1970 के दशक में शुरू हुए चिपको आंदोलन ने अपने 45 साल पूरे कर लिए हैं. इसी मौके पर गूगल डूडल के जरिए चिपको आंदोलन की 45वीं सालगिरह माना रहा है. चिपको आंदोलन को दर्शाते हुए गूगल ने बहुत रचनात्मक डूडल बनाया है जिसमें कुछ औरतों को पेड़ों से चिपके हुए दिखाया गया है. यह आंदोलन गांधीवादी की नींव पर रखा गया था.
दरअसल 70 के दशक में बड़े पैमाने पर जंगलों में पेड़ों की कटाई होने लगी थी. इसी के चलते चिपको आंदोलन की शरुआत हुई. इस आंदोलन में लोग पेड़ों से लिपटकर उन्हें न काटने का आग्रह करते थे. इस आंदोलन की शुरूआत 1973 में अलकंदा घाटी के मंडलगांव से हुई. इसकी शुरूआत करने वाली थी गौरा देवी जिनको बाद में चिपको वुमन भी कहा जाने लगा था.
बिश्नोई समाज की अहम भूमिका
इस आंदोलन में बिश्नोई समाज का भी बहुत बड़ा हाथ था. बिश्नोई समाज आमतौर पर पर्यावरणकी पूजा करने वाला समुदाय माना जाता है. ये बिश्नोई समाज ही था जिसने पेड़ों को बचाने के लिए अपने जान की आहुती दी थी. जोधपुर के राजा द्वारा पेड़ो के काटने के फैसले के बाद एक बड़े पैमाने पर बिश्नोई समाज की महिलाएं पेड़ो से चिपक गई थी और उन्हें काटने नहीं दिया. इसी के तहत पेड़ों को बचाने के 363 विश्नोई समाज के लोगों के अपनी जान भी दे दी थी.
पार्टी ने यह भी कहा कि वह राष्ट्रीय सुरक्षा के मुद्दे पर कभी राजनीति नहीं कर सकती और अपने जवानों और सरकार के साथ खड़ी है
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