कट्टर हिंदुत्त्व की आक्रामक राजनीति के लिए विवादास्पद, गोरक्षपीठ के महंत योगी आदित्यनाथ को उत्तर प्रदेश का मुख्यमंत्री बनाने की नरेंद्र मोदी और अमित शाह की मंशा अब बिल्कुल साफ हो गई है. उद्देश्य 2019 का लोकसभा चुनाव हो या आरएसएस का हिंदू जागरण का एजेंडा, बीजेपी योगी के माध्यम से उत्तर प्रदेश में ‘तुष्टीकरण से मनबढ़ हुए मुसलमानों’ को नियंत्रण में रखना और ‘उदार हिंदुओं के अब तक दमित सवालों’ को खुलकर हवा दे रही है.
अनुमान तो ऐसा था ही, अब योगी के हाल के कुछ बयान और उनकी सरकार के कुछ कदम इसकी पुष्टि कर रहे हैं.
मदरसों पर नजर के लिए पोर्टल
उत्तर प्रदेश के सभी सोलह हजार मान्यता प्राप्त मदरसों पर सरकारी पोर्टल से नजर रखने का फरमान हाल ही में जारी हुआ है. स्वाधीनता दिवस पर सभी मदरसों में राष्ट्रगान गाने और उसकी वीडियो रिकॉर्डिंग सरकार को भेजने का योगी सरकार का आदेश बड़ी खबर बना ही था.
मदरसों पर कड़ी नजर रखने वाला प्रदेश सरकार का आदेश 31 जुलाई 2017 का है, जो मदरसा शिक्षा परिषद के रजिस्ट्रार को भेजा गया है. इस आदेश के हवाले से ‘टाइम्स ऑफ इंडिया’ में बुधवार को छपे समाचार के अनुसार मदरसों से कहा गया है कि वे अपनी कक्षाओं का मानचित्र, भवन का फोटो और उसका क्षेत्रफल, सभी अध्यापकों के बैंक खातों का विवरण और मदरसे के प्रत्येक कर्मचारी का आधार नंबर सरकार के पोर्टल पर डालें.
आदेश के मुताबिक हर मदरसे को, जो अपनी मान्यता और सरकारी अनुदान जारी रखना चाहता है, सरकार के पोर्टल (madarsaboard.upsdc.gov.in) पर 15 अक्टूबर तक रजिस्ट्रेशन करना होगा. इसके बाद हर मदरसे को एक कोड दिया जाएगा. अध्यापकों और कर्मचारियों के बैंक खातों का विवरण मिलने के बाद ही उनका वेतन जारी किया जाएगा.
पोर्टल पर कहा गया है कि इससे मदरसों के कामकाज में पारदर्शिता, गुणवत्ता तथा विश्वसनीयता लाई जा सकेगी. मदरसे पारदर्शी तंत्र में काम करें, इससे किसे विरोध हो सकता है लेकिन मकसद उन पर नजर रखना है, तो शंका और विरोध की गुंजाइश रहेगी. मदरसों के बारे में आरएसएस और बीजेपी की राय से सभी परिचित हैं. फर्जी छात्रों व कर्मचारियों से लेकर संदिग्ध व्यक्तियों के वहां शरण लेने और पढ़ाई पर भी सवाल अक्सर उठाए जाते हैं.
मदरसों और मुस्लिम संगठनों की ओर से अभी इस पर प्रतिक्रिया नहीं आई है. विरोध में आवाज उठना स्वभाविक है, जैसा स्वाधीनता दिवस वाले आदेश पर हुआ था.
‘कांवड़ यात्रा है कि शव-यात्रा?’
योगी अब मुख्यमंत्री के रूप में भी अपने बयानों में हिंदुत्त्व की खुली वकालत करते नजर आने लगे हैं. जन्माष्टमी के मौके पर उन्होंने कहा कि ‘अगर मैं ईद के दिन सड़क पर नमाज पढ़ने पर रोक नहीं लगा सकता तो मुझे कोई अधिकार नहीं कि मैं पुलिस थानों में जन्माष्टमी मनाने पर रोक लगाऊं.’ यह अलग बात है कि प्रदेश के थानों में जन्माष्टमी धूमधाम से मनाई जाती रही है. उस पर रोक कभी नहीं लगी.
