भागलपुर में केंद्रीय मंत्री अश्विनी चौबे के बेटे अर्जित शाश्वत पर सांप्रदायिक सौहार्द का माहौल खराब करने के आरोप में एफआईआर दर्ज है. लेकिन अर्जित शाश्वत की गिरफ्तारी नहीं हो पा रही है. बीजेपी के बड़े नेता चौबे जी के बेटे शाश्वत को आखिर क्यों नहीं पकड़ा जा रहा है?
पुलिस हाथ पर हाथ धरे क्यों बैठी है? आखिर सांप्रदायिक सौहार्द खराब करने वालों के खिलाफ सख्ती से बात करने वाले नीतीश कुमार चुप क्यों हैं? क्या वो बेबस हैं या फिर मौके का इंतजार कर रहे हैं?
नीतीश कुमार के स्वभाव और मन-मिजाज को जाननेवाले तो यही मानते हैं कि वो जो कहते हैं वो जरूर करते हैं. ऐसे में भ्रष्टाचार के साथ-साथ सांप्रदायिक सौहार्द के मुद्दे पर समझौता नहीं करने के उनके दावे को देखकर ऐसा लग रहा है कि इस मुद्दे पर भी वो चुप नहीं बैठेंगे. बस मौके का इंतजार कर रहे हैं.
नीतीश को कमजोर सीएम के रूप में किया जा रहा है पेश
रामनवमी के वक्त जुलूस के दौरान हुई हिंसा के बाद बिहार के कई शहरों में इस वक्त तनाव का माहौल है. सांप्रदायिक सौहार्द कायम करने के प्रयास किए जा रहे हैं. लेकिन, इस बीच लगातार हो रही हिंसा पर बिहार की सियासत गरमा गई है. आरजेडी ने लगातार इस मुद्दे पर मुख्यमंत्री नीतीश कुमार पर निशाना साधा है. बीजेपी और आरएसएस के हाथ में खेलने का आरोप लगाकर नीतीश को एक कमजोर मुख्यमंत्री के तौर पर पेश करने की कोशिश की जा रही है.
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यह बात नीतीश कुमार को चुभ रही है. उन्हें भी पता है कि सांप्रदायिक तनाव के चलते होने वाले ध्रुवीकरण से सीधा उन्हें नुकसान होगा. उनकी ‘सेक्युलर’ छवि भी खराब होगी और उनकी ‘पॉलिटिकल-पटखनी’ भी होगी. जबकि ध्रुवीकरण होने पर फायदा आरजेडी और बीजेपी दोनों को होगा.
इंतजार के मूड में हैं नीतीश
इस बात को वो खूब समझ रहे हैं. लिहाजा वो भी धैर्य और संयम से इस वक्त अपना कदम उठाना चाह रहे हैं. हिंसा और तनाव के मौजूदा माहौल के बीच अगर अश्विनी चौबे के बेटे को गिरफ्तार किया जाता है तो फिर तनाव और हिंसा और बढ़ने का खतरा रहेगा. इस माहौल का फायदा आरजेडी और बीजेपी उठाने से पीछे नहीं हटेगी, लिहाजा अभी वो इंतजार के मूड में हैं.
भ्रष्टाचार के खिलाफ कड़े तेवर अपनाते हुए आरजेडी का हाथ छोड़कर बीजेपी का साथ पकड़ने वाले नीतीश कुमार बीजेपी नेताओं के बयान को लेकर भी खफा हैं. अररिया लोकसभा चुनाव के वक्त बीजेपी के बिहार अध्यक्ष नित्यानंद राय का बयान हो या फिर अररिया में हारने के बाद केंद्रीय मंत्री गिरिराज सिंह का बयान, हर बार नीतीश को परेशानी होती है. लेकिन, अश्विनी चौबे के बेटे के मामले ने तो सीधे-सीधे उनकी छवि को चुनौती मिल रही है.
फिलहाल एनडीए के भीतर बीजेपी के साथ किसी भी तरह की तनातनी उन्हें तात्कालिक सियासी नुकसान करा सकती है. लिहाजा बीजेपी के साथ रहकर ही बीजेपी को घेरने की वो कोशिश कर रहे हैं.
नीतीश अजमा रहे हैं 'प्रेशर पॉलिटिक्स'
बीजेपी को जवाब देने के लिए ही नीतीश कुमार ने सहयोगी रामविलास पासवान के साथ अपनी करीबी बढ़ानी शुरू कर दी है. पटना में मुख्यमंत्री आवास पर रामविलास पासवान और चिराग पासवान के साथ उनकी मुलाकात को इसी कड़ी का हिस्सा माना जा रहा है. नीतीश कुमार को लगता है कि पासवान के साथ मिलकर बीजपी पर ‘प्रेशर पॉलिटिक्स’ के जरिए दबाव बनाया जा सकता है.
नीतीश और पासवान दोनों एक-दूसरे की जरूरत बन गए हैं. लेकिन, नीतीश इस दायरे को और बड़ा करना चाह रहे हैं. आरजेडी से निलंबित सांसद पप्पू यादव के साथ उनकी मुलाकात को भी इसी संदर्भ में देखा जा रहा है.
सियासी गलियारों में चर्चा नीतीश-पासवान-पप्पू यादव और कुशवाहा के साथ आने की भी हो रही है. लेकिन, उपेंद्र कुशवाहा को लेकर कुछ भी कहना अभी जल्दबाजी होगी. कुशवाहा ने हाल ही में मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के साथ मुलाकात की थी. लेकिन, उसके बाद एम्स में इलाज कराने आए भ्रष्टाचार के मामले में सजायाफ्ता लालू यादव के साथ भी अपनी फोटो को ट्वीट कर कुशवाहा ने फिर से अटकलों को हवा दे दी.
बिहार में तेज है सियासी हलचल
दरअसल, कुशवाहा सभी विकल्प खुले रखना चाहते हैं. उपेंद्र कुशवाहा को लगता है कि आरजेडी गठबंधन या फिर बीजेपी गठबंधन दोनों में से वो जिसके पास रहेंगे पलड़ा उसी का भारी होगा. अगले लोकसभा चुनाव और उसके बाद विधानसभा चुनाव के वक्त उपेंद्र कुशवाहा में अपने-आप को बिहार में किंगमेकर की भूमिका में रखना चाहते हैं. हालांकि उनके और उनके समर्थकों की दिलीतमन्ना उन्हें बिहार के किंग के तौर पर देखने की है.
फिलहाल बिहार की सियासत में सबसे ज्यादा हलचल है. यह हलचल एनडीए के भीतर ज्यादा दिख रही है. जीतनराम मांझी एनडीए छोड़कर महागठबंधन में शामिल हो चुके हैं. उपेंद्र कुशवाहा को लेकर अटकलें ही लगाई जा रही हैं. लेकिन, इस हलचल का असर ही है जो नीतीश-पासवान को साथ आने के लिए बाध्य कर रहा है.
अभी लोकसभा चुनाव में एक साल का वक्त बचा है, उसके पहले बिहार में कई नए सियासी समीकरण देखने को मिल सकते हैं. भ्रष्टाचार के मुद्दे पर जीरो टॉलरेंस की बात करने वाले नीतीश कुमार के लिए सांप्रदायिक सौहार्द के मुद्दे पर भी जीरो टॉलरेंस बरकरार रखना बड़ी चुनौती होगी.
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