एक मामूली किसान परिवार में पैदा होने वाले ई.के. पलानीसामी का देश के सबसे बड़े राज्यों में से एक, तमिलनाडु की सत्ता की सबसे ताकतवर कुर्सी तक पहुंचने का सफर खासा रोचक रहा है.
पलानीसामी का जन्म 2 मार्च, 1954 को तमिलनाडु के सलेम जिले में हुआ था. छात्र राजनीति से शुरुआत करने वाले पलानीसामी 1974 में एआईएडीएमके से जुड़े. यहां से सियासत में उनका कद तेजी से बढ़ा और कम समय में ही उन्होंने तमिलनाडु के कद्दावर नेताओं में अपनी जगह बना ली. वो दिवंगत जयललिता और शशिकला दोