जनता दल यूनाइटेड (जेडीयू) से निष्कासित नेता शरद यादव अब बिहार में महापंचायत लगा रहे हैं. शरद यादव पहुंचे हैं नंदन गांव. बिहार का वही नंदन गांव जहां मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की विकास समीक्षा यात्रा के दौरान उनके काफिले पर महादलित मोहल्ले में पथराव किया गया था. पथराव के दौरान नीतीश कुमार तो बाल-बाल बच गए थे, लेकिन, इस दौरान उनके काफिले में शामिल गाड़ियों को काफी नुकसान पहुंचा था.
जब सवाल बक्सर के पुलिस-प्रशासन पर खड़े हुए तो फिर पुलिसिया कार्रवाई का जो तांडव शुरू हुआ, उसने पूरे बक्सर के साथ-साथ बिहार भर में इस पर सियासी बखेड़ा कर दिया. मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के विरोधियों ने इसे महादलितों पर अत्याचार बता दिया तो जेडीयू ने पूरी घटना के पीछे आरजेडी का हाथ बताकर इसे साजिश कहना शुरू कर दिया.
पॉलिटिकल टूरिज्म का केंद्र बना नंदन गांव
बक्सर का नंदन गांव इन दिनों नेताओं के लिए ‘हॉट-स्पॉट’ बना हुआ है. इन नेताओं के लिए ‘पॉलिटिकल टूरिज्म’ का केंद्र बन चुके नंदन गांव में पूर्व डिप्टी सीएम और आरजेडी नेता तेजस्वी यादव का दौरा हुआ, अब उनके ‘शरद चाचा’ वहां महापंचायत लगाने पहुंच गए हैं.
शरद यादव भी नीतीश कुमार से खार खाए बैठे हैं. नीतीश को घेरने का वो एक भी मौका नहीं छोड़ रहे. नीतीश कुमार से उनकी अदावत तब खुलकर सतह पर आ गई जब पिछले साल जुलाई में नीतीश कुमार ने लालू का साथ छोड़ बीजेपी का हाथ थाम लिया.
नीतीश कुमार का बीजेपी के साथ जाना शरद यादव को रास नहीं आया, तो उन्होंने बगावत कर दी. परिणाम सामने है. शरद यादव की राज्यसभा की सदस्यता भी गई और पार्टी पर पकड़ भी पूरी तरह खत्म हो गई. अब शरद यादव और उनके समर्थक जेडीयू से बाहर हैं. चुनाव आयोग ने साफ कर दिया कि असली जेडीयू नीतीश कुमार के नेतृत्व वाली ही है.
बस यही बात पुराने ‘वेटरन शरद यादव’ को नागवार गुजर गई है. बहुत मेहनत से नीतीश कुमार ने दलितों में महादलित और पिछड़ों में अति पिछड़ा बनाकर बिहार में सामाजिक समीकरण को अपने साथ जोड़ा है. महादलित नीतीश के साथ रहे हैं. लेकिन, अब नंदन गांव के मुद्दे के बहाने उन्हें महादलित विरोधी बताने की कवायद चल रही है. इसका बीड़ा उठाया है शरद यादव ने. आरजेडी का साथ तो उन्हें मिल ही रहा है.
शरद यादव और तेज करेंगे विरोध
शरद यादव के करीबी और जेडीयू के पूर्व महासचिव जावेद रज़ा ने फ़र्स्टपोस्ट से बातचीत के दौरान नीतीश कुमार पर हमला बोलते हुए शरद यादव की महापंचायत को हर तरह से जायज बताया.
जावेद रज़ा के मुताबिक, ‘जिस बुनियाद पर महागठबंधन की राज्य सरकार बनी थी, उसमें पिछड़ा, अति पिछड़ा, दलित, महादलित और मुसलमान का योगदान था. लेकिन, जब से नीतीश कुमार बीजेपी के साथ चले गए हैं, तब से इन सभी वंचित समाज के लोगों पर अत्याचार शुरू हो गया है. लिहाजा इस मुद्दे को हम नहीं छोड़ सकते.’
जावेद रज़ा ने दावा किया कि आगे भी शरद यादव की अगुआई में इस तरह के अत्याचार के खिलाफ संघर्ष करते रहेंगे. शरद यादव और उनके करीबी लगातार नंदन गांव में रात के वक्त दलितों-महादलितों की हुई पिटाई और उनके उपर केस करने के मुद्दे को लेकर राज्य सरकार पर हमलावर हैं.
शरद यादव बनाएंगे नई राजनीतिक पार्टी
लेकिन, सवाल है कि शरद यादव के भीतर क्या अब भी वो ताकत बची है जिसमें वो नीतीश कुमार को घेर सकते हैं? शरद यादव और उनके सहयोगी अब नई पार्टी बनाने की बात कर रहे हैं. जेडीयू से बाहर कर दिए गए पूर्व सांसद अली अनवर की तरफ से इस तरह का संकेत दिया गया है जिसमें एक अलग पार्टी बनाने की तैयारी चल रही है.
