90 के दशक के शुरुआती साल में हिंदुस्तान में कलर टीवी घर-घर पहुंचा. टीवी के सर्वव्यापी होने के बाद तीन भगवानों का क्रेज देखते ही देखते पूरे देश में फैलना शुरू हुआ जो 21वीं शताब्दी के दूसरे दशक तक आकर एक अलग स्तर पर पहुंच गया.
हम बात कर रहे हैं. फकीर से भगवान बने शिरडी के साईं बाबा, नवग्रह से टीवी ब्रांड ज्योतिषियों के सबसे खास हुए शनिदेव और क्रिकेट के भगवान सचिन तेंदुलकर. आज बात करते हैं शनिदेव की.
बनारस हिंदू यूनिवर्सिटी में प्रोफेसर डॉ विनायक पांड्या कहते हैं कि शनि के नाम पर जो टीवी में लाइव आरती और यन्त्र बेचने का धंधा शुरू हुआ है इसने लोगों के बीच में डर बैठा दिया है. पंड्या के अनुसार ज्योतिष में शनि का बड़ा प्रभाव सकारात्मक रहता है.
रावण ने सारे ग्रहों को अपने हिसाब से कुंडली में खड़ा कर दिया
पंड्या सहित कुछ और ज्योतिषी भी एक कहानी सुनाते हुए कहते हैं कि मेघनाद के जन्म के समय रावण ने सारे ग्रहों को अपने हिसाब से कुंडली के ग्यारहवें घर में खड़ा कर दिया. सारे ग्रह रावण के डर से उसकी बताई जगह पर ही खड़े रहे और शनि ही एक मात्र ग्रह था जिसने अपना पैर दूसरे घर में रखकर मेघनाद की हार का रास्ता खोला.
पंड्या यह भी कहते हैं कि कि टीवी पर दिखाए जाने वाले काल सर्प योग और पितृ दोष का भारतीय ज्योतिष में कोई जिक्र है ही नहीं.
शनिदेव की भारतीय ज्योतिष और पुराणों में जो छवि है और हिदी टेलिविज़न के जरिए उनकी जो इमेज बनाई गई दोनों में बहुत बड़ा फर्क है और ये फर्क यूं ही नहीं है. इसको समझने से पहले आपको सचिन तेंदुलकर के क्रिकेट का भगवान बनने के पीछे कुछ संयोगों को समझना चाहिए.
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बेशक सचिन की प्रतिभा सवालों से परे है. मगर 92 का वर्ल्डकप वो बड़ा इवेंट था जब बहुत से लोगों के पास टीवी था और उसपर रंगीन कपड़ों में रीप्ले, स्लोमोशन और हाइलाइट के साथ मैच दिखाए जा रहे थे. इसने 16 साल के बेहद प्रतिभाशाली और शालीन बच्चे को माइलेज दिया जो उससे पहले के खिलाड़ियों को नहीं मिला था.
इसी के साथ अगर आपने गौर किया हो तो आपको पिछले दो दशकों में अपने आस-पास शनि देव और साईंबाबा के मंदिरों की गिनती अचानक से बहुत बढ़ी हुई देखी होगी. मंदिरों से अलग साईंबाबा की मूर्तियां जहां गिफ्ट शॉप में दिखती हैं.
वहीं शनिदेव का मंदिर हर शहर में बने मंदिरों के बीच बना दिख जाएगा. हालांकि ये भी एक अजब संयोग है कि शनि शिंगणापुर और शिरडी के आस-पास होने के लिहाज से साईंबाबा और शनिदेव पड़ोसी हुए.
टीवी पर शनि के प्रकोप वाले ज्योतिष की शुरुआत हुई
21 सितंबर 1995 ही वो तारीख थी जिस दिन बहुत से लोगों को समझ आ गया थि कि हिंदुस्तान में धर्म का नाम लेकर कुछ भी समझाया जा सकता है. कहा जाता है इसी एक दिन देश भर की गणेश प्रतिमाओं ने दूध पिया था. बिना इंटरनेट के वायरल होने वाली इस घटना से लोगों ने सबक लिया और टीवी पर शनि के प्रकोप वाले ज्योतिष की शुरुआत हुई.
जबकि ज्योतिष शास्त्र की मानें तो हर ग्रह के अपने अच्छे बुरे प्रभाव होते हैं. और शनि या कोई भी ग्रह इसका अपवाद नहीं है. इसके साथ ही मिथकों की मानें तो,
इस तरह की तमाम मिथकीय अवधारणाओं को मानें तो भी शनिदेव आपकी जिंदगी की ऐसी-तैसी करने वाला कोई खलनायक नहीं है. मगर हर शनिवार चढ़ाए जाने वाले तेल और सिक्कों के चलते धर्म के ठेकेदारों की सुनिश्चित कमाई का जरिया बन गए हैं.
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शनि शिंगणापुर में मंदिर में महिलाओं के तेल चढ़ाने को लेकर पिछले साल जो विवाद हुआ वो सब को याद ही होगा. शनिदेव के नाम पर चलाई जा रही एक प्रथा को तोड़ने से देश, दुनिया या वहां पर क्या आफत आ गई.
धर्म बहुत ही निजी चीज है जिसके सामाजिक प्रभाव होते हैं. गीता में कृष्ण कहते हैं कि जो लोक हित है वही धर्म है. अगर कोई देवता है तो वो निश्चित रूप से किसी सनकी तानाशाह की तरह व्यवहार नहीं करता होगा. और रही बात टीवी पर रोज दिखाए जाने वाले प्रलयंकारी संयोगों की तो...
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