क्या कांग्रेस भी अब बुलेट ट्रेन पर सवार होकर साल 2019 के लोकसभा चुनाव का प्रचार करेगी? ये सवाल इसलिये क्योंकि कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी ने कहा है कि देश में सिर्फ कांग्रेस ही बुलेट ट्रेन ला सकती है.
कांग्रेस अध्यक्ष दो दिन के दौर पर अमेठी पहुंचे. कांग्रेस के इस अभेद्य दुर्ग में जनाधार को एकजुट और मजबूत करने के लिये राहुल ने कई कार्यक्रम रखे. इस दौरान राहुल ने पीएम मोदी की महत्वाकांक्षी बुलेट ट्रेन योजना पर तंज कसा. उन्होने कहा कि पीएम मोदी की बुलेट ट्रेन ‘जादुई ट्रेन’ है जो कि कभी पटरी पर नहीं उतरेगी. लेकिन उन्होंने ये भी कहा कि केवल कांग्रेस ही इस देश में बुलेट ट्रेन ला सकती है. राहुल के इस बयान ने मोदी की बुलेट ट्रेन योजना के विरोध में कांग्रेस के सवालों की पटरियां ही उखाड़ दीं. राहुल का ये बयान कांग्रेस के बुलेट ट्रेन के विरोध के ठीक उलट था.
अमेठी से पहले तक राहुल गांधी लगातार बुलेट ट्रेन का विरोध करते आए है. राहुल ने बुलेट ट्रेन को जापान का प्रतीक बताते हुए पीएम मोदी पर हमला करने में कोई कसर नहीं छोड़ी. वो बुलेट ट्रेन को सूटबूट वालों और अमीरों की सवारी बताते रहे. राहुल की अगुवाई में ही बुलेट ट्रेन के विरोध में तमाम कांग्रेसी नेता बयानों की रेल चला चुके हैं. पूर्व वित्तमंत्री पी चिदंबरम ने तो बुलेट ट्रेन की तुलना नोटबंदी से करते हुए कहा था कि ‘ये ट्रेन अपने रास्ते में आने वाली हर चीज को खत्म करती जाएगी और ये अमीरों के अहम की ट्रिप होगी’.
दरअसल बुलेट ट्रेन से बढ़ने वाली मोदी की लोकप्रियता की स्पीड से कांग्रेस और विपक्षी दल परेशान थे. कहीं कांग्रेस को बुलेट ट्रेन के समझौते में जापान के पीएम शिंजे आबे का गुजरात विधानसभा चुनाव में मोदी के लिये प्रचार दिख रहा था तो कहीं विपक्षी दल इसे गरीब विरोधी बता कर डिरेल करने में जुटे हुए थे. लेकिन अचानक ही अब कांग्रेस को बुलेट ट्रेन में ‘इलेक्शन का पोटेंशियल’ दिखने लगा है. तभी अमेठी में अचानक ही राहुल गांधी ये कह कर सबको चौंका गए कि केवल कांग्रेस ही देश में बुलेट ट्रेन ला सकती है.
दरअसल राहुल की बदली हुई रणनीति से समझा जा सकता है कि वो खुद को विकास विरोधी नहीं दिखाना चाहते हैं. वो ये नहीं चाहते हैं कि उनकी छवि को उद्योग विरोधी बताकर बीजेपी राजनीतिक फायदा उठाए. दूसरी तरफ उन्हें ये लगता है कि बुलेट ट्रेन के मुद्दे को यूपीए सरकार की देन बताकर प्रचारित करना फायदेमंद रहेगा.
वैसे भी कांग्रेस मोदी सरकार की बुलेट ट्रेन योजना को यूपीए की मनमोहन सरकार की देन बता चुकी है. कांग्रेस नेता मलिल्कार्जुन खड़गे ने कहा था कि साल 2013 में तत्कालीन पीएम मनमोहन सिंह ने ही जापान में पीएम शिंजे आबे के साथ बुलेट ट्रेन को लेकर एक समझौता किया था जिसे मोदी सरकार ने आगे बढ़ाया है.
दरअसल साल 2012 में यूपीए सरकार के कार्यकाल के वक्त रेलवे एक्सपर्ट ग्रुप की एक रिपोर्ट में भारतीय रेलवे को आधुनिक बनाने की योजना बनाई गई थी. इस रिपोर्ट में अहमदाबाद से मुंबई तक बुलेट ट्रेन की योजना का भी जिक्र था. जिसके बाद तत्कालीन पीएम मनमोहन सिंह ने जापान जा कर वहां के पीएम शिंजे आबे के साथ इस मामले में एक संयुक्त बयान जारी किया था.
लेकिन बड़ा सवाल ये है कि मनमोहन के शासन काल में जो बुलेट ट्रेन देश के लिये गौरव का प्रतीक होती वो मोदी के शासनकाल में जापान का प्रतीक कैसे बन गई?
