श्रीदेवी नहीं रहीं. उनका जाना बहुतों के स्तब्ध कर गया. उन सबको, जिन्होंने अपने बचपन में ‘मेरे हाथों में नौ-नौ चूड़ियां हैं’ पर डांस किया था. जिन्होंने चांदनी से सीखा था कि लड़की से मिलने खाली हाथ नहीं जाया जाता. वो जो हवा-हवाई थी, जो बच्चों की फुटबॉल वापस नहीं करती थी मगर फिर भी अच्छी लगती थी. खैर, किसी का भी दुनिया से जाना एक खल जाने वाली बात है.
श्रीदेवी जैसी अदाकारा का 54 की उम्र में जाना और ज्यादा बुरा लगता है. अभी उनकी दूसरी पारी शुरू हुई थी. इंग्लिश-विंग्लिश बोलते हुए वो फिर से एक अलग मुकाम बना रही थीं. अपनी बेटी जान्हवी की धड़क की तैयारी कर रही थीं. मगर इस बीच फिर से वही हुआ जो नहीं होना चाहिए. कांग्रेस के ऑफीशियल हैंडल से ट्वीट किया गया. ट्वीट के आखिर में दो लाइनें लिखी थीं जिनमें कहा गया था कि उन्हें पद्मश्री यूपीए सरकार के कार्यकाल में मिला.
कुछ देर बाद ये ट्वीट डिलीट कर दिया गया. लेकिन इसको लेकर सोशल मीडिया पर बातें शुरू हो गईं. किसी ने कहा कि ये भी लिखते कि श्रीदेवी जवाहरलाल नेहरू के समय में पैदा हुई थीं. किसी ने और कुछ कहा. इन सबसे थोड़ा आगे आइए. हर किसी के दुख का अलग पैरामीटर होता है. उस दर्द को खांचों में नहीं नापा जा सकता. जो ट्वीट कांग्रेस से हुआ, वो किसी और से भी हो सकता था. ट्वीट ही क्यों तमाम ऐसे ‘तमाशे’ (माफ करिएगा इससे बेहतर शब्द नहीं याद आया) होते हैं.
Also mention, she was born when Nehru was the prime-minister.
— Gabbbar (@GabbbarSingh) February 25, 2018
अपने वोटबैंक का कोई मरे तो उसको लाखों-करोड़ों का मुआवज़ा दिया जाता है. इसके बाद तमाम लोग किसी दूसरी मौत पर ऐसा ही मुआवज़ा मांगते दिखते हैं. मरने वाले के सम्मान में कहते हैं कि चेक में इतने ज़ीरो होंगे तो ही सम्मान होगा. मौत पर राजनीति करने वाले मौकाखोरों में दो तरह के होते हैं, एक जो मरने पर कितना पैसा दें, इसका मौका ताड़ते हैं. दूसरे वो जो कितना पैसा मांगे इसका मौका तलाशते हैं. दोनों के ही केंद्र में एक शव है.
Also mention, she was born when Nehru was the prime-minister.
— Gabbbar (@GabbbarSingh) February 25, 2018
नेताओं को दोष दे दीजिए. मीडिया को भी स्क्रीनशॉट लगाकर गाली दे दीजिए की क्यों वो श्रीदेवी के मरने पर उनकी ‘खास तरह’ की तस्वीरें देखने को कह रहा है. लेकिन इनसब के अलावा दोषी और भी हैं. फेसबुक पर किसी ने लिखा कि कृत्रिम अभिनय के युग का अंत हुआ. किसी ने लिखा कि बोटॉक्स के साइड इफेक्ट से मौत हुई. श्रीदेवी के अभिनय पर अलग-अलग राय हो सकती है मगर वो बुरी अभिनेत्री नहीं थीं. उनके सामने जो किरदार, फिल्में नायक थे उन्हें उन्हीं में से चुनना था और उन्होंने बेहतरीन चुनाव किया.
उनके समय में सत्यजीत रे क्यों नहीं थे. उनको अनुराग कश्यप ब्रांड की कोई फिल्म, या कोई घोर फेमिनिस्ट फिल्म नहीं मिली इसमें श्रीदेवी का दोष नहीं है. आप किसी की मौत का मजाक इसलिए नहीं उड़ा सकते कि उसने आर्ट फिल्में नहीं की थीं. या हर कोई श्रीदेवी पर बात कर रहा है, कल से आजतक हुई किसी दूसरी मौत पर बात नहीं कर रहा.
इसमें दो राय नहीं कि सोशल मीडिया पर आज श्रीदेवी को श्रद्धांजलि देने वालों में बहुतों ने उनकी फिल्मों को खास तवज्जो नहीं दी होगी. कई लोग सिर्फ ट्रेंड में बने रहने के लिए ही तस्वीर अपलोड कर रहे होंगे. मगर इनमें बहुत से लोग होंगे जिन्हें सुबह-सुबह इस मनहूस खबर से बुरा लगा होगा. श्रीदेवी ने समाज को क्या दिया, क्या नहीं, आज कौन सी दूसरी खबर क्यों नहीं चल रही जैसे सवालों को हो सके तो कुछ देर का मौन रखे. तहजीब यही कहती है. बाकी श्रीदेवी के जाने पर नीरज का गीत याद आ रहा है,
और हम खड़े-खड़े बहार देखते रहे, कारवां गुज़र गया, गुबार देखते रहे.
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