रायबरेली के लोग आजकल बड़े हैरान परेशान हैं. उन्होंने टीवी पर देखा, और अखबार में भी पढ़ा कि प्रियंका गांधी के कारण ही कांग्रेस का समाजवादी पार्टी के साथ गंठबंधन हुआ है.
मीडिया रिपोर्टों और जो कुछ भी सियासी गपशप उन्हें सुनने को मिली, उस सब से यही पता चला कि अब प्रियंका को बड़ी भूमिका मिलने वाली है.
ऐसा कहा गया कि प्रियंका अब अपने परिवार की दो सीटों रायबरेली और अमेठी को पुष्पित-पल्लवित करने के बजाय पूरे राज्य में चुनाव प्रचार करेंगी.
लेकिन यहां के लोग हैरान हैं. दरअसल, वे प्रियंका गांधी की गैरमौजूदगी से कौतूहल के शिकार हैं. 2012 के पिछले विधानसभा चुनावों में उन्होंने प्रियंका को यहां खूब देखा था.
ये भी पढ़ें: नई बात नहीं है नेताओं की बदजुबानी
वह लगभग पंद्रह दिन यहां रही थीं और अपनी मां के संसदीय क्षेत्र की छह विधानसभा सीटों के लगभग हर बड़े नुक्कड़ पर गई थीं. उन्होंने लोगों से बात की थी उनकी तरफ हाथ हिलाया था, महिला समूहों और पार्टी कार्यकर्ताओं के साथ समय बिताया था. समाज के हर वर्ग के मतदाताओं से उन्होंने बात की थी.
कहां हैं प्रियंका?
लेकिन इस चुनाव में बिल्कुल अलग स्थिति दिखाई दे रही है. यहां के लोगों को इस बार प्रियंका को देखने का शायद ही मौका मिला हो. वह अपने भाई राहुल गांधी के साथ आधे दिन के लिए यहां आई थीं.
उन्होंने दो जगहों पर हुई जनसभाओं में हिस्सा लिया और इनमें से एक सभा में वह थोड़ी देर के लिए बोली थीं.
स्थानीय कांग्रेस नेताओं का दावा है कि प्रियंका कुछ पारिवारिक मामलों में व्यस्त हैं. लेकिन आमलोग इस बात को नहीं समझेंगे. पिछले चुनावों में प्रियंका ने रायबरेली की छह विधानसभा सीटों में लगभग तीन दर्जन रैलियां की थी.
कांग्रेस के इस प्रथम परिवार के वफादार इस बात के बड़े कायल रहते हैं कि प्रियंका गांव के लोगों और पार्टी कार्यकर्ताओं के नाम याद रखती हैं और सब लोगों का हालचाल पूछती हैं.
इन से प्रियंका के बारे में चाहे कितनी ही बातें करा लीजिए, लेकिन उनकी गैर- मौजूदगी के चलते ये लोग अब चुप हो गए हैं.
उलट पुलट समीकरण
पिछले विधानसभा चुनावों में नुक्कड़-नुक्कड़ जाकर प्रियंका के प्रचार करने के बावजूद कांग्रेस के लिए नतीजे बहुत ही निराशाजनक रहे. रायबरेली संसदीय क्षेत्र की हर विधानसभा सीट पर पार्टी को हार का मुंह देखना पड़ा.
ये भी पढ़ें: वामपंथ के गढ़ से केसरिया रंग में रंगने तक
रायबरेली में अपना खुद का काम करने वाले युवा रनमत सिंह कहते हैं, 'ऐसा लगता है कि उन्होंने दीवारों पर लिखी इबारत पढ़ ली है और इसीलिए अपने ऊपर कलंक नहीं लगाना चाहती हैं कि जब भी वह विधानसभा चुनावों में प्रचार करती हैं तो कांग्रेस हारती है. इसीलिए वह इस जगह से दूरी बनाए हुए हैं. पर विडंबना यह है कि गांधी परिवार उसी जगह पर आने से बच रहा है जो उनका गढ़ माना जाता है.'
