देश की सियासत में सीबीआई को लेकर उबाल है. क्योंकि यूपी में खनन घोटाले के मामले में पूर्व सीएम और समाजवादी पार्टी के अध्यक्ष अखिलेश यादव से सीबीआई पूछताछ कर सकती है. यूपी के सीएम रहने के दौरान अखिलेश के पास साल 2012 से खनन मंत्रालय भी था. ऐसे में खनन घोटाले की आंच अब अखिलेश तक भी पहुंची है. लेकिन सीबीआई के सीन में आते ही राजनीतिक दलों ने इसे बदले की कार्रवाई करार दिया है. एसपी-बीएसपी और कांग्रेस ये आरोप लगा रहे हैं कि मोदी सरकार सीबीआई के जरिए अखिलेश को परेशान कर रही है.
इस बार सीबीआई के एक्शन पर सवाल टाइमिंग की वजह से उठाए जा रहे हैं. दरअसल लोकसभा चुनाव को लेकर यूपी में एसपी और बीएसपी में सैद्धांतिक रूप से गठबंधन हुआ है. इसी गठबंधन के तत्काल बाद ही सीबीआई की पूछताछ का मामला सामने आया है. जिस पर अखिलेश यादव ने तंज कसते हुए कहा है कि जल्द ही सीबीआई को गठबंधन के बारे में भी डिटेल देनी पड़ेगी.
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सीबीआई से पूछताछ के मामले का अखिलेश सियासी फायदा लेना चाहते हैं. वो तभी इसे सियासी बदले की कार्रवाई बता रहे हैं. अखिलेश को ऐसी सहानुभूति की संभावना तलाशने का अधिकार भी है क्योंकि ऐन चुनाव से पहले एक मौका उन्हें भी मिल गया है.
दरअसल बुंदेलखंड के हमीरपुर, महोबा और बांदा में मौरंग की खान का खजाना है. यहां हर महीने तकरीबन सौ करोड़ रुपये तक की खनन होने का दावा किया जाता रहा. इन इलाकों से हर दिन हजारों ट्रक मौरंग बालू का खनन अवैध रूप से किया जाता रहा है. जब अवैध खनन को लेकर मामला सुर्खियों में आया तो इसे एक लाख करोड़ रुपये का घोटाला तक कहा गया.
इसके बाद इलाहाबाद हाईकोर्ट ने स्वत: संज्ञान लिया और सीबीआई को जांच के आदेश दिए. इस वक्त अखिलेश सरकार में गायत्री प्रजापति खनन मंत्री थे. गायत्री प्रजापति की मुलायम परिवार के प्रति निष्ठा यूपी के चुनाव में सियासी मुद्दा भी रही. तत्कालीन यूपी सरकार के कई मंत्रियों पर खनन घोटाले में फंसे होने के आरोप लग रहे थे. ऐसे में सीबीआई को जांच सौंपा जाना अखिलेश सरकार के लिए बड़ा झटका था. लेकिन ये केंद्र सरकार के आदेश पर नहीं बल्कि हाईकोर्ट के आदेश पर हुआ. अब अवैध खनन के मामले में सीबीआई कई जगहों पर छापे मार चुकी हैं. इस मामले में आईएएस बी चंद्रकला के घर पर भी छापेमारी हुई है. बी चंद्रकला पर आरोप है कि हमीरपुर में डीएम रहते हुए उन्होंनें मौरंग के खनन के पट्टे देने में नियमों की अवहेलना की.
लेकिन अखिलेश ये मानते हैं कि यूपी में बीजेपी के खिलाफ गठबंधन करने की वजह से उन्हें फंसाने की साजिश हो रही है. पर क्या किसी कानूनी कार्रवाई को राजनीतिक चश्मे से सिर्फ इस वजह से देखा जाए क्योंकि लोकसभा चुनाव करीब हैं? क्या चुनाव का समय नजदीक होने का मतलब ये है कि कानून भी अपना काम करना बंद कर दे?
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क्या सिर्फ लोकसभा चुनाव की ही वजह से देश की तमाम जांच एजेंसियों की कार्रवाई को रोक देना चाहिए ताकि जनता के बीच में सत्ताधारी दल की छवि प्रभावित न हो या फिर गलत संदेश न जाए?
दरअसल, सीबीआई की कार्रवाई के पूर्व के इतिहास के चलते इस बार अखिलेश यादव भी सीबीआई को राजनीतिक हथियार बना कर मामले को राजनीतिक रंग देने की कोशिश कर रहे हैं. लेकिन वो ये भूल रहे हैं कि आज जो राजनीतिक दल उनके साथ इसी मुद्दे पर समर्थन में खड़े हैं वही दल खुद भी पूर्व में सीबीआई जांच की मांग कर चुके थे. बीएसपी सुप्रीमो मायावती ने अवैध खनन घोटाले के मामले में यूपी की तत्कालीन अखिलेश सरकार के खिलाफ सीबीआई जांच की मांग की थी. आज जो आरोप बीएसपी केंद्र सरकार पर लगा रही है ठीक वैसे ही आरोप मायावती भी पूर्व में कांग्रेस पर लगा चुकी हैं.
यूपी में साल 2007 से 2012 के समय मायावती सरकार पर राष्ट्रीय ग्रामीण स्वास्थ्य मिशन (NRHM) और स्मारकों के हजारों करोड़ रुपये के घोटाले का आरोप लगा था. उस वक्त केंद्र में यूपीए की कांग्रेस नीत सरकार थी. NRHM घोटाले के मामले में सीबीआई ने मायावती से पूछताछ भी की थी.
क्या भ्रष्टाचार के दाग सिर्फ राजनीतिक कारणों से लगते हैं?
अब जब अखिलेश से सीबीआई पूछताछ की संभावना दिखाई दे रही है तो कांग्रेस भी अखिलेश के समर्थन में साथ खड़ी है. इसकी सियासी वजह ये भी हो सकती है कि यूपी में लोकसभा चुनाव को लेकर एसपी-बीएसपी गठबंधन ने अमेठी और रायबरेली की सीटें कांग्रेस के लिए सम्मान में छोड़ दीं.
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बहरहाल, सीबीआई या ईडी या फिर दूसरी जांच एजेंसियों के घेरे में जब भी राजनीतिक चेहरे आए तो सरकारों पर राजनीति हित साधने के आरोप लगते रहे हैं. जिस वजह से सत्ता में राजनीतिक दलों की आवाजाही के दरम्यान मुकदमों की फाइलों की आंख-मिचौली होती रहती है. ऐसे में सिर्फ लोकसभा चुनाव के गठबंधन का हवाला देकर अखिलेश सीबीआई की पूछताछ पर सवाल खड़े कर रहे हैं तो ये नई बात नहीं है.
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