राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सरसंघचालक मोहन भागवत ने सितंबर महीने की 17 से 19 तारीख तक भाषणों की श्रृंखला में नए भारत पर अपने विचार पेश किए थे. इन भाषणों के बारे पूरे देश के विद्वानों और आम लोगों में खूब चर्चा हुई. कई लोगों ने इसे संघ के नए विचारों के उदय के रूप में देखा. अब संघ से जुड़े दो विचारकों, जिनमें से एक अब बीजेपी के राष्ट्रीय महासचिव हैं, ने एक-दूसरे से बिल्कुल उलट प्रतिक्रियाएं दी हैं. इंडियन एक्सप्रेस अखबार के संपादकीय पेज पर 25 सितंबर और 17 अक्टूबर को छपे दोनों विचारकों के लेख एक-दूसरे से मूलत: भिन्न हैं.
दोनों लेख राम माधव और मनमोनह वैद्य ने लिखे हैं. दोनों ही लेखकों ने अपने लेख में सोवियत संघ के आखिरी समय में इस्तेमाल किए गए राजनीतिक शब्द ग्लासनोस्ट के जरिए अपनी बातें कही हैं. ग्लासनोस्ट शब्द का इस्तेमाल सोवियत संघ के आखिरी राष्ट्रपति मिखाइल गोर्वाचोब ने किया था. ग्लासनोस्ट सोवियत सरकार की नीति थी जिसके तहत सामाजिक-आर्थिक बहसों के लिए मंच खोला गया था.
क्या मानते हैं राम माधव
Glasnost in RSS के नाम से लिखे गए लेख में राम माधव ने मोहन भागवत के भाषणों की तारीफ करते हुए लिखा है कि इसके जरिए उन्होंने एक नए उदार संघ की तस्वीर लोगों के सामने रखी. अपने लेख में राम माधव दशकों पहले का एक स्कॉलर का कमेंट लिखा है जिसने संघ के बारे में कहा था कि संघ के काम करने के लिए प्रक्रिया समझने में बेहद जटिल और भ्रम में पड़ जाने के लिए बेहद आसान है. राम माधव यह भी लिखते हैं कि संघ को समझना सिर्फ बाहरियों के लिए ही नहीं उसे नजदीक से देखने वालों के लिए भी मुश्किल था.
राम माधव ने लिखा है कि नए और उदारवादी संघ की शुरुआत पूर्व संघ प्रमुख बाला साहब देवरस ने अपने समय में की थी. वरना उसके पहले तक संघ अपनी सालगिरह तक नहीं मनाता था. 1985 में पहली बार संघ ने अपनी 60वीं सालगिरह का आयोजन किया था. उन्होंने 80 के दशक में एक बड़े नेता की बात अपने लेख लिखी है जिन्होंने कहा था कि संघ एक कछुए की तरह है और जब उस पर हमला होता है तो वो खुद को अपने मोटे और मजबूत आवरण के अंदर छिपा लेता है. और जब हमलावर चले जाते हैं तो वो अपने पैर निकालकर आगे की तरफ बढ़ जाता है.
तीन महत्वपूर्ण शब्द संघ की कार्यप्रणाली से बालासाहब देवरस के समय में ही जोड़े गए. ये शब्द थे सेवा, संपर्क और प्रचार. इस नए प्रयोग ने संघ को मूल रूप में बदलना शुरू किया था.
राम माधव के हिसाब से मोहन भागवत अपने भाषणों के जरिए बाला साहब देवरस से भी एक कदम आगे गए हैं. मोहन भागवत के वक्तव्य 'मुसलमानों के बिना कोई हिंदू राष्ट्र नहीं बन सकता.' को राम माधव ने सबसे महत्वपूर्ण वक्तव्य माना है.
