हमने दशकों से पर्यावरण को नुकसान पहुंचाकर उसे तहस-नहस कर दिया है और उसके नतीजे झेल रहे हैं. हमने जानवरों को भी बहुत सताया है और उन्हें खुद में सिमटने और सर्वाइव करने को मजबूर किया है. वक्त-वक्त पर जानवरों ने हमारे साथ ये ग्रह साझा करने की मजबूरी में खुद में बदलाव लाने की कोशिश की है. लेकिन अब वो धीरे-धीरे एक ऐसे बदलाव का हिस्सा बन रहे हैं, जिसके नतीजे काफी बुरे हो सकते हैं.
रात्रिचर हो रहे हैं जानवर
शहरों में पाए जाने वाले जानवर हों, या जंगलों में रहने वाले जानवर, सभी नॉक्टर्नल यानी रात्रिचर बनते जा रहे हैं. और ये ऐसा बस इंसानी गतिविधियों से बचने के लिए कर रहे हैं. यानी दिन में एक्टिव रहने वाले जानवर अपनी जरूरतों के लिए रात में निकलने लगे हैं.
मैशेबल की एक रिपोर्ट के मुताबिक, रिसर्चर्स की एक टीम ने एक मेटा-एनालिसिस किया, जिसमें उन्होंने छह महाद्वीपों में जानवरों की 62 नस्लों को शामिल किया. उन्हें इस रिसर्च में जानवरों के व्यवहार में काफी हैरान करने वाले नतीजे दिखे. इस रिसर्च में शामिल किए गए जानवरों में से इंसानों के पास रहने वाले 80 प्रतिशत जानवर रात में एक्टिव हो चुके हैं. ऐसा करके जानवर प्राकृतिक रूप से अपने लिए निर्धारित किए गए शेड्यूल के उलट जा रहे हैं. ये रिसर्च इसी हफ्ते जर्नल साइंस में छपी है.
बहुत सी चीजों पर पड़ सकता है असर
जो जानवर दिन में शिकार करते हैं वो अब दिन में सो रहे हैं और रात में एक्टिव हो रहे हैं. क्या आप अंदाजा लगा सकते हैं कि जानवरों पर इसका असर पड़ सकता है? इसका मतलब जानवरों को अपने पूरे दिन की गतिविधियों को रात में ही समेटना पड़ा रहा है. इससे उनकी डाइट और शिकारी क्षमता पर असर पड़ रहा है. इससे उन्हें रात में दूसरे शिकारी जानवरों का भी सामना करना पड़ रहा है. ऐसे बदलाव से खाद्य श्रृंखला और प्राकृतिक सहचर के नियमों पर भी असर पड़ा रहा है. सबसे बड़ी बात लॉन्गटर्म के लिए ये जानवर अपने अस्तित्व पर खतरा डाल रहे हैं.
रिसर्च में एक बात ये भी साफ हुई कि ऐसा नहीं है कि ये जानवर उन्हीं जगहों पर अपनी एक्टिविटी बंद कर रहे हैं या एक्टिविटी का टाइम बदल रहे हैं, जहां इंसान शिकार कर रहे हैं. इंसान चाहे हाइकिंग कर रहे हों या ट्रेकिंग ये जानवर इंसानों का सामना करने से बचने के लिए खुद में ये बदलाव ला रहे हैं.
जानवरों का अस्तित्व खतरे में?
स्टडी की लीड ऑथर केटलिन गेनॉर ने लिखा, 'इंसानों की गतिविधियों से जानवरों की जनसंख्या और उनके रहने की जगहें तो बर्बाद हुई हैं, हम जानते हैं लेकिन उनके व्यवहार में हमारी वजह से आए बदलाव आने की वजहों और उनकी मात्रा को पहचानना काफी मुश्किल है.'
इसी रिसर्च का हिस्सा रहे जस्टिन ब्रेशेयर्स ने लिखा, 'जानवरों की आदतें लाखों सालों के अनुकूलन के चलते बनती हैं, ऐसे में इस बात पर भरोसा करना मुश्किल है कि हम इंसान जानवरों को उनके पूरे दिन की गतिविधि को एक रात में सिमटाने को मजबूर करें और उनके अस्तित्व बना रहे.'
इस रिसर्च में जानवरों की दूसरी किसी जटिलता के बजाय इंसानों को लेकर उनके रुख पर रिसर्च किया गया था. हालांकि, सालों से इंसानों के साथ रहने को मजबूर जानवरों ने इंसानों के साथ रहने की आदत बना ली है. लेकिन इस नए बदलाव के बाद भविष्य में कई तरह के सवाल खड़े हो सकते हैं. जानवरों के अस्तित्व को लेकर भी और उससे भी बड़ा ये कि इंसानों और जानवरों में सामंजस्यता कैसे बदलेगी?
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