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योगी सरकार के एक साल: गायों-किसानों का हो रहा बुरा हाल

इधर बुदंलखंड के किसान अन्ना जानवरों से परेशान हैं. अन्ना प्रथा बुंदेलखंड में प्रचलित है. इसके तहत ऐसी गायें जो दूध देना बंद कर देती है उसे खुला छोड़ दिया जाता है

Updated On: Mar 22, 2018 08:04 PM IST

FP Staff

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योगी सरकार के एक साल: गायों-किसानों का हो रहा बुरा हाल

एडिटर नोटः खबर लहरिया एक स्वतंत्र नारीवादी समाचार मंच है. जिसमें महिला पत्रकारों के साथ ग्रामीण उत्तर प्रदेश और उसके बाहर की रिपोर्टिंग की गई है. योगी सरकार के एक पूरे होने पर खबर लहरिया सरकार के प्रदर्शन की पड़ताल कर रही है. इस दौरान वह किसान ऋण छूट, एंटी रोमियो दस्ता और गौरक्षा जैसे मुद्दों की हकीकत खंगालेगी. फ़र्स्टपोस्ट इन रिपोर्टों को प्रकाशित करेगा.

फ़र्स्टपोस्ट में छपी खबर के मुताबिक योगी सरकार ने 19 मार्च 2017 को शपथ ली थी. अप्रैल 2017 में नई योजनाओं का एलान करना शुरू कर दिया था. इसमें प्रमुख तौर पर किसान कर्जमाफी, गौरक्षा और एंटी रोमियो दस्ता का गठन था. अब सवाल ये उठता है कि क्या किसानों को राहत मिली? क्या गायों के सुरक्षा के इंतजाम हुए, गौशालाओं का निर्माण हुआ? क्या लड़कियों-महिलाओं की सुरक्षा सुनिश्चित की गई?

योगी सरकार इसे एक साल नई मिसाल का नाम दे रही है. चुनावों के वक्त बीजेपी के लोक संकल्प पत्र में गोरक्षा को ध्यान में रखकर प्रदेश में डेयरी उद्योग को बनाने की बात कही थी. लेकिन एक साल बाद भी ये योजना अमलीजामा पहने नहीं दिख रही है.

योगी ने की थी 14 नई डेयरी बनाने की घोषणा 

उस वक्त योगी ने कहा था गाय भारत की ऋषि और कृषि प्रधान व्यवस्था की आधार रही है. वह हमारी आस्था के प्रति एक सिंबल है. गांवों को फोकस करके 14 नई डेयरियां अगले साल तक तैयार हो जाएगी और प्रत्येक डेयरी कोई पांच लाख लीटर, कोई तीन लाख लीटर कोई एक लाख लीटर उत्पादन करेगी.

इधर बुदंलखंड के किसान अन्ना जानवरों से परेशान हैं. अन्ना प्रथा बुंदेलखंड में प्रचलित है. इसके तहत ऐसी गायें जो दूध देना बंद कर देती है उसे खुला छोड़ दिया जाता है. इसके साथ ही बैलों को भी बूढ़ा होने पर खुला छोड़ दिया जाता है. यह किसानों के खेतों में जाकर फसल चौपट कर जाते हैं. क्योंकि पालनेवाले इन्हें खाना देने के बजाए, खुला छोड़ देते हैं.

A man from the cattle herding Mundari tribe stands next to a cow in a settlement near Terekeka

अब मऊ मानिकपुर के विधायक आरके पटेल का कहना है कि किसान अगर सरकार पर आश्रित हो जाएगा तो यह रोग दूर नहीं होगा. इसलिए उसे जागरुक होना पड़ेगा. अपनी फसल को बचाना है तो उसे ही आगे आना होगा. इसका रोग किसान है इसका इलाज भी किसान है. यूपी का सूखाक्षेत्र बुंदेलखंड अपनी कम पैदावार और एक फसली जमीन होने के कारण जानवर छोड़ने का चलन आज अन्ना प्रथा का रूप ले चुका है. पर छोड़े हुए अन्ना जानवर भी खाने की खोज में खेतों में ही आ जाते हैं.

महोबा के किसान कल्लू बताते हैं कि शासन स कोई लाभ नहीं है, रात दिन परेशान हैं, इनके खाने की व्यवस्था की जाए, नहीं तो अऩ्न खा ही लेंगे. महोबा के बरबई गांव के ग्राम प्रधान देवीचरण कहते हैं गांव में गौशाला बनाने पर राहत मिल रही है, यह थोड़ा बहुत खेत दिख रहे हैं, वह भी नहीं दिखता.

योगी सरकार के दो बजट पर नजर मारें तो बजट 201718 में कान्हा गौशाला और बेसहरा पशु आश्रय योजना के लिए कांजीहाउस (पशु शेल्टर होम्स) बनाने के लिए 40 करोड़ दिए गए थे. बजट 2018-19 में कान्हा गौशाला और बेसहारा पशु आश्रय योजना के लिए 98 करोड़ 50 लाख रुपए दिए गए.

अन्ना पशु के परेशान किसान का कोई रखवाला नहीं 

किसान कहते हैं रात दिन खेतों में प्लास्टिक पन्नी तानकर पड़े रहते हैं, परेशान हैं, चिल्लाते रहते हैं, 250 से अधिक अन्ना जानवर पसरे हैं. वह फसल बर्बाद किए जा रहे हैं. वह निराश हैं कि इधर खेतों से पशु अन्न खाए जा रहे हैं, उधर गौशालाओं के निर्माण के लिए बजट ही तैयार हो रहा है.

बीजेपी के प्रदेश की सत्ता में शानदार विजय के लिए बुंदेलखंड क्षेत्र का योगदान नहीं भूला जा सकता है. चुनावी वादों में भी अन्ना जानवर से निदान सबसे ऊपर था. लेकिन आज सरकारी सहयोग से नहीं बल्कि निजी सहयोग से गौशाला चल रही है.

रजिस्टर्ड गौशालों को प्रति पशु 30 रुपए दिए जा रहे हैं. चित्रकूट में 60 से अधिक गौशालाएं हैं, लेकिन एक भी सरकारी नहीं. इससे ही फसलों की रक्षा गायों से की जाती है. चित्रकूट के पशु चिकित्सक देवेंद्र सिंह कहते हैं कि एक भी गौशालाओं को अनुदान नहीं मिला है, जबकि कई इसमें रजिस्टर्ड हैं.

पिछले साल 5 नवंबर को विश्व हिंदू परिषद के गौरक्षा अधिवेशन में उन्होंने चेतावनी देते हुए कहा था कि प्रदेश में जो गाय से क्रूरता करेगा, वह जेल में होगा. लेकिन सरकार की तरफ से गौरक्षा का सारा भार जनता के कंधे ही झेल रहे हैं.

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