उत्तराखंड में भारतीय जनता पार्टी की त्रिवेंद्र सिंह रावत सरकार अपने एक साल पूरे होने का जश्न मना रही है. राज्य में इतनी भारी बहुमत से सत्ता में आने वाली ये पहली सरकार है. इस जश्न के साथ ही मुख्यमंत्री रावत की अग्नि परीक्षा भी अब शुरू हो गई है. 2019 के लोकसभा चुनाव से पहले मुख्यमंत्री रावत पर अपनी ‘डबल इंजन’ की सरकार की उपलब्धियों को जमीन पर दिखाने का भारी दबाव रहेगा.
हालांकि उत्तराखंड में मात्र पांच लोकसभा सीटें हैं, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इस साल केदारनाथ के कपाट खुलने और बंद होने के समय अपनी उपस्थिति दर्ज करा स्थानीय बीजेपी इकाई को इस पहाड़ी राज्य के प्रति अपने विशेष लगाव को पहले ही प्रदर्शित कर दिया है.
पीएम मोदी ने केदारनाथ में रखी थी आधारशिला
स्थानीय बीजेपी की इकाई प्रधानमंत्री मोदी के योजनाओं के प्रचार प्रसार के साथ 2019 की तैयारी में लगी है. केंद्र द्वारा स्वीकृत इन योजनाओं में 12,000 करोड़ रुपए से बनाए जाने वाली ऑल वेदर रोड, 13,000 करोड़ रुपए भारतमाला योजना और 16,000 करोड़ रुपए ऋषिकेश-कर्णप्रयाग रेल लाइन प्रमुख है. केंद्र के जॉलीग्रांट एयरपोर्ट को एलिवेटेड रूप में विस्तार कर अंतरराष्ट्रीय स्तर का बनाने के प्रयास भी इसमें शामिल हैं. पर्वतीय क्षेत्र में पंतनगर और चिन्यालीसौड़ हवाई पट्टी के भी विस्तारीकरण की योजना है. इस दौरान वायु सेना की नई इकाइयों की स्थापना के लिए पर्वतीय भूभागों में भूमि हेतु राज्य सरकार से वायु सेना ने अपना प्रस्ताव भी भेजा है.
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स्पष्ट है कि राज्य और केंद्र ने उत्तराखंड में सड़क, रेल और वायु परिवहन सेवाओं को बेहतर बनाने के लिए अपना ध्यान केंद्रित किया है. पहली नजर में ही ये योजनाएं लंबे समय तक चलने वाली है. काम अमूमन सभी योजनाओं पर तेज चल रहा है. लेकिन, 2019 की राजनीतिक लड़ाई में अब समय कम है.
सबसे ज्यादा फोकस केदारनाथ में पुनर्निर्माण के कार्यों पर है. सूत्र बताते हैं कि प्रधानमंत्री मोदी स्वयं इस कार्य में विशेष रूचि ले रहे है. गौरतलब है कि प्रधानमंत्री मोदी ने 20 अक्टूबर 2017 को कई योजनाओं की आधारशिला केदारनाथ में रखी थी. इन योजनाओं में केदारनाथ मंदिर परिसर पहुंचाने के मुख्यमार्ग को चौड़ा करना और सौंदर्यीयकरण को प्राथमिकता दी गई है.
सरस्वती नदी पर बाढ़ सुरक्षा एवं घाट के निर्माण का कार्य भी है. अन्य निर्माण कार्यों में मन्दाकिनी नदी पर सुरक्षा दीवार, घाट एवं तीर्थ पुरोहितों के आवासीय भवन भी शामिल हैं.
