live
S M L

क्या शिलान्यास वाली जगह पर होगा राम मंदिर निर्माण?

राजनीतिक वजहों से एजेंडा को नरम किया जा रहा है. ताकि पब्लिक को बताया जाए कि मंदिर निर्माण प्रारंभ हो गया है

Updated On: Jan 30, 2019 12:24 PM IST

Syed Mojiz Imam
स्वतंत्र पत्रकार

0
क्या शिलान्यास वाली जगह पर होगा राम मंदिर निर्माण?

'रामलला हम आएंगे मंदिर वहीं बनाएंगे' का नारा सुनते हुए उम्र बढ़ रही है. 90 के दशक में यह धार्मिक उन्माद का नारा था. जिसको समझने में वक्त लगा है. विश्व हिंदू परिषद की अगुवाई में ये आंदोलन चल रहा है. इसका गवाह पूरा देश है. 2019 के आम चुनाव से पहले सरकार ने सुप्रीम कोर्ट के सामने याचिका दाखिल की है. इसमें गैर विवादित ज़मीन को लौटाने की मांग की गई है.

इस याचिका पर सुनवाई होनी बाकी है. हालांकि सवाल ये उठता है क्या शिलान्यास वाली जगह पर मंदिर निर्माण करने की योजना बनाई जा रही है? केंद्र सरकार की इस अर्जी की हिमायत सुब्रमण्यम स्वामी ने भी की है. इससे सरकार की मंशा ज़ाहिर हो रही है. राजनीतिक वजहों से एजेंडा को नरम किया जा रहा है. ताकि पब्लिक को बताया जाए कि मंदिर निर्माण प्रारंभ हो गया है.

यूपी में बीजेपी परेशान

यूपी में बन रहे राजनीतिक समीकरण से बीजेपी विचलित है. एसपी-बीएसपी के गठबंधन के बाद बीजेपी की परेशानी बढ़ गई है. कांग्रेस के पैंतरे से बीजेपी की अगड़ी जाति की बिसात बिखर सकती है. बीजेपी को आम चुनाव में यूपी की चिंता सता रही है. इसलिए सरकार ने नया दांव खेला है.

हालांकि चुनाव के काउंट डाउन में ये देर से उठाया गया कदम है. गैर विवादित जगह पर मंदिर बनाने का प्रयास 1986 से किया जा रहा है. 1989 में तत्कालीन प्रधानमंत्री राजीव गांधी ने शिलान्यास भी किया, लेकिन तब विवादित जगह पर निर्माण के लिए वीएचपी और बीजेपी अड़ी हुई थीं.

शिलान्यास वाली जगह पर निर्माण

सरकार और बीजेपी ने इस पूरे प्रकरण को गंभीरता से अध्ययन नहीं किया है. सरकार को अंदाजा नहीं था कि इसमें कितना पेंच है. राजनीतिक कारणों से माहौल बना दिया गया है. अब अपनी लाज बचाने के लिए कोर्ट का सहारा लिया जा रहा है. हालांकि इस रिट पेटिशन में खामी है. सुप्रीम कोर्ट में इस मामले के वकील फुज़ैल अहमद अय्यूबी का कहना है कि इस पेटिशन के रिजेक्ट हो जाने की संभावना है क्योंकि 1 मार्च 2003 में इस तरह की पेटिशन दाखिल की गई थी, जिसमें गैर विवादित ज़मीन को रामजन्म भूमि न्यास को सौंपने की गुजारिश की थी.जिसके पांच सदस्यीय बेंच ने 31 मार्च 2003 को खारिज कर दिया था.

इस बेंच ने कहा कि दोनों ज़मीन एक दूसरे से जुड़ी हैं इसलिए विवादित ज़मीन के निपटारे पर ही ये मसला हल होगा. इस पर कोई रिव्यू पेटिशन दाखिल नहीं की गई थी. अब ये मामला भी बड़ी बेंच ही हल कर सकती है. मौजूदा बेंच सिर्फ इसको रेफर कर सकती है.

राजनीति या सही प्रयास

2019 के आम चुनाव के मद्देनज़र ये रिट दाखिल की गई है, जिससे ये माहौल बनाया जा सके कि सरकार कुछ कर रही है. अयोध्या के बगल गोंडा के निवासी और पूर्व चेयरमैन और बीजेपी नेता राजीव रस्तोगी का कहना है कि सरकार गुमराह कर रही है. अब बीजेपी कोर्ट की आड़ में बचना चाहती है. अगर गर्भगृह पर मंदिर निर्माण नहीं करना था तो इतने साल से इसको तूल क्यों दिया जा रहा था.

इस पूरे मामले में यही प्रस्ताव 10 अक्टूबर 1990 को पर्सनल लॉ बोर्ड की तरफ से दिया गया था. पेटिशनर महफूज़ूर्हमान के नुमाइंदे फैज़ाबाद निवासी खालिक अहमद खान का दावा है कि वो इस बैठक में मौजूद थे, जब अली मियां नदवी ने कहा था कि शिलान्यास से राम चबूतरे तक मंदिर बनाया जा सकता है. इसमें कोई एतराज़ नहीं है.

