बिहार में साल 2017 बदलते राजनीतिक समीकरणों के लिहाज से बेहद दिलचस्प रहा. मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने जेडीयू का साथ छोड़ बीजेपी दामन थाम लिया.
इस वर्ष प्राकृतिक आपदा ने भी बिहार में भारी तबाही मचाई. उत्तरी बिहार के 19 जिलों में बाढ़ के कारण करीब दस लाख लोग बेघर हो गए और 500 से अधिक लोगों की जान चली गई.
नई सरकार के गठन के कुछ ही समय बाद सृजन घोटाला सामने आया जो राजकोष से एक गैर सरकारी संगठन को सैकड़ों करोड़ रूपए धोखे से ट्रांसफर करने से जुड़ा था. इस मामले में राज्य सरकार ने सीबीआई जांच के आदेश दिए.
शराबबंदी से बिगड़े हालात
राज्य में शराबबंदी के जमीनी क्रियांवयन पर जहरीली शराब के कारण होने वाली मौत की घटनाओं ने सवालिया निशान लगाए. जहरीली शराब के कारण मौत की घटना रोहतास और वैशाली जिलों में हुई. समस्तीपुर में शराब तस्करों ने एक पुलिसकर्मी की हत्या कर दी. इसके अलावा राज्यभर से बड़े पैमाने पर शराब की बरामदगी हुई.
बेहद नाटकीय घटनाक्रम में नीतीश कुमार ने महागठबंधन का साथ छोड़ दिया.
नरेंद्र मोदी को प्रधानमंत्री पद का उम्मीदवार बनाए जाने के विरोध में उन्होंने चार वर्ष पहले ही बीजेपी का 17 वर्ष साल का साथ छोड़ दिया था और महागठबंधन बनाया था.
जब नीतीश ने तोड़ा महागठबंधन और थामा बीजेपी का दामन
नरेंद्र मोदी और नीतीश कुमार के बीच तल्ख संबंधों में गर्मजोशी का संकेत जनवरी में प्रकाश उत्सव के मौके पर मिला. गुरू गोविंद सिंह की 350वी जयंती पर आयोजित कार्यक्रम में मोदी और नीतीश कुमार ने मंच साझा किया और एकदूसरे की तारीफों के पुल बांधे.
नोटबंदी के मोदी के फैसले के समर्थन में खुलकर सामने आकर नीतीश ने अपने गठबंधन सहयोगियों को नाराज कर दिया था.
महागठबंधन में सबकुछ ठीक नहीं है इसके स्पष्ट संकेत तब मिले जब नीतीश ने राष्ट्रपति चुनाव में रामनाथ कोविंद को समर्थन देने का फैसला किया.
घटनाक्रम तेजी से बदला जब सीबीआई ने होटल घोटाले में लालू प्रसाद, उनके छोटे बेटे और तत्कालीन उप मुख्यमंत्री तेजस्वी यादव समेत उनके परिजनों के खिलाफ मामला दर्ज किया. नीतीश ने कहा कि यादव इस बारे में सार्वजनिक तौर पर स्पष्टीकरण दें, उनकी इस मांग को आरजेडी ने ठुकरा दिया और इसके बाद उन्होंने मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा दे दिया.
बीजेपी ने नई सरकार को समर्थन देने की घोषणा की और इस्तीफा देने के 24 घंटे के भीतर नीतीश ने फिर से मुख्यमंत्री पद की शपथ ली.
शरद यादव और अली अनवर हुए नीतीश के खिलाफ
जेडीयू के भीतर भी उथल पुथल मच गई. पार्टी के पूर्व अध्यक्ष शरद यादव और नीतीश के कभी करीबी रहे राज्यसभा सांसद अली अनवर ने नीतीश के खिलाफ विद्रोह कर दिया.
पार्टी के आदेश को नजरअंदाज करते हुए शरद यादव और अली अनवर आरजेडी के कार्यक्रमों में शामिल होते रहे और नीतीश कुमार पर 2015 के विधानसभा चुनाव के जनादेश के साथ विश्वासघात का आरोप लगाते रहे.
नीतीश जो जेडीयू अध्यक्ष भी हैं, उन्होंने पार्टी से शरद के सभी करीबियों को बाहर का रास्ता दिखा दिया.उन्होंने चुनाव आयोग के समक्ष अपना पक्ष मजबूती से रखा जिससे पार्टी के चिन्ह पर विरोधी धड़े का दावा खारिज हो गया.
शरद यादव और अली अनवर को राज्यसभा की सदस्यता के लिए अयोग्य करार दे दिया गया.
महागठबंधन टूटने का असर कांग्रेस पर भी पड़ा
महागठबंधन टूटने का असर कांग्रेस की राज्य इकाई में भी दिखा. यह दो धड़ों में बंट गई, एक धड़ा जो नीतीश का करीबी था और दूसरा जो आरजेडी के पक्ष में था.
अंदरूनी लड़ाई के चलते बिहार प्रदेश कांग्रेस समिति के अध्यक्ष पद से अशोक चौधरी को हटा दिया गया.
जब लालू की मुश्किलें बढ़ने लगी
आरजेडी की परेशानियां भी खत्म होने का नाम नहीं ले रहीं थी. चारा घोटाला से जुड़े मामलों में लालू प्रसाद को झारखंड की सीबीआई अदालत में नियमित रूप से पेश होना था.
उनकी बेटी और राज्यसभा सदस्य मीसा भारती, उनके पति शैलेष तथा तेजस्वी से धन शोधन के एक मामले में ईडी ने पूछताछ की.
छह समन भेजे जाने के बावजूद राबड़ी देवी ने दिल्ली में ईडी के सामने पेश होने से इनकार कर दिया जिसके बाद ईडी के अधिकारियों ने पटना जाकर उनसे पूछताछ की.
नीतीश सरकार ने आउटसोर्स सेवाओं में आरक्षण का अहम फैसला किया, जिसे आलोचकों ने पिछले दरवाजे से निजी क्षेत्र में कोटा प्रणाली लाने का प्रयास बताया.
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