योगी आदित्यनाथ को संघ, संगठन और वोटर के एक बड़े तबके की भावनाओं को समझते हुए मुख्यमंत्री बनाने का फैसला किया है. इसके पहले मध्य प्रदेश में बीजेपी ने उमा भारती को तकरीबन इसी मनोभावना से प्रेरित होकर मुख्यमंत्री बनाया था. वह प्रयोग सफल नहीं हुआ लेकिन योगी का प्रयोग सफल भी हो सकता है.
लंबे अरसे तक कांग्रेस-परिभाषित राजनीति के दायरे में रहने के कारण हमारे दिलो-दिमाग में मुख्यमंत्री की एक खास छवि है. हो सकता है कि योगी आदित्यनाथ उसे तोड़ दें. पार्टी के पास अच्छी खासी बहुमत है. प्रयोग काम नहीं करेगा तो रास्ता बदलने के लिए पर्याप्त समय पास में है.
योगी में मुख्यमंत्री की कुछ खामियां हैं और कुछ अच्छाइयां है उनके पास प्रशासनिक अनुभव नहीं है वह देश के सबसे बड़े राज्य के मुख्यमंत्री बनने जा रहे है लेकिन उनके पास जीवन का अनुभव है, साथ ही सलाहकारों की लम्बी फौज. केन्द्र सरकार उनके साथ है. ऊपर से उनकी कड़क छवि है. कौन जाने वे सफल साबित हों.
तीन बड़ी चुनौतियाँ
उत्तर प्रदेश की तीन सबसे बड़ी चुनौतियां हैं. एक, कानून-व्यवस्था, आर्थिक विकास और सामाजिक सद्भाव. योगी की कड़क छवि कानून-व्यवस्था को सही करने में मददगार भी हो सकती है.
आरोप है कि पिछले पन्द्रह साल से उत्तर प्रदेश अराजकता का शिकार है. थानों में इलाके के दबंगों की तूती बोलती है. पर यह इसलिए था, क्योंकि राजनीति का इसमें सीधा हस्तक्षेप था. देखना होगा कि योगी-मुख्यमंत्री के राज में हस्तक्षेप बढ़ेगा या कम होगा.
आर्थिक गतिविधियों की लिहाज से भी प्रदेश के पिछले पन्द्रह साल निराशाजनक रहे हैं. पचास के दशक में उत्तर प्रदेश के संकेतक राष्ट्रीय औसत से ऊपर रहते थे. आज सब पलट चुके हैं. आर्थिक विकास दर, प्रति व्यक्ति आय, स्वास्थ्य, शिक्षा-साक्षरता जैसे संकेतकों की गाड़ी उलटी दिशा में जा रही है. इस उलटी चलती गाड़ी को सीधी पटरी पर लाना योगी सरकार की दूसरी बड़ी चुनौती होगी.
पाँच साल में पन्द्रह साल का काम
अमित शाह ने कहा था कि देश की डबल डिजिट ग्रोथ के लिए उत्तर प्रदेश में डबल डिजिट ग्रोथ की जरूरत है. उनका दावा था कि बीजेपी की सरकार आई तो वह पांच साल में पिछले 15 साल के पिछड़ेपन को दूर करने की कोशिश करेगी. सवाल केवल सांस्कृतिक पहचान का नहीं, लोगों की उम्मीदें पूरी करने का है.
प्रदेश में हालांकि सरकार ने अभी बाकायदा काम शुरू नहीं किया था कि खबरें आने लगीं कि यांत्रिक पद्धति से काम करने वाले पशु-वध केन्द्र बंद किए जा रहे हैं. अमित शाह ने कहा था प्रदेश में दुधारू पशु खत्म होते जा रहे हैं, जबकि यहां दूध उत्पादन की अच्छी संभावनाएं हैं. पशुधन को बचाना किसान की जरूरत है.
