यूपी विधानसभा चुनाव में जातीय ध्रुवीकरण बड़ा फैक्टर बन सकता है. उम्मीद की जा रही है कि चुनावों के दौरान विकास के नारे लगेंगे, गुड गवर्नेंस की बातें होंगी, लॉ एंड ऑर्डर का सवाल उठेगा. लेकिन पर्दे के पीछे जातीय गुटबंदी का खेल बड़ा रोल प्ले कर सकता है. इस लिहाज से राजनीतिक दल और विश्लेषक ठाकुर वोटरों का मूड भांपने में लगे हैं.
चुनाव में ठाकुर वोट का मतलब
यूपी की कुल आबादी के 8 फीसदी लोग ठाकुर जाति से आते हैं. पूर्व मुख्यमंत्री वीर बहादुर सिंह, पूर्व प्रधानमंत्री विश्वनाथ प्रताप सिंह और वर्तमान गृहमंत्री राजनाथ सिंह यूपी की सियासत में असरदार ठाकुर चेहरे रहे हैं. इसके साथ ही दूसरे और तीसरे दर्जे के ठाकुर नेताओं की भरीपूरी जमात है.
राजनीति में ठाकुरों की मजबूत हिस्सेदारी की वजह बड़ी साफ है. इन्होंने लंबे अरसे से सामाजिक-आर्थिक रसूख का मजा लिया है. इनका ताल्लुक गांव के संपन्न और बाहुबली तबके से रहा है. एक आम धारणा है कि रायशुमारी से माहौल बनाने के ये माहिर लोग हैं. ठाकुर ऐसी दबंग जातियों में से एक है. जो चुनावों के दौरान बूथ मैनेजमेंट से लेकर अपनी ताकत और सामाजिक रुतबे से सियासी गणित सेट करने की काबिलियत रखते हैं.
समाज में इनका असर इसलिए भी है. क्योंकि लंबे अरसे से कई राजनीतिक दलों में ये मजबूत स्थिति में रहे हैं. हालांकि नब्बे के दशक के बाद इनका असर कम पड़ने लगा. जब आबादी के लिहाज से बड़ी जातियां, मसलन यादव, कुर्मी और दलितों ने चुनावी राजनीति में घुसपैठ की.
एक वक्त था जब कांग्रेस पार्टी के अहम पदों पर सवर्ण नेताओं का कब्जा था. वक्त के साथ इन नेताओं की स्थिति पार्टी में कमजोर पड़ी. हालांकि बीजेपी अभी तक एक ऐसी पार्टी है. जिसके महत्वपूर्ण पदों पर अब भी सवर्ण नेताओं की भरमार है.
राजनाथ सिंह, योगी आदित्यनाथ और संगीत सोम जैसे ठाकुर चेहरे यूपी बीजेपी में सबसे अहम भूमिका निभा रहे हैं. समाजवादी पार्टी का ठाकुर चेहरा रहे अमर सिंह ने वापसी की है. राजा भैया भी इसी जमात से समाजवादी पार्टी में अपना दम दिखा रहे हैं.
ठाकुर वोटों से किसको फायदा ?
यूपी चुनाव में समाजवादी पार्टी और बीजेपी के बीच ठाकुर वोट बंट सकते हैं. समाजवादी पार्टी को कितने फीसदी ठाकुर वोट मिलेंगे ? ये इस बात पर निर्भर करता है कि अमर सिंह और राजा भैया जैसे ठाकुर नेता सूबे में कितनी बैठक और सभाएं करते हैं.
हालांकि अमर सिंह के खराब स्वास्थ्य को देखते हुए ज्यादा उम्मीद करना बेमानी है. लेकिन ये तय है कि वो ठाकुर वोटरों पर असर डालेंगे. वहीं बीजेपी अगर राजनाथ सिंह को मुख्यमंत्री के तौर पर प्रोजेक्ट कर देती है. तो ठाकुरों का बड़ा तबका पार्टी के पक्ष में आ सकता है.
अगर राजनाथ सिंह मुख्यमंत्री के उम्मीदवार नहीं बनते हैं. तो ठाकुर वोटर अपने-अपने इलाके में जीतने की संभावना वाले ठाकुर उम्मीदवार को वोट करेगा. ऐसे हालात में पार्टी से ज्यादा जाति के नाम पर वोट डाले जाएंगे. पश्चिमी उत्तर प्रदेश में राजनाथ सिंह और संगीत सोम ठाकुर वोटरों को अपने पाले में करेंगे. वहीं पूर्वी उत्तर प्रदेश में योगी आदित्यनाथ राजनाथ सिंह के साथ मिलकर ठाकुर वोटों पर असर डालेंगे. अमर सिंह की वापसी
अगर अमर सिंह पश्चिमी उत्तर प्रदेश में राजा भैया के साथ मिलकर समाजवादी पार्टी के पक्ष में आक्रमक प्रचार करते हैं. तो ये यूपी के कई हिस्सों के साथ सेंट्रल यूपी, बुंदेलखंड और पूर्वांचल के ठाकुर वोटरों पर असर डालने वाला होगा.
अमर सिंह मीडिया में बने रहने का गुर जानते हैं. अपने तामझाम से वो यूपी के ठाकुर वोटरों पर असर डालकर उन्हें समाजवादी पार्टी के पाले में ला सकते हैं.
कांग्रेस से ठाकुर वोटरों का कनेक्शन
बुंदेलखंड में कांग्रेस पार्टी से जुड़े कई ठाकुर नेता हैं. ये चुनावों में अपना असर डाल सकते हैं. बुंदेलखंड के समाज में अपने प्रभुत्व के चलते चुनावों में इनकी भूमिका निर्णायक हो जाती है. सेंट्रल यूपी में ठाकुरों के एक हिस्से का झुकाव कांग्रेस पार्टी के पक्ष में हो सकता है. खासकर रायबरेली, अमेठी और लखनऊ जैसे इलाकों में.
ठाकुरों का असर बाकी है
यूपी की सियासत में ठाकुरों का असर अब तक बना हुआ है. सामाजिक तौर पर उनका रसूख कम जरूर हुआ है. लेकिन कई इलाकों में असर अब भी बरकरार है. खासकर खेती, सेवा के क्षेत्रों और ठेकेदारी जैसी जगहों पर वो जमीनी तौर पर वोटों के ध्रुवीकरण की ताकत रखते हैं. ठाकुरों के प्रभाव की वजह से कई बार दूसरी जातियों के लोग भी इनकी पसंदीदा पार्टी को वोट करते हैं. तो कई बार ये भी होता है कि ठाकुरों के वर्चस्व को स्वीकार न करने वाले लोग उनके विरोधी पक्ष को वोट करते हैं.
अभी ये देखना होगा कि आने वाले चुनाव में ठाकुर अपनी भूमिका किस तरह तय करते हैं. बीजेपी ठाकुर वोटरों को अपने पाले में लाने के लिए क्या रणनीति बनाती है.
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