उत्तर प्रदेश की 10 में से 9 राज्यसभा की सीटें जीतकर बीजेपी ने समाजवादी पार्टी- बहुजन समाज पार्टी गठबंधन को मात दे दी है. 8 सीटों पर बीजेपी और 1 सीट पर एसपी के जीत की कहानी तो पहले से ही तय थी. लेकिन, असल लड़ाई दसवीं सीट को लेकर थी जहां बीजेपी ने अनिल अग्रवाल को मैदान में उतारा था. उधर, बीएसपी की तरफ से पूर्व विधायक भीम राव अंबेडकर मैदान में थे. आंकडों के खेल में आखिरकार बीएसपी के उम्मीदवार को मात खानी पड़ी.
इस जीत से बीजेपी खेमे में खुशी की लहर दौड़ गई है. देर रात पार्टी के लखनऊ दफ्तर में पार्टी कार्यकर्ताओं के साथ जश्न मनाने प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ भी पहुंच गए. योगी के चेहरे पर जीत की खुशी की झलक से ज्यादा संतोष का भाव दिख रहा था. गोरखपुर की हार का घाव इतना गहरा था कि योगी आदित्यनाथ के लिए इस जीत ने मरहम का काम कर दिया है.
योगी आदित्यनाथ का इस जीत के बाद दिया बयान काफी महत्वपूर्ण था. क्योंकि एक सीट पर एसपी की जया बच्चन को जीत मिल गई है, केवल दूसरी सीट पर ही अखिलेश यादव ने बीएसपी उम्मीदवार भीम राव अंबेडकर को समर्थन दिया था. जिस पर उनकी हार हो गई थी.
योगी ने एसपी-बीएसपी के इस गठबंधन में बीएसपी को रिटर्न गिफ्ट नहीं मिलने पर तंज भी कसा. योगी ने कहा, ‘इससे समाजवादी पार्टी का अवसरवादी चेहरा सामने आ गया है, जो किसी से ले तो सकती है, लेकिन दे नहीं सकती.’ योगी ने इशारों ही इशारों में इससे समझने की नसीहत भी बीएसपी को दे डाली.
लेकिन, इस तंज में उनकी मायावती के प्रति हमदर्दी में एसपी-बीएसपी के एक होने के पीछे का डर भी नजर आ रहा था. गोरखपुर और फूलपुर में हुए उपचुनाव में बीएसपी ने एसपी उम्मीदवारों को समर्थन दे दिया था तो नतीजा सामने है. अब योगी को लगता है कि मायावती को शायद यह बात अखर जाए कि बीएसपी उम्मीदवार को सुरक्षित सीट क्यों नहीं दी गईं. क्योंकि एसपी की सांसद जया बच्चन फिर से राज्यसभा पहुंच गई हैं.
योगी आदित्यनाथ एसपी-बीएसपी गठबंधन के एक होने से खुश नहीं हैं. अब इशारों ही इशारों में राज्यसभा चुनाव में मायावती को ठगा हुआ बताकर अखिलेश यादव के साथ जाने से बचने की नसीहत दे रहे हैं.
कैसे बीजेपी ने बिगाड़ा एसपी-बीएसपी का खेल?
यूपी में बीजेपी के विधायकों की संख्या 312 थी लेकिन, एक विधायक के निधन के कारण यह संख्या 311 रह गई है. सहयोगी अपना दल के विधायकों की संख्या 9 और ओमप्रकाश राजभर की पार्टी सुहेलदेव भारतीय समाज पार्टी के विधायकों की संख्या 4 है. ऐसे में बीजेपी के पास सहयोगियों के साथ मिलकर 324 विधायकों की संख्या है.
दूसरी तरफ एसपी के विधायकों की संख्या 47 है. जबकि बीएसपी के विधायकों की संख्या 19 है. कांग्रेस के 7, निर्दलीय 3 और आरएलडी के 1 और निषाद पार्टी के 1 विधायक हैं.
संख्या बल के हिसाब से एक राज्यसभा उम्मीदवार के लिए 37 विधायकों के समर्थन की जरूरत थी. बीजेपी को इस हिसाब से अपने सहयोगी दलों के साथ 8 सीटों को जीतने में कोई परेशानी नहीं थी. इसी तरह एसपी की भी 1 सीट पक्की थी.