बीजेपी के चुनाव संकल्प में छोटे किसान के लिए कर्ज माफी और मंडी से लेकर मिट्टी की जांच तक के कार्यक्रमों की घोषणा की गई है. अब इन कार्यक्रमों को पूरा करने का वक्त आया है. किसानों का कर्ज माफ करने को लेकर विशेषज्ञों का कहना है कि इससे गलत परंपरा पड़ेगी.
सबका साथ, सबका विकास
मोदी सरकार का नारा है ‘सबका साथ, सबका विकास.’ चुनाव प्रचार के दौरान विरोधी दलों के बीच इस बात की होड़ थी कि मुसलमान वोट किसे मिलेगा. यह बात स्थापित थी कि मुसलमान वोटर बीजेपी को हराने के लिए वोट देगा. शायद इस बात के प्रचार ने प्रति-रणनीति को जन्म दिया.
बीजेपी की माइक्रो सोशल इंजीनियरी ने हिन्दू समाज के अंतर्विरोधों को भड़काने वाली रणनीति को निष्फल कर दिया. पर अब चुनाव की राजनीति नहीं ‘राजधर्म’ का समय है.
भयभीत मुसलमान
आने वाला समय मुसलमानों को भयभीत करेगा या दिलासा देगा? बीजेपी को वोट देने वालों में काफी बड़ा तबका ऐसे लोगों का है जो जाति और सम्प्रदाय के ऊपर जाकर सोचते हैं. क्या सरकार की कट्टर छवि से यह नया वोटर सहमेगा नहीं? क्या वह 2019 में साथ छोड़कर चला नहीं जाएगा?
बीजेपी ने अपने चुनावी घोषणापत्र में वादा किया था कि हर थाने में एक एंटी-रोमियो दल का गठन किया जाएगा. ‘लव जेहाद’ को लेकर योगी आदित्यनाथ के बयानों को मीडिया में काफी जगह मिली थी. इनके कारण उनकी छवि आक्रामक बनी. क्या योगी मुसलमानों के डर को कम करने वाला बयान देंगे? मंदिर वहीं बनेगा?
योगी के नाम की घोषणा के बाद सामान्य व्यक्ति की पहली प्रतिक्रिया है, अब अयोध्या के मंदिर का मामला उठेगा? अमित शाह ने कहा था, हम सांविधानिक मर्यादा के अंदर रहकर मंदिर निर्माण करेंगे. क्या इस दौरान सुप्रीम कोर्ट का फैसला आएगा? इस समस्या का क्या कोई अंतिम समाधान होगा?
श्मशान और कब्रिस्तान के जुलमों का प्रचार
चुनाव प्रचार के दौरान श्मशान और कब्रिस्तान के जुमलों का खूब प्रचार हुआ था. भारतीय जनता पार्टी मुस्लिम तुष्टीकरण का सवाल उठाती रही है. अमित शाह ने एक इंटरव्यू में कहा था, तुष्टीकरण की राजनीति के खिलाफ बोलना जनता की आवाज उठाना है.
अब प्रदेश में बीजेपी के पास प्रचंड बहुमत है और योगी जैसा मुख्यमंत्री. क्या कड़वाहट बढ़ेगी? या इसका उलट होगा?
हिचकिचाहट खत्म
माना जा रहा है कि प्रचंड बहुमत मिलने के बाद से बीजेपी की हिचकिचाहट खत्म हो गई है और वह खुलकर फैसले करने की स्थिति में आ गई है.
ऐसा है तो उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री का नाम तय करने में इतनी देर क्यों लगी? उप मुख्यमंत्रियों के नाम क्यों लिए जा रहे हैं? क्या यह असमंजस का संकेत नहीं है? क्या कमजोरी नहीं और वैसी ही जातीय राजनीति नहीं जिसके बीज कांग्रेस ने बोए थे?
ताश के पत्तों की तरह यह ब्लाइंड चाल नहीं है. नेतृत्व ने इन सवालों पर जरूर विचार किया होगा. लगता है कि पार्टी ने सोच-समझकर यह जोखिम उठाया है, क्योंकि उसके पास वक्त है और विशाल बहुमत भी. ऐसा मौका हमेशा नहीं आता.
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