अयोध्या में राम मंदिर बनाने को लेकर लगातार सरकार से अध्यादेश लाने की मांग की जा रही है. संघ परिवार से लेकर साधु-संतों की तरफ से लगातार इस मुद्दे पर सरकार पर दबाव बनाने की कोशिश भी की जा रही है. लेकिन, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने फिलहाल अध्यादेश लाने की संभावना को खारिज कर दिया है. न्यूज एजेंसी एएनआई को दिए इंटरव्यू में पीएम ने कहा है कि ‘जब राम मंदिर मामले में कानूनी प्रकिया पूरी हो जाएगी, उसके बाद ही अध्यादेश पर विचार किया जा सकता है.’
पीएम ने कहा, 'सुप्रीम कोर्ट में यह मामला थोड़ा धीमा है क्योंकि कांग्रेस के वकील खलल पैदा कर रहे हैं. बीजेपी के घोषणा-पत्र में भी कहा गया है कि इस मुद्दे का हल संविधान के दायरे में रहकर ही निकल सकता है.' पीएम ने कहा कि अदालती प्रक्रिया खत्म होने दीजिए. जब यह खत्म हो जाएगी, उसके बाद बतौर सरकार हमारी जो भी जवाबदारी होगी, हम उस दिशा में सारी कोशिशें करेंगे.
प्रधानमंत्री मोदी ने कहा कि ‘70 सालों तक सत्ता में रहने वाले लोगों ने अयोध्या का हल निकालने के रास्ते में कई व्यवधान पैदा करने की कोशिश की. इसलिए कांग्रेस से मेरा अनुरोध है कि उन्हें अपने वकीलों को देश की शांति को ध्यान में रखते हुए अयोध्या विवाद में खलल डालने से रोकना चाहिए. इस मुद्दे को राजनीतिक तराजू में नहीं तौलना चाहिए. कानूनी प्रक्रिया को अपना रास्ता तय करने देना चाहिए.
क्या है प्रधानमंत्री के बयान का मतलब?
लोकसभा चुनाव में अब महज तीन से चार महीने का वक्त बचा है. मार्च के पहले हफ्ते तक चुनाव की तारीखों की घोषणा भी हो सकती है. जिसके बाद आचार संहिता भी लागू हो जाएगी. यानी सरकार के पास किसी भी मुद्दे पर आगे बढ़ने और उस पर ठोस कदम उठाने के लिए अब महज दो महीने का ही वक्त बचा है.
ऐसे में प्रधानमंत्री की तरफ से राम मंदिर के मुद्दे पर कानूनी प्रक्रिया खत्म होने का इंतजार करने की बात कहना साफ-साफ संकेत दे रहा है कि अब लोकसभा चुनाव 2019 से पहले सरकार अध्यादेश नहीं लाएगी. हालांकि सुप्रीम कोर्ट में नए साल में 4 जनवरी को इस मामले में सुनवाई भी होनी है. उस दिन ही तय होगा कि कोर्ट क्या लगातार इस मामले में सुनवाई कर जल्द से जल्द राम मंदिर मुद्दे पर फैसला दे देगा या फिर, यह मुद्दा और लंबा चलेगा.
अगर इस मामले की लगातार सुनवाई नहीं होती है तो फिर राम मंदिर के मुद्दे पर फैसले में और देरी हो सकती है. लिहाजा लोकसभा चुनाव 2019 से पहले फैसला आना संभव नहीं होगा.
सरकार के सामने यही सबसे बड़ी मजबूरी है. राम मंदिर का मुद्दा बीजेपी के एजेंडे में हमेशा से रहा है. यहां तक कि 2014 के लोकसभा चुनाव के वक्त घोषणा-पत्र में भी इसका जिक्र था. उस वक्त भी संविधान के दायरे में ही मंदिर मुद्दे का हल निकालने की बात कही गई थी. उसके बाद भी बीजेपी का रुख हमेशा यही रहा है कि या तो आपसी बातचीत के जरिए सहमति बनाकर या फिर सुप्रीम कोर्ट के आदेश के तहत ही मंदिर निर्माण का मार्ग प्रशस्त होना चाहिए. एक बार फिर प्रधानमंत्री मोदी ने भी उसी बात को दोहराया है.
भागवत के बयान से गरमाया था मंदिर मुद्दा!
राम मंदिर निर्माण को लेकर सियासी चर्चा शुरू होने के पीछे आरएसएस के सरसंघचालक मोहन भागवत का वो बयान है जिसमें उन्होंने पिछले साल 2018 में विजयादशमी के मौके पर अपने सालाना भाषण में राम मंदिर मुद्दे पर कानून बनाने की मांग कर दी थी.
