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लोकसभा चुनाव को लेकर इतना हल्ला क्यों है अभी से?

देश की सियासत में अचानक ही बयानों से तूफान आना शुरू हो गया है. विधानसभा चुनावों की आहट आने में अभी वक्त बाकी है, इसके बावजूद सियासतदां के बदले-बदले से मिजाज और बिगड़े-बिगड़े से बोल चुनावी माहौल बना रहे हैं.

Updated On: Jul 17, 2018 09:28 AM IST

Kinshuk Praval Kinshuk Praval

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लोकसभा चुनाव को लेकर इतना हल्ला क्यों है अभी से?

देश की सियासत में अचानक ही बयानों से तूफान आना शुरू हो गया है. विधानसभा चुनावों की आहट आने में अभी वक्त बाकी है. इसके बावजूद सियासतदां के बदले-बदले से मिजाज और बिगड़े-बिगड़े से बोल चुनावी माहौल बना रहे हैं. पीएम मोदी पर कांग्रेस के हमले अचानक से ही तेज हो गए हैं तो वहीं बीएसपी सुप्रीमो मायावती ने यूपी में समाजवादी पार्टी के साथ गठबंधन पर मुहर लगा कर चुनावी तैयारियों का ऐलान कर दिया है.

क्या कांग्रेस को ये लगने लगा है कि साल 2004 की ही तरह बीजेपी इस बार छह महीने पहले ही लोकसभा चुनाव करा सकती है?  क्या इसी आशंका या संभावना को देखते ही कांग्रेस अचानक चुनावी मोड में आकर पीएम मोदी पर बयानों से हमले करने में हर हद के पार जा रही है?

कांग्रेस के नेता अपने बयानों से प्रधानमंत्री पर हमले बोलते हैं

पहले कांग्रेस नेता शशि थरूर ने कहा कि अगर बीजेपी साल 2019 का लोकसभा चुनाव जीतेगी तो देश ‘हिंदू पाकिस्तान’ बन जाएगा तो अब कांग्रेस के प्रवक्ता रणदीप सुरजेवाला पीएम मोदी के लिये अभद्र भाषा का इस्तेमाल कर रहे हैं. वो पीएम मोदी को ‘धृतराष्ट्र’ और ‘झूठों का सरदार’ बता रहे हैं. इससे पहले ये काम मणिशंकर अय्यर करते आए हैं.

कांग्रेस के कुछ नेता जहां अपने बयानों में मोदी को पीएम पद की मर्यादा का पाठ पढ़ाते हैं तो दूसरी तरफ खुद अपनी भाषा से पीएम पद की गरिमा को तार-तार भी कर रहे हैं. कांग्रेस नेता आनंद शर्मा ने पीएम मोदी को इतिहास के तथ्यों के साथ छेड़छाड़ करनेवाला कह कर अपना इतिहास गढ़ने का आरोप लगाया.

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कांग्रेस को एकतरफ अंदेशा है कि बीजेपी लोकसभा चुनाव जल्द करा सकती है लेकिन वो इसे जताना नहीं चाहती जबकि दूसरी मायावती ने खुला ऐलान कर दिया है कि बीजेपी इसी साल मध्यप्रदेश, छत्तीसगढ़ और राजस्थान के साथ ही लोकसभा चुनाव कराने जा रही है. दरअसल आजमगढ़ में जब पीएम मोदी ने पूर्वांचल एक्सप्रेस वे का शिलान्यास किया तो बीएसपी सुप्रीमो मायावती को इसमें लोकसभा चुनाव की तैयारियां दिखाई दीं. मायावती का कहना है कि बीजेपी ने खुद को समय से पहले लोकसभा चुनाव के लिये पूरी तरह तैयार कर लिया है.

दरअसल विपक्ष के ऐसा सोचने के पीछे कई वजहें भी हैं. पीएम मोदी और बीजेपी अध्यक्ष अमित शाह कई राज्यों में तूफानी दौरे कर रहे हैं. मोदी सरकार ने हाल ही में खरीफ फसल के न्यूनतम समर्थन मूल्य को बढ़ाकर किसानों की राजनीति को जिस तरह से हाईजैक किया है उससे भी विपक्षी दलों में बेचैनी बढ़ी है. पीएम मोदी पंजाब से लेकर यूपी और पश्चिम बंगाल तक रैलियां कर रहे हैं और लोगों को  खरीफ की फसलों की एमएसपी में हुई बढ़ोतरी की बात कर रहे हैं.