यूपीए के दस साल के शासनकाल में बुलेट ट्रेन की योजना फाइलों में दबी रही. समय समय पर रेलमंत्री अपने बजटीय भाषण में इन फाइलों की धूल झाड़ते रहे. लेकिन सत्ता में आने के बाद मोदी ने उस योजना को फाइलों से बाहर निकालकर जमीन पर उतार दिया. अब चूंकि दौड़ने से पहले ही बुलेट ट्रेन मोदी सरकार की बड़ी उपलब्धियों में शुमार कर रही है तो कांग्रेस उसे मैजिकल ट्रेन बताकर मजाक भी उड़ा रही है तो ये भी दावा कर रही है कि सिर्फ कांग्रेस के शासन में ही बुलेट ट्रेन देश में आ सकती है.
दरअसल, राहुल का ये बयान उनके आत्मविश्वास को भी दर्शाता है. उन्हें लगता है कि साल 2019 के लोकसभा चुनाव में कांग्रेस केंद्र की सत्ता में वापसी करेगी और साल 2022 में प्रस्तावित देश की पहली बुलेट ट्रेन को हरी झंडी भी दिखाएगी.
गुजरात में बुलेट ट्रेन के लिये जमीन अधिग्रहण को लेकर किसान तैयार नहीं दिख रहे हैं. किसानों ने जमीन अधिग्रहण के खिलाफ हाईकोर्ट में अपील दायर की है तो साथ ही ‘खड़ेत संपर्क अभियान’ नाम से विरोध जता रहे है. ऐसे में कांग्रेस को एक उम्मीद ये भी है कि शायद ‘बिल्ली के भाग्य से छींका फूट जाए’. उसे लग रहा है कि किसानों का विरोध अगर गुजरात से महाराष्ट्र तक जोर पकड़ ले तो मोदी सरकार को बुलेट ट्रेन के लिये एक इंच भी जमीन नही मिल सकेगी और बुलेट ट्रेन फाइलों में हॉर्न बजाती रह जाएगी.
एक दूसरा सवाल ये भी उठता है कि आखिर अमेठी में मुंबई-अहमदाबाद कोरिडोर में चलने वाली बुलेट ट्रेन का जिक्र क्यों किया गया?
इसमें कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी का मर्म समझा जा सकता है. अमेठी में राहुल ने साल 2013 में अपनी महत्वाकांक्षी मेगा फूड पार्क योजना का शिलान्यास किया था. तकरीबन 200 करोड़ रुपये की लागत के इस प्रस्तावित फूड पार्क के प्रोजेक्ट को केंद्र सरकार ने रद्द कर दिया था. आज राहुल उसी अमेठी में बैठकर मोदी की बुलेट ट्रेन पर निशाना लगा रहे हैं. कहा जाता है कि बिना जमीन अधिग्रहण और भूमि आवंटन के ही राहुल ने उस मेगा फूड पार्क की आधारशिला रख दी थी.
बहरहाल, बात बुलेट ट्रेन से चली तो चीन तक गई. कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी ने आरोप लगाया कि पीएम मोदी चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग का झूला झुलाते रहे और चीनी सेनाएं डोकलाम और लद्दाख में घुस आईं. विदेश नीति के मामले में चीन के साथ भारत के रिश्तों का अतीत और अनुभव कभी सुखद नहीं रहा है. पंडित जवाहर लाल नेहरू ने भी जब चीन के साथ पंचशील का समझौता किया था तो उन्हें 1962 की जंग का गुमान नहीं था. ऐसे में डोकलाम के मुद्दे पर राजनीति का झूला नहीं झुलाया जा सकता है. डोकलाम में भारतीय सेना ने जहां अपने मनोबल से बिना गोली चलाए जंग जीती तो मोदी सरकार ने भी 73 दिनों तक चले गतिरोध के बावजूद कूटनीतिक और मनोवैज्ञानिक जीत हासिल की.
सीमाओं में भारत की सुरक्षा और जवानों के जज्बे को लेकर सियासत को भी अपनी सीमा पार नहीं करनी चाहिये. लेकिन विडंबना ये है कि राजनीतिक फायदों के लिये सीमा पार जा कर पाकिस्तान में बैठकर मोदी को हटाने की मदद मांगी जाती है.
बहरहाल, कांग्रेस अध्यक्ष बनने के बाद राहुल अब नए अंदाज में हैं. वो अब बुलेट ट्रेन का विरोध नहीं कर रहे हैं. राहुल को भी अब ‘सूटबूट’ वालों की बुलेट ट्रेन लुभाने लगी है. शायद उन्हें भी लग रहा है कि बुलेट ट्रेन का विरोध कहीं कांग्रेस को साल 2019 के लोकसभा चुनाव की पटरी से डिरेल न कर दे.
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