पहले बेटी बचाओ-बेटी पढ़ाओ फिर उज्जवला, शौचालय बनवाने का अभियान और अब तीन तलाक पर कानून बनाने की कोशिश...यह सब महिला केंद्रित मुद्दे हैं. महिलाओं से जुड़े मसलों पर काम को सिर्फ संयोग नहीं माना जा सकता. सवाल यह उठता है कि क्या मोदी सरकार महिलाओं को लुभाकर 2019 का बेड़ा पार करना चाहती है?
सियासी जानकारों का कहना है कि सरकार आधी आबादी की चुनावी ताकत को कैश करना चाहती है, जबकि इस पर अन्य दलों का ध्यान थोड़ा कम है. चुनाव आयोग के आंकड़ों के मुताबिक इस समय लगभग 40 करोड़ महिला मतदाता हैं, जबकि 44 करोड़ पुरुष वोटर. ऐसे में बीजेपी मान रही है कि अगर महिलाओं से जुड़े सवाल उठाए जाएंगे तो फायदा मिल सकता है.
राजनीतिक जानकारों का मानना है कि तुरंत तीन तलाक के खिलाफ आवाज उठाने पर बीजेपी को इसी साल हुए यूपी विधानसभा चुनाव में कुछ मुस्लिम महिलाओं का साथ मिला था. इसमें उज्जवला योजना का भी फायदा हुआ. पीएम मोदी ने उत्तर प्रदेश के बलिया से मई 2016 में इसकी शुरुआत की.
जिसके तहत गरीब परिवारों की पांच करोड़ महिलाओं को 3 साल में मुफ्त रसोई गैस कनेक्शन उपलब्ध कराना है. इसका मकसद लकड़ी और उपले जैसे प्रदूषण फैलने वाले ईंधन के उपयोग को कम करना है. पीएम ने इसे महिला सशक्तिकरण को बढ़ावा देने और उनके मान सम्मान से जोड़ा.
पीएम ने 22 जनवरी 2015 को पानीपत (हरियाणा) में लड़कियों की संख्या बढ़ाने और उन्हें सशक्त करने के लिए बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ योजना की शुरुआत की. इससे लोगों में बेटियों को लेकर कुछ जागरूकता आई है. शौचालय बनवाने का अभियान बहुत हद तक महिलाओं से जुड़ा हुआ है क्योंकि शौचालय के अभाव में उन्हें सबसे ज्यादा परेशानी का सामना करना पड़ता था. इसीलिए यूपी में तो इसे 'इज्जत घर' कहा जाने लगा है.
अब तीन तलाक पर कानून बनवाने के लिए लोकसभा में बिल पास करवाकर मोदी सरकार ने मुस्लिम महिलाओं को लुभाने का दांव खेला है. कई मुस्लिम महिला संगठनों ने इस पर सरकार की सराहना की है.
कब पास होगा महिला आरक्षण बिल?
अब रही महिला आरक्षण बिल की बात तो यह बीजेपी के लिए अच्छा मौका है. लेकिन उसने अभी इसे लेकर पत्ते नहीं खोले हैं. महिला आरक्षण विधेयक की मुखर विरोधी समाजवादी पार्टी के इस समय सिर्फ पांच और राष्ट्रीय जनता दल के चार सांसद हैं. ये दोनों इस लोकसभा में विरोध करने की स्थिति में नहीं हैं. जेडीयू अब बीजेपी के साथ है. शरद यादव हाशिए पर हैं.
यह बिल राज्यसभा में पास हो गया था, इसलिए साल 2014 में यूपीए की सरकार जाने के बावजूद यह लेप्स नहीं हुआ था. तब से यह बिल संसद में पेंडिंग है. ऐसे में बिल कानून का रूप देने का यह सबसे अनुकूल समय है. बीजेपी ने पहले ही सुमित्रा महाजन, सुषमा स्वराज और निर्मला सीतारमन के रूप महिलाओं को अहम पद दिए हैं.
कांग्रेस की तत्कालीन अध्यक्ष सोनिया गांधी ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी मोदी को पत्र लिखकर कहा था कि उन्हें लोकसभा में अपनी पार्टी के बहुमत का लाभ उठाते हुए महिला आरक्षण विधेयक को पारित करवाना चाहिए.
डोनाल्ड ट्रंप के लिए कैंपेन कर चुकी कंपनी 'कैंब्रिज एनालिटिका' से जुड़े राजनीतिक विश्लेषक अंबरीश त्यागी कहते हैं, 'नीतीश कुमार ने बिहार में महिलाओं को पंचायत में 50 फीसदी आरक्षण दिया. इसका फायदा उन्हें दूसरे चुनाव में मिला. वहां महिलाओं का वोट प्रतिशत 2015 के चुनाव में पुरुषों से ज्यादा था. इसके बाद जब वह सत्ता में आए तो शराब बंदी कर दी. दहेज के खिलाफ अभियान चला रहे हैं. ये काम सीधे तौर पर महिलाओं से जुड़े हुए हैं. जब महिलाओं के लिए काम करने पर नीतीश कुमार को फायदा हो सकता है तो फिर बीजेपी और मोदी को क्यों नहीं?'
हालांकि राजनीतिक विश्लेषक आलोक भदौरिया कहते हैं कि 'राजनीतिक दल 50 साल से सपने ही बेच रहे हैं. पार्टियों का काम है कि कुछ ऐसा करो जिससे लगे कि समाज के लिए काम हो रहा है, लेकिन उन्हें समाज सुधारक मानने की गलती नहीं करनी चाहिए. क्योंकि राजनीति तो होती ही है राजनीति करने के लिए. ये सब काम उनके उद्देश्य प्राप्ति के साधन हैं. यह दिलचस्प है कि बीजेपी ने यूपी विधानसभा चुनाव में किसी भी मुस्लिम को टिकट नहीं दिया लेकिन तीन तलाक के भावनात्मक मुद्दे से काफी महिलाओं का वोट हासिल किया. इससे उत्साहित होकर ही सरकार तीन तलाक पर कानून बनवा रही है.'
बीजेपी महिला मोर्चा की राष्ट्रीय अध्यक्ष विजया रहाटकर ने न्यूज18हिंदी से बातचीत में कहा, 'बीजेपी ने हमेशा दिखाया है कि वो महिलाओं का सम्मान करने वाली पार्टी है. महिलाएं बिल्कुल विश्वास कर सकती हैं कि यह सरकार महिला आरक्षण देगी. मोदी सरकार ने ही मैटरनिटी लीव 12 से बढ़ाकर 26 सप्ताह किया है. हमने ही पहली महिला रक्षामंत्री दिया.'
(न्यूज18 के लिए ओम प्रकाश की रिपोर्ट)
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