क्या सजा हो जाने के बाद बिहार में लालू प्रसाद यादव के आरजेडी के वोट बढ़ जाएंगे? क्या उन्हें उन पिछड़ों के भी सहानुभूति वोट अब मिलेंगे,जो पिछले वर्षों में उनसे अलग हो गए थे?
इन दिनों आरजेडी के कुछ नेता तो यही दावा कर रहे हैं. एक प्रमुख आरजेडी नेता ने कहा है कि गत 23 दिसंबर को जब रांची की विशेष सीबीआई अदालत ने लालू जी को दोषी ठहराया, तब से मैंने राज्य के कई लोगों से बातचीत की. लग रहा है कि अब पूरा पिछड़ा समुदाय एक बार फिर लालू प्रसाद के साथ हो गया है.
क्या कहता है इतिहास?
पर पिछली राजनीतिक घटनाएं उपर्युक्त दावे की पुष्टि नहीं करती. पिछली बार सन् 2013 में लालू प्रसाद को रांची की ही अदालत ने चारा घोटाले के एक अन्य केस में पांच साल की सजा दी थी. उन पर कोर्ट ने तब 25 लाख रुपए का जुर्माना भी लगाया था. किसी केस में लालू को वह पहली सजा थी. इस बार की सजा अपेक्षाकृत कम है.
फिर भी आरजेडी के लोगों को उम्मीद थी कि इससे उन्हें सहानुभूति वोट मिलेंगे. गत 30 सितंबर, 2013 को आरजेडी नेता और पूर्व केंद्रीय मंत्री रघुवंश प्रसाद सिंह ने कहा था कि ‘अब हम अगले लोकसभा चुनाव में बिहार की 40 में 40 सीटें जीतेंगे.’
लालू प्रसाद को दोषी ठहरा दिए जाने के तत्काल बाद उन्होंने कहा था कि ‘इस निर्णय से हमें बहुत बड़ा झटका लगा है. लेकिन हम विचलित नहीं हैं. अब पार्टी का हर कार्यकर्ता लालू बन कर लड़ेगा.’
पर 2014 के लोक सभा के चुनाव में क्या हुआ? 2014 के चुनाव में बिहार में आरजेडी को लोक सभा की सिर्फ चार सीटें ही मिलीं. पर उस रिजल्ट से यह जरूर लगा कि लालू प्रसाद का अपने एमवाई वोट बैंक पर पकड़ कमोबेश कायम है.
महागठबंधन और दूसरी वजहों से बढ़ी थीं विधानसभा में सीटें
राजनीतिक प्रेक्षकों के अनुसार किसी अगले चुनाव में भी आरजेडी उन्हीं चुनाव क्षेत्रों में कमाल दिखा सकेगा जहां यादव और मुस्लिम मतदाताओं की मिलीजुली ताकत निर्णायक है. आरजेडी की सहयोगी दल कांग्रेस की ताकत में हाल के वर्षों में किसी इजाफे का कोई संकेत नहीं है.
बिहार विधान सभा के 2015 के चुनाव में आरजेडी को कुल 243 में से 80 और कांग्रेस को 27 सीटें मिली थीं. जेडीयू को 71 सीटें मिली थीं.
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पर वह जेडीयू-आरजेडी-कांग्रेस के चुनावी गठबंधन का कमाल था. साथ ही, एक आरआरएस नेता के उस समय के इस बयान को आरजेडी ने खूब भंजाया कि पिछड़ों के आरक्षण पर पुनर्विचार होना चाहिए. वह बयान चुनाव प्रचार के दौरान ही दिया गया था. तीन बार वैसा बयान आया था.
सन् 2010 के विधान सभा चुनाव में आरजेडी-एलजेपी गठबंधन को सिर्फ 25 सीटें ही मिल सकी थीं.
दरअसल चारा घोटाले में लालू प्रसाद 1997 में विचाराधीन कैदी के रूप में जेल गए थे. तभी से उनका वोट बैंक कमजोर होने लगा था. लालू प्रसाद के दल को 1995 के विधान सभा चुनाव में बहुमत मिला था. पर सन् 2000 के विधान सभा चुनाव में उनका वह बहुमत भी नहीं रहा. कांग्रेस की मदद से उनकी सरकार बनी. सन् 2005 में तो आरजेडी के हाथों से बिहार की सत्ता भी निकल गई.
अब देखना है कि अगले किसी चुनाव में आरजेडी को कितना सहानुभूति वोट मिल पाता है!
( लेखक स्वतंत्र पत्रकार हैं )
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