भागवत ने कहा था, ‘यह मामला कोर्ट में है. इस मामले पर फैसला जल्द से जल्द आना चाहिए. ये भी साबित हो चुका है कि वहां मंदिर था. सुप्रीम कोर्ट इस मामले को प्राथमिकता नहीं दे रहा है.’ मोहन भागवत ने कहा कि अगर किसी कारण, अपनी व्यस्तता के कारण या समाज की संवेदना को न जानने के कारण कोर्ट की प्राथमिकता नहीं है तो सरकार सोचे कि इस मंदिर को बनाने के लिए कानून कैसे आ सकता है और जल्द ही कानून को लाए. यही उचित है.’
सुनवाई में देरी से नाखुश संघ परिवार
सुप्रीम कोर्ट में राम मंदिर मुद्दे पर 29 अक्टूबर 2018 से सुनवाई होनी थी, लेकिन, इस दिन कोर्ट ने जनवरी 2019 तक सुनवाई को टाल दिया था. कोर्ट के आदेश से बीजेपी और सरकार को झटका लगा था, जो जल्द से जल्द सुनवाई चाह रहे थे. संघ प्रमुख ने सुप्रीम कोर्ट में जनवरी तक इस मामले की सुनवाई टाले जाने के बाद सरकार से इस मसले पर कानून बनाने की मांग की थी.
संघ प्रमुख मोहन भागवत की तरफ से राम मंदिर पर कानून बनाने की मांग करने के बाद तो संघ परिवार के भीतर मंदिर मुद्दे को गरमाने की कसरत शुरू हो गई. वीएचपी की अगुआई में साधु-संतों ने धर्मसभा की बैठक कर सरकार से कानून बनाने को कहा. 25 नवंबर को राम की नगरी अयोध्या के अलावा पुणे और बेंगलुरू में भी धर्मसभा का आयोजन किया गया.
इसके बाद 9 दिसंबर को दिल्ली में धर्मसभा का आयोजन कर वीएचपी ने एक बार फिर से सरकार पर दबाव बनाने की कोशिश की. सरकार्यवाहक भैयाजी जोशी से लेकर वीएचपी के नेताओं ने इस दिन राम मंदिर मुद्दे को फिर से गरमाने की कोशिश की. साधु-संतों की तरफ से भी इसी तरह का अल्टीमेटम दिया गया. दिल्ली की धर्मसभा में पहुंचे अवधेशानंद गिरी ने चेतावनी दी थी कि ‘अगर अध्यादेश नहीं आता है तो 31 जनवरी को प्रयागराज में अगले कदम का शंखनाद करेंगे.’
प्रयागराज की धर्मसभा पर होगी नजर
31 जनवरी से 1 फरवरी तक दो दिनों की वीएचपी की धर्मसभा प्रयागराज में कुंभ के दौरान आयोजित की गई है. वीएचपी की दिल्ली की धर्मसभा में पहुंचे साधु-संत सरकार को अल्टीमेटम दे चुके हैं कि अगर अध्यादेश लाकर या कानून के जरिए राम मंदिर निर्माण का रास्ता साफ नहीं किया गया तो फिर पूरे देश में आंदोनल ही एक मात्र विकल्प होगा.
अनुभूतानंद जी महाराज ने भी धमकी दी थी कि ‘जिस तरह राम मंदिर पर खड़ा बाबरी ढ़ांचा गिराया गया था उसी तरह से मंदिर भी बन सकता है.’ अब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की तरफ से साल 2019 के पहले ही दिन अध्यादेश पर सरकार का रुख साफ करने के बाद साधु-संतों के साथ-साथ वीएचपी को भी झटका लगा है.
31 जनवरी और 1 फरवरी को होने वाले प्रयागराज में कुंभ के दौरान धर्मसभा पर सबकी नजरें टिकी होंगी, क्योंकि, उसी दिन वीएचपी की तरफ से आयोजित धर्मसभा में साधु-संतों का अल्टीमेटम भी खत्म हो रहा है. लेकिन, प्रधानमंत्री मोदी के अध्यादेश पर फिलहाल विराम लगा देने के बाद संघ परिवार भी इस मुद्दे पर शायद ही कोई सख्त तेवर दिखा पाए, क्योंकि चुनावी साल में संघ चाहेगा कि मंदिर मुद्दा गरमा कर बीजेपी को फायदा तो मिल जाए लेकिन, मंदिर मुद्दे पर मोदी को परेशान न किया जाए.
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