सुमन आगे कहते हैं, 'साल 2014 में बीएसपी और एसपी ने राहुल गांधी के खिलाफ रायबरेली में उम्मीदवार नहीं उतारा था. अगर वह यहां चुनाव प्रचार करने आतीं तो फिर उन्हें उन सीटों पर भी जाना होता जहां कांग्रेस और समाजवादी पार्टी का दोस्ताना मुकाबला हो रहा है.'
वे कहते हैं, 'उस स्थिति में उन्हें एसपी, बीएसपी और बीजेपी सब पर हमला बोलना पड़ता. इससे भी अहम ये कि जमीनी हालात अब बदल गए हैं. बीजेपी अब एक ताकतवर प्रतिद्वंद्वी के तौर पर उभरी है जिसने कांग्रेस के रणनीतिकारों को सभी समीकरणों को उलट पुलट कर दिया है.'
कांग्रेस ने हथियार डाले?
सोनिया गांधी इन चुनावों में एक बार भी बाहर नहीं निकली हैं. वह संभवतः सेहत के चलते अपने संसदीय क्षेत्र में नहीं आई हैं.
नाम न जाहिर करने की शर्त पर एक कार्यकर्ता ने अपनी पीड़ा इस तरह बताई, 'हमें किशोरीलाल शर्मा की पसंद और नापसंद के रहमो-करम पर छोड़ दिया गया है.'
इससे पता चलता है कि गांधी परिवार उन्हें पसंद करता है और उन पर भरोसा करता है. लेकिन गांधी परिवार उन्हें जितना पसंद करता है, यहां कांग्रेस नेताओं का एक वर्ग उन्हें उतना ही नापसंद करता है.
विडंबना यह भी है कि सोनिया, राहुल और प्रियंका की गैर-मौजूदगी में यहां आरजेडी प्रमुख लालू प्रसाद यादव को चुनाव प्रचार के लिए उतारा गया.
अपने चिरपरिचित अंदाज में लालू ने मंगलवार को चुनाव प्रचार के आखिरी दिन लोगों का मनोरंजन किया, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की नकल उतारी और बखान किया कि कैसे उन्होंने बिहार में मोदी, अमित शाह और बीजेपी को धूल चटा दी और आगे भी चटाते रहेंगे.
ये भी पढ़ें: बनारसी राजनीति का रस और रंग
लेकिन लाख टके सवाल ये है कि, क्या लालू यादव का मसखरापन सोनिया गांधी के चुनाव क्षेत्र में कांग्रेस के उम्मीदवारों को कोई फायदा पहुंचाएगा.
लालू यादव का रायबरेली में कांग्रेस के उम्मीदवारों के लिए प्रचार करना दिलचस्प है. उन्होंने समाजवादी पार्टी का प्रचार नहीं किया जबकि वहां उनकी रिश्तेदारी भी है. इससे तो कुछ और ही संकेत मिलते हैं?
क्या लालू सोनिया और राहुल के करीब होने की कोशिश कर रहे हैं. क्या वह इस तैयारी में जुटे हैं कि अगर बिहार में नीतीश कुमार से अलग होने की नौबत आए तो उन्हें कांग्रेस का समर्थन मिल जाए.
लालू हमेशा से सोनिया के करीब रहे हैं. लेकिन रायबरेली में चुनाव प्रचार के आखिरी दिन उन्हें उतारे जाने से कई मतदाता सोच रहे हैं कि क्या गांधी परिवार ने इन चुनावों में हथियार डाल दिए हैं?
हंदवाड़ा में भी आतंकियों के साथ एक एनकाउंटर चल रहा है. बताया जा रहा है कि यहां के यारू इलाके में जवानों ने दो आतंकियों को घेर रखा है
कांग्रेस में शामिल हो कर अपने राजनीतिक सफर की शुरूआत करने जा रहीं फिल्म अभिनेत्री उर्मिला मातोंडकर का कहना है कि वह ग्लैमर के कारण नहीं बल्कि विचारधारा के कारण कांग्रेस में आई हैं
पीएम के संबोधन पर राहुल गांधी ने उनपर कुछ इसतरह तंज कसा.
मलाइका अरोड़ा दूसरी बार शादी करने जा रही हैं
संयुक्त निदेशक स्तर के एक अधिकारी को जरूरी दस्तावेजों के साथ बुधवार लंदन रवाना होने का काम सौंपा गया है.