कांवड़ यात्रा में भड़कीले संगीत, डीजे, माइक, आदि पर रोक जरूर लगी थी. उस पर योगी जी बोले- ‘कांवड़ यात्रा में संगीत नहीं बजेगा तो कहां बजेगा. कांवड़ यात्रा है कि शव-यात्रा? मैंने अधिकारियों से कहा कि माइक्रोफोन पर रोक लगानी है तो ऐसे लगाओ कि किसी भी धर्मस्थल से कोई आवाज बाहर न आए. कर सकते हो ऐसा? नहीं कर सकते तो कांवड़ यात्रा को गाजे-बाजे के साथ जाने दो.’
उन्होंने यह भी कहा था- ‘न जाने किस कांवड़िए में शिव-अंश मिल जाए.’
‘अगला पक्ष दंगा नहीं करेगा तो बहुसंख्यक भी नहीं करेगा’
बीती सात जुलाई को एक चैनल के कार्यक्रम में योगी ने एक और चौंकाने वाला बयान दिया था. अल्पसंख्यक समाज के डर के बारे में पूछे गए सवाल के जवाब में उन्होंने कहा था- ‘अगला पक्ष दंगा नहीं करेगा तो बहुसंख्यक समाज भी दंगा नहीं करेगा.’
इस बयान में छुपी चेतावनी साफ देखी जा सकती है. अल्पसंख्यकों में डर पैदा करने से ज्यादा यह बयान बहुसंख्यक हिंदुओं को सहलाने वाला लगता है.
बीजेपी का कोई दूसरा मुख्यमंत्री शायद ऐसे एकतरफा बयान नहीं देता. संविधान की शपथ लेकर मुख्यमंत्री की कुर्सी पर बैठने वाले नेता कोशिश करते हैं कि वे अपने वक्तव्यों में समाज के सभी वर्गों की भावनाओं का ध्यान रखें. कम से कम किसी को सीधे ठेस न पहुंचाएं.
प्रिय हुई विवादास्पद छवि
योगी आदित्यनाथ को खुलेआम ऐसे बयान देने में कोई संकोच नहीं होता. वे हिंदू-राष्ट्र, हिंदू धर्म, राम मंदिर की खुली वकालत करने के अलावा मुसलमानों के खिलाफ तीखे बयान देने के लिए जाने जाते रहे हैं. एक दौर में बीजेपी का शीर्ष नेतृत्त्व इसी कारण उनसे दूरी बनाए रखता था.
आज इसी कारण वे नरेंद्र मोदी और अमित शाह के चहेते मुख्यमंत्री हैं. मार्च में उनके नाम का ऐलान होने पर विपक्षी ही नहीं, खुद कई भाजपाई भी चौंके थे. अब रणनीति साफ दिख रही है.
एक बड़ी अपेक्षाकृत उदार हिंदू आबादी को, जो एसपी, बीएसपी और कांग्रेस की ‘मुस्लिम तुष्टीकरण’ की नीतियों पर खुस-पुस टिप्पणी करता रहा है, कट्टर व आक्रामक हिंदू बनाना है. उसकी दबी शंकाओं या सवालों को पुरजोर हवा देनी है. कांवड़ यात्रा में डीजे का सवाल, जन्माष्टमी वाला बयान, मदरसों में राष्ट्रगान का आदेश और उन पर नजर का फैसला इसी उद्देश्य से लिए गए लगते हैं.
चुनावी समीकरण भी साफ है. मुसलमान कितने ही नाराज हो जाएं और बीजेपी के खिलाफ एकजुट हो जाएं तो भी हिंदू आबादी के उग्र ध्रुवीकरण के कारण उसे हराने की स्थिति में नहीं हो सकते.
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