कांग्रेस के ‘परिवारवाद’ पर निशाना लगा रहे हैं

वहीं अमित शाह लगातार राज्यों का दौरा कर कांग्रेस के ‘परिवारवाद’ पर निशाना लगा रहे हैं. जबकि बीजेपी के वरिष्ठ नेता और कार्यकर्ता देशभर में ‘संपर्क फॉर समर्थन’ में जुटे हुए हैं. मायावती इन्हीं सारी बातों को देखकर ये अंदेशा जता रही हैं कि बीजेपी तीन राज्यों में विधानसभा चुनाव के साथ ही लोकसभा चुनाव कराकर अपनी योजनाओं और फैसलों का फायदा लेना चाहेगी.

लेकिन सवाल उठता है कि साल 2004 के लोकसभा चुनाव के कड़वे अनुभव के बाद बीजेपी क्या उस भूल को दोहराने की गलती करेगी? उस वक्त इंडिया शाइनिंग का नारा जिस तरह से पार्टी की हार की वजह बना उसे देखते हुए क्या इसी साल लोकसभा चुनाव कराने का जोखिम बीजेपी उठा सकती है?

दरअसल बीजेपी मिशन 2019 की रणनीति के तहत ही पार्टी के प्रचार में अपनी सारी ताकत झोंक रही है. बीजेपी ने साल 2014 के लोकसभा चुनाव में हारी गईं उन 100 सीटों को चिन्हित किया है जहां वो कम अंतर पर हारी या फिर दूसरे स्थान पर रही. बीजेपी इस बार उन सौ सीटों पर जोर लगाकर साल 2019 का आंकड़ा बदलना चाहती है. बीजेपी इस बार सिर्फ हिंदी बेल्ट की सीटों के भरोसे नहीं बैठना चाहती है.

खासतौर से यूपी को लेकर बीजेपी अब पिछले साल के करिश्मे को लेकर आश्वस्त नहीं है. गोरखपुर, फूलपुर, नूरपुर और कैराना में मिली हार के बाद एसपी-बीएसपी गठबंधन बीजेपी को यूपी में चुनौती देने के लिये तैयार है. यही वजह है कि बीजेपी वैकल्पिक सीटों को लेकर अपनी रणनीति पर काम कर रही है जो कि विपक्षी दलों को समय पूर्व लोकसभा चुनाव का आभास करा रहा है. खुद पार्टी अध्यक्ष अमित शाह कह चुके हैं कि वो साल 2014 के लोकसभा चुनाव के बाद से ही साल 2019 के लोकसभा चुनाव की तैयारियों में जुट गए थे.

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विपक्ष फिलहाल एकता के नाम पर बिखरा हुआ है

लेकिन मायावती की आशंका को निराधार कह कर खारिज भी नहीं किया जा सकता है. पीएम मोदी के हर फैसले और हर मोर्चे पर विरोध करने वाला विपक्ष फिलहाल एकता के नाम पर बिखरा हुआ है. बीजेपी इसी बिखराव का फायदा उठा कर साल 2019 के लोकसभा चुनाव को समय से पहले कराने का मन भी बना सकती है. बीजेपी के लिये अभी पूरी तरह अनुकूल हालात हैं.

जहां उसने राष्ट्रवादिता के नाम पर जम्मू-कश्मीर में सरकार के गठबंधन से अलग होकर सत्ता से ऊपर राष्ट्रीयता को तरजीह दी तो वहीं एमएसपी, गन्ना किसान, वन रैंक वन पेंशन जैसे मामलों में फैसला लेकर वादा निभाने का दावा भी किया है. विपक्ष सिर्फ नोटबंदी और जीएसटी के मुद्दे पर पीएम मोदी पर आरोप लगा कर उन्हें घेरने में नाकाम रहा है. गुजरात और कर्नाटक के चुनावी नतीजे अगर बीजेपी के लिये घंटी बजाने वाले थे तो कांग्रेस के लिये भी ताली बजाने वाले नहीं थे.

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