कई उदाहरणों के जरिए राम माधव ने मोहन भागवत के भाषणों को ऐतिहासिक बताते हुए आखिरी में उनकी तुलना मिखाइल गोर्बाचोव से की है, जिन्होंने कहा था कि अगर मैं परिवर्तन नहीं लाउंगा तो और कौन लाएगा? राम माधव ने लिखा है कि मोहन भागवत भी उसी तरह से दृढ़ दिखाई दे रहे हैं.
क्या मानते हैं मनमोहन वैद्य
RSS doesn’t need Glasnost के शीर्षक से लिखे लेख में मनमोहन वैद्य किसी ग्लासनोस्ट की बात को नकारते हुए संघ को ऐसा संगठन बताया है जो पहले से ही उदारवादी है और सार्वजनिक बहसों के लिए खुला हुआ है. वो लिखते हैं कि संघ में रहने के दौरान सार्वजनिक बहसें हमारे जीवन का हिस्सा रही हैं. सभी राष्ट्रीय स्तर के पदाधिकारी बड़े सामाजिक मुद्दों पर गहन बहसों में हिस्सा लेते रहे हैं.
मनमोहन वैद्य का मानना है कि संघ को एक गोपनीय कार्यप्रणाली वाला संगठन बताना कुछ लोगों के लिए निजी स्वार्थ का हिस्सा है. इसे मनमोहन वैद्य प्रोपेगेंडा करार देते हैं.
मनमोहन वैद्य का मानना है कि जो लोग प्रोपेगेंडा वाली निगाहों से संघ को देखते रहे हैं उनके लिए निश्चित रूप से ये ग्लासनोस्ट मूमेंट है क्योंकि उन्होंने कभी ढंग से संघ को समझा ही नहीं.
इसके लिए मनमोहन वैद्य ने यूरोप के धर्मों का जिक्र भी किया है. उन्होंने लिखा है कि सेमेटिक धर्मों में विचारों पर काम करना सिर्फ संभ्रांत लोगों का काम माना जाता है. उनके अलावा जो भी इस काम को करता है उन्हें सजा दी जाती है. इसके लिए उन्होंने चर्च का उदाहरण भी दिया है. इसके अलावा उन्होंने कम्यूनिजम पर भी प्रहार करते हुए लिखा है कि सोवियत और चीन में सरकार के खिलाफ बोलने के लिए लोगों को सजाएं दी जाती रही हैं. लेकिन हमारे देश की ये संस्कृति नहीं है.
मनमोहन वैद्य संघ के विचारों में उदारवाद का उदाहरण देने के लिए बताते हैं कि वे एक ऐसे परिवार में पैदा हुए जहां उनके पिता भी संघ का हिस्सा थे लेकिन कभी भी अपने परिवार में मुसलमानों और ईसाइयों के लिए कोई भेदभाव नहीं देखा.
अपने लेख के आखिरी में मनमोहन वैद्य ने साफ किया है कि मोहन भागवत के भाषण उन लोगों के ग्लासनोस्ट मूमेंट हो सकते हैं जो संघ को सही तरीके से नहीं समझते.
एक-दूसरे के विचारों के विरोधी क्यों हैं दोनों विचारकों के लेख
राम माधव और मनमोहन वैद्य के लेख मूल स्वरूप में एक दूसरे से भिन्नता लिए हुए हैं. एक तरफ राम माधव मोहन भागव के भाषण को नई शुरुआत के तौर पर देखते हैं वहीं मनमोहन वैद्य इसमें कुछ भी नया नहीं मानते. राम माधव स्वीकार करते हैं कि लोगों के बीच पहले संघ की कार्यप्रणाली को लेकर संशय बना रहता था लेकिन मनमोहन वैद्य का मानना है कि जो लोग ऐसा सोचते थे, वो किसी प्रोपेगेंडा के तहत ऐसा किया करते थे. राम माधव अपने लेख का अंत एक आशावाद के साथ कर रहे हैं जो उन्हें मोहन भागवत में दिखाई देता है जबकि मनमोहन वैद्य ने इसे कोई नया विचार मानने से इनकार कर दिया है.
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