उनके साथ उनके दोस्त चिंतारमण राव और कृष्णराव कोल्हापुरे भी थे. ये लगभग वही दौर था जब मराठी रंगमंच की दुनिया में नारायण श्रीपद राजहंस का बड़ा रुतबा हुआ करता था. श्रीपद राजहंस को लोग बाल गंधर्व के नाम से ज्यादा जानते हैं. बाल गंधर्व के किए नाटक ‘मानापमान’ की प्रसिद्धि बहुत ज्यादा थी.
बाद में दीनानाथ मंगेशकर ने भी अपनी बलवंत संगीत मंडली से उस नाटक को किया. दीनानाथ मंगेशकर गाते अच्छा थे ही दिखने में भी आकर्षक थे. जल्दी ही उनकी नाट्य मंडली का काम इतना अच्छा चलने लगा कि कहा जाता है कि बाल गंधर्व ने उन्हें अपने साथ काम करने का प्रस्ताव भी दिया था. खास बात ये थी कि इस बहुचर्चित नाटक के लिए पंडित दीनानाथ मंगेशकर ने संगीत देने की जिम्मेदारी खुद ही उठाई. उन्होंने पहले ये जिम्मेदारी पंडित गोविंदराव टेंबे को दी जरूर थी लेकिन उन्हें वो रास नहीं आईं. लिहाजा उन्होंने खुद ही पूरे नाटक का संगीत तैयार किया.
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इसी बीच 1922 में पंडित दीनानाथ मंगेशकर का विवाह भी हुआ. ये दुर्भाग्य ही था कि उनकी पत्नी शादी के कुछ साल बाद दुनिया से चली गईं. भावनात्मक रूप से इस मुश्किल वक्त में पंडित दीनानाथ मंगेशकर ने अपनी पहली पत्नी की बहन से दूसरा विवाह किया. जिनसे उन्हें लता, मीना, आशा, ऊषा और ह्रदयनाथ नाम की संताने हुईं.
पिता से संगीत के संस्कार सभी बच्चों में भी गए. उन्होंने भी अपनी तरफ से पूरा प्रयास किया कि बच्चों में बचपन से ही संगीत की समझ और संस्कार आएं. लता जब छोटी ही थीं तब वो उन्हें अपने नाटकों में ले जाया करते थे. सौभद्र नाम के उस नाटक का किस्सा बड़ा मशहूर है जिसमें पंडित दीनानाथ मंगेशकर अर्जुन के किरदार में थे और लता मंगेशकर नारद के किरदार में. उस नाटक में लता मंगेशकर ने बाकायदा गाया भी था.
उस नाट्यगीत के बोल थे- पावना वामना या मना. लता मंगेशकर के अलावा मीना ने भी बचपन में अपनी पिता की नाट्यमंडली में छोटे मोटे रोल किए. नाट्य मंडली में काम करने के अलावा पंडित दीनानाथ मंगेशकर ही अपने बेटियों के शुरूआती गुरु थे. उन्होंने ही लता मंगेशकर को अपनी गोद में बिठाकर संगीत की शुरुआती तालीम दी. ये बात कइयों को चौंकाती है कि उन्होंने लता मंगेशकर की संगीत शिक्षा के लिए शास्त्रीय राग पूरिया धनाश्री को चुना था. जो अपेक्षाकृत कठिन राग माना जाता है.
आकाशवाणी के लिए लता मंगेशकर की इकलौती रिकॉर्डिंग है. जिसमें उनके साथ उनके पिता पंडित दीनानाथ मंगेशकर ही गए थे. इस रिकॉर्डिंग के कुछ दिनों बाद ही पंडित दीनानाथ मंगेशकर का अचानक निधन हो गया. उस वक्त उनकी उम्र सिर्फ 41 बरस थी. ऐसा कहा जाता है कि अपनी मुफलिसी के दिनों में उन्होंने जरूरत से ज्यादा शराब पीना शुरू कर दिया था जो उनकी असमय मौत की वजह बनी.
पंडित दीनानाथ मंगेशकर के अचानक जाने के बाद परिवार की सारी जिम्मेदारी सबसे बड़ी बेटी लता मंगेशकर पर आ गई. इस जिम्मेदारी को निभाने के लिए लता जी ने कुछ फिल्मों में भी काम किया. जिससे उन्हें कुछ पैसे मिल सकें. लेकिन जैसे ही हालात थोड़े ठीक हुए लता जी ने रुपहले परदे से तौबा करके वापस संगीत की दुनिया चुनी. उन्होंने अपने पिता को वचन दिया था कि वो कभी किसी भी हालत में संगीत का साथ नहीं छोड़ेंगी. ये पिता के दिए संस्कार ही थे कि लता जी ताउम्र इस वायदे पर कायम रहीं
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