बीजेपी ने अपने 8 उम्मीदवारों के लिए 39-39 विधायकों के प्रथम वरीयता के वोट तय की थी. इन सभी उम्मीदवारों की आसानी से जीत हो गई.
लेकिन, दसवीं सीट के लिए लड़ाई बीजेपी के अनिल अग्रवाल और बीएसपी के भीम राव अंबेडकर के बीच थी. भीमराव अंबेडकर को प्रथम वरीयता के 33 वोट मिले जबकि बीजेपी के अनिल अग्रवाल को प्रथम वरीयता के 22 वोट मिले. किसी भी उम्मीदवार को 37 वोट नहीं मिल पाए जिसके बाद दूसरी वरीयता के वोटों की गिनती हुई जिसके आधार पर बीजेपी ने बाजी मार ली.
बीजेपी के 9वें उम्मीदवार के पक्ष में की क्रॉस वोटिंग
बीजेपी के पक्ष में एसपी के विधायक नितिन अग्रवाल और बीएसपी के विधायक अनिल कुमार सिंह ने क्रॉस वोटिंग की. इसके अलावा निषाद पार्टी के विधायक विजय मिश्रा ने भी बीजेपी उम्मीदवार का साथ दिया.
निर्दलीय विधायक अमनमणि त्रिपाठी और विनोद सरोज ने भी वोटिंग में बीजेपी उम्मीदवार का ही साथ दिया. निर्दलीय विधायक राजा भैया के भी वोट देने के बाद मुख्यमंत्री आदित्यनाथ से मिलने के बाद से ही उनके वोट को लेकर अटकलें लगती रहीं.
जेल में बंद बीएसपी विधायक मुख्तार अंसारी और एसपी के विधायक हरिओम यादव अपना वोट नहीं डाल पाए, जिससे बीएसपी उम्मीदवार को झटका लगा.
इस तरह बीएसपी उम्मीदवार भीम राव अंबेडकर के पक्ष में बीएसपी के 17, एसपी के 8, कांग्रेस के 7, आरएलडी के 1 विधायकों का ही समर्थऩ मिल पाया. हालाकि एक निर्दलीय उम्मीदवार या ओमप्रकाश राजभर की पार्टी के एक विधायक के क्रॉस वोटिंग कर बीएसपी को समर्थन करने के कयास लगते रहे. लेकिन, सभी गुणा-गणित के बावजूद बीएसपी उम्मीदवार को जरूरी मत नहीं मिल पाए.
इस तरह दूसरी वरीयता के वोटों की गिनती में बीजेपी उम्मीदवार अनिल अग्रवाल ने बीएसपी उम्मीदवार भीमराव अंबेडकर को मात दे दी.
अब आगे क्या होगा?
राज्यसभा चुनाव में बीजेपी की एकतरफा जीत के बाद अब पार्टी उत्साहित है. पार्टी के कार्यकर्ताओं में गोरखपुर और फूलपुर लोकसभा सीट की हार के बाद जो निराशा का माहौल बना था वो थोड़ा कम होगा.
अब सबकी नजरें कैराना लोकसभा उपचुनाव पर टिकी रहेंगी. कैराना से बीजेपी सांसद हुकुम सिंह के निधन के कारण कुछ महीनों में वहां उपचुनाव होना है, इसमें फिर से एक लड़ाई देखने को मिल सकती है.
कैराना में बीजेपी के खिलाफ क्या फिर से एसपी-बीएसपी गठबंधन देखने को मिलेगा. क्या बीजेपी को मात देने के लिए अखिलेश-मायावती फिर से साथ आएंगे. इसके लिए थोड़ा इंतजार करना होगा. क्योंकि राज्यसभा चुनाव में हार के बाद मायावती को रिटर्न गिफ्ट नहीं मिल पाया है.
कैराना उपचुनाव से पहले वो नफा-नुकसान का आकलन जरूर करेंगी. तब तक योगी आदित्यनाथ आग में घी डालने की कोशिश कर रहे हैं. इस उम्मीद में कि एसपी-बीएसपी दोनों अब कैराना में भी साथ नहीं होने पाएं.
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