सरकार चाहती है कि केदारपुरी के प्रवेश स्थान से केदारनाथ मंदिर का भव्य स्वरूप दिखाई दे. मंदिर परिसर के विस्तार की भी योजना है. मंदिर के पीछे किसी तरह का निर्माण न हो. शंकराचार्य समाधी का पुनर्निर्माण एक भूमिगत ध्यान केंद्र के रूप में किया जाए- सरकार की मंशा बताई जाती है. नई बात ये है की गौरीकुंड से केदारनाथ के बीच कुच्छ गुफाओं को ध्यान केंद्र के रूप में विकसित किए जाने का भी विचार है. राज्य के मुख्य सचिव उत्पल कुमार सिंह ने केदारनाथ पहुंचकर इस महीने प्रगति कार्यों को देखा है.
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पिछले एक साल में मुख्यमंत्री रावत ने उपलब्धियों का दावा भी किया है. सरकार के अनुसार पिछले एक साल में कुल 1754 किलोमीटर लंबाई की नई सडकों एवं 57 पुलों का निर्माण तथा 567 किमी लंबाई की सडकों का पुनर्निर्माण किया गया. सडकों और पुलों से 83 गांव एवं 250 से अधिक की जनसंख्या की 198 बसावटों को जोड़ने का दावा किया गया है.
600 अतिरिक्त चिकित्सक नियुक्त किए रावत सरकार ने
राज्य सरकार ने अपने प्रेस रिलीज में बताया है कि राज्य में 99 प्रतिशत गांव विद्युतीकरण कर दिए गए हैं. L.E.D लाइट ट्रेनिंग कार्यक्रम के दवारा महिला स्वयं सहायता समूहों को आर्थिक सबल बनाने पर भी सरकार ने ध्यान दिया है. त्रिवेंद्र सरकार का सबसे महत्वपूर्ण निर्णय पर्वतीय क्षेत्रों में छोटी एवं बिखरी जोतों की चकबंदी रहा है. 1131 मिल्क कलेक्शन यूनिट की भी स्थापना की गई है.
प्रधानमंत्री कौशल विकाश योजना के अंतर्गत स्टेट कॉम्पोनेंट में देश का पहला प्रशिक्षण केंद्र उत्तराखंड में खोला गया है. M.S.M.E के अंतर्गत 2951 इकाइओं की स्थापना की गई है. सरकार का दावा है कि इससे 17,000 से भी अधिक लोगों को रोजगार प्राप्त होगा.
इस पहाड़ी राज्य में जमीनी स्तर पर चिकित्सा के सेवाएं प्रदान करना हमेशा से ही किसी राज्य सरकार के लिए सबसे बड़ी चुनौती रही है. त्रिवेंद्र सरकार ने इस ओर ध्यान दिया और 600 अतिरिक्त चिकित्सकों को पर्वतीय क्षेत्रों में नियुक्त किया गया.
सरकार की उपलब्धियों का लेखा जोखा अभी भी जनता के अपेक्षाओं से दूर दिखाई पड़ रहा है. 70 सदस्यों की विधानसभा में बीजेपी को जनता ने 57 सीटें दी हैं और लोकसभा की पांचों सीट भी इसी पार्टी के पास है. राजनीतिक मुद्दों में गैरसैंण में स्थाई राजधानी बनाने की मांग जोर पकड़ती जा रही है. कई क्षेत्रों में आंदोलन की शुरुआत एक बार पुनः हो गई है और ये त्रिवेंद्र सरकIर के लिए चुनौती बनते दिख रही है. चारधाम के विकास के लिए पेड़ों के काटने की भी शिकायतें आ रही हैं और स्थानीय इसका विरोध भी कर रहे हैं.
पर्यटन के क्षेत्र में अबतक कोई खास बदलाव नहीं दिख रहा है. इस पहाड़ी राज्य में पर्यटन स्थानीय लोगों के लिए आय का मुख्य स्रोत है. 2013 में आई आपदा के घाव अभी तक पूरी तरह नहीं भरे हैं. इन परिस्थितियों में त्रिवेंद्र सरकार के लिए 2019 के लोकसभा चुनाव में खरे उतरना कठिन साबित हो सकता है.
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