शरद यादव की नई पार्टी भी बिहार में महागठबंधन का हिस्सा ही होगी, यानी आरजेडी के साथ ही मिलकर चलेगी इसमें कोई शक नहीं है. लेकिन, जेडीयू पर दावा कर रहे शरद यादव नीतीश कुमार से मिली पटखनी के बाद एक अलग पार्टी बनाकर कितनी टक्कर दे पाएंगे यह कहना जल्दबाजी होगी. क्योंकि नई पार्टी की बात करना जितना आसान है, संगठन को खड़ा करना उतना ही मुश्किल.
शरद यादव का अब तक का इतिहास रहा है कि बिहारी नहीं होने के बावजूद बिहार में कभी वो लालू के सहारे तो कभी नीतीश के सहारे अपनी चुनावी नैया पार लगाते आए हैं. ऐसे में नंदन गांव पहुंचकर महापंचायत करने का शरद का फैसला उनकी लालू के साथ नजदीकी बढ़ाने की कोशिशों के तौर पर देखा जा रहा है. कोशिश बिहार की सियासत में अपने आप को जिंदा करना भी लग रहा है.
तेजस्वी यादव भी करेंगे न्याय यात्रा
एक तरफ शरद यादव महापंचायत के जरिए सरकार को दलित-महादलित विरोधी बताने में लगे हैं तो दूसरी तरफ, लालू यादव के जेल जाने के बाद उनके बेटे तेजस्वी यादव अब ‘न्याय यात्रा’ पर निकल रहे हैं. तेजस्वी यादव आने वाले 10 फरवरी से बिहार में न्याय यात्रा पर निकल रहे हैं.
तेजस्वी यादव न्याय यात्रा के दौरान मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के हकीकत की पोल खोलने की बात कह रहे हैं. उनका आरोप है कि महागठबंधन से अलग होने के बाद नीतीश कुमार के नेतृत्व में बिहार में विकास के एजेंडे पर काम नहीं हो रहा है. घोटाने का आरोप तो तेजस्वी पहले से ही लगाते आ रहे हैं.
तेजस्वी यादव की न्याय यात्रा को मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की बिहार में चल रही विकास समीक्षा यात्रा का जवाब माना जा रहा है. जहां मुख्यमंत्री अपनी 7 निश्चय योजनाओं को आगे बढ़ाने की बात कर विकास के एजेंडे पर आगे चलने का दावा कर रहे हैं. अब तेजस्वी उन दावों की पोल खोलने के मकसद से जनता के दरबार में हाजिरी लगाने की बात कह रहे हैं.
सहानुभूति जुटाने की कवायद
तेजस्वी यादव जो भी दावा करें लेकिन, हकीकत तो यही है कि पिता लालू यादव के जेल जाने के बाद उनकी गैरहाजिरी में उनकी कोशिश बिहार में खुद को बतौर उत्तराधिकारी स्थापित करने की है. लालू पहले ही उन्हें ऐसा कर चुके हैं लेकिन, अब अपने समर्थकों की मुहर लगाने की तैयारी में तेजस्वी यादव बिहार भर के भ्रमण की तैयारी कर रहे हैं.
लालू यादव के जेल जाने के मौके को पहले भी आरजेडी सहानुभूति के तौर पर भुनाती रही है. इस बार भी उसकी कोशिश यही है. न्याय यात्रा के दौरान तेजस्वी यादव यह बताने की कोशिश करेंगे कि कैसे उनके पिता को जान-बूझकर फंसाया गया है. फिर से वही पुरानी कवायद और निशाने पर नीतीश कुमार के साथ-साथ संघ और बीजेपी रहेंगे.
हालांकि शरद यादव और तेजस्वी यादव की तरफ से नीतीश कुमार को घेरने की कवायद को लेकर जेडीयू भी हमलावर है. जेडीयू प्रवक्ता नीरज कुमार का कहना है कि ‘तेजस्वी यादव अपनी बेनामी संपत्ति को खोजने के लिए निकल रहे हैं. उन्हें अभी इस बात की जानकारी नहीं है कि उनकी कहां-कहां संपत्ति है उसकी जानकारी लेने वो निकल रहे हैं.’
बिहार के डिप्टी सीएम सुशील मोदी ने भी इस यात्रा पर कटाक्ष करते हुए कहा है कि ‘तेजस्वी इसे न्याय यात्रा नहीं बल्कि क्षमा यात्रा का नाम दें और बिहार के लोगों को इस बारे में बताएं कि कैसे और क्यों उनके पिता इस वक्त चारा घोटाले के तीन मामले में सजा पा चुके हैं और क्यों इस वक्त जेल में बंद हैं.’
नंदन गांव का महापंचायत हो या फिर न्याय यात्रा नजर 2019 के लोकसभा चुनाव पर है, लिहाजा, सबके निशाने पर तो ‘नीतीशे कुमार’ हैं, जो अब बीजेपी के साथ आकर ज्यादा ‘कॉन्फिडेंट’ हो गए हैं.
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