ये बैठक तत्कालीन दो राज्यपाल युनुस सलीम और कृष्णकांत की मौजूदगी में दिल्ली के आन्ध्र भवन में हुई थी. जिसमें मंहत ग्यान दास भी थे. ये बैठक स्वामी चिन्मयानंद ने रखवाई थी. जिसमें अब्दुल करीम पारिक ने सहयोग किया था. हालांकि वीएचपी ने ये प्रस्ताव रद्द कर दिया और कहा कि वो गर्भगृह से ही निर्माण आरंभ करेंगें.

एक बार फिर 2002 में कांची के शंकराचार्य ने मंदिर निर्माण को गैर विवादित जगह पर बनाने का प्रस्ताव दिया था. लेकिन पर्सनल लॉ बोर्ड ने इसका नक्शा मांगा तो फिर वीएचपी पीछे हट गई थी.

बीजेपी की मजबूरी

बीजेपी इस पूरे प्रकरण में फंस गई है. सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई शुरू होगी तब भी कई वर्ष लग सकते हैं. पूर्व में दीपक मिश्रा की अगुवाई वाली बेंच ने इसको टाइटिल सूट ही माना है. यानि ज़मीन का मालिकाना हक किसका है? ये फैसला करने के लिए सभी कागज़ का अध्ययन ज़रूरी है.

इस पूरे मामले के राजनीतिक नफे की बात सोची जा रही है लेकिन इसके नुकसान पर ध्यान नहीं दिया गया है. 1991 के राम लहर के बाद 2017 में पहली बार यूपी में पूर्ण बहुमत की सरकार बन पाई है. हालांकि 2017 से पहले 2012 में एसपी और 2007 में बीएसपी की पूर्ण बहुमत की सरकार बनी है. 1991 के बाद बीजेपी ने जोड़ तोड़ की सरकार बनाई है. लेकिन इस मुद्दे से वोट मिलना कम हो गया था.

बीजेपी को लग रहा है कि जो सपने दिखाए गए हैं. उनका पूरा होना संभव नहीं है. इसलिए मंदिर के नाम पर राजनीति चमकाने की तैयारी हो रही है. हालांकि मंदिर निर्माण का सपना दिखाकर कोई राजनीतिक फायदा नहीं होने वाला है. बीजेपी इस बात को समझ रही है इसलिए आम चुनाव से पहले माहौल बनाने की कोशिश की जा रही है.

अयोध्या एक्ट के तहत भूमि अधिग्रहित

बाबरी मस्जिद के विध्वंस के बाद 7 जनवरी 1993 को तत्कालीन राष्ट्रपति शंकरदयाल शर्मा ने अध्यादेश जारी किया था. इसमें विवादित 2.77 एकड़ ज़मीन के ईर्द-गिर्द 60 एकड़ ज़मीन का भी अधिग्रहण कर लिया था. जिसे बाद में सरकार ने संसद में कानून के तौर पर पारित किया है. जिसे अयोध्या एक्ट कहा जाता है.

इस एक्ट के तहत केंद्र सरकार वाया कमीश्नर फैज़ाबाद के रिसीवर की भूमिका में आ गई है. ये ज़मीन केंद्र सरकार के अधीन थी. लेकिन 31 मार्च 2003 के निर्णय के बाद, बिना कोर्ट के आदेश के कोई निर्माण नहीं हो सकता है.

बीजेपी ने मंदिर निर्माण का विरोध

इस अयोध्या एक्ट के अंतर्गत केंद्र सरकार ने राम मंदिर बनाने का प्रस्ताव किया था. गैर विवादित जगह पर मंदिर ,मस्जिद लाइब्रेरी और म्यूज़ियम बनाने की बात कही थी. लेकिन तब बीजेपी ने विरोध किया था,अब बीजेपी इस ओर कदम बढ़ा रही है.

हालांकि बीजेपी ने कहा कि ये गलत है. केंद्र सरकार दबाव में आ गई और धारा 143 के तहत प्रेसिडेंशियल रेफ्रंर्स के ज़रिए सुप्रीम कोर्ट को रेफर किया, 1994 में अदालत ने इसे स्वीकार किया, लेकिन एक्ट के उस वक्त के प्रावधान को खारिज कर दिया, जिसमें सभी मुकदमों को खत्म करने की बात कही थी. यानि अदालत ने सभी तरह की कार्यवाही को वैध करार दिया था.

इसके बाद 2010 में इलाहाबाद हाईकोर्ट ने 2.77 एकड़ ज़मीन को बराबरी से तीन हिस्से में बांट दिया था. अगर सच में मंदिर निर्माण करना था तो इसके खिलाफ कोर्ट में नहीं आना था. बल्कि अपने हिस्से में निर्माण शुरू करना चाहिए. दरअसल विवाद मंदिर मस्जिद से ज्यादा राजनीति का है. इस राजनीतिक शह मात को समझने की ज़रूरत है.

0

अन्य बड़ी खबरें

वीडियो
KUMBH: IT's MORE THAN A MELA

क्रिकेट स्कोर्स और भी

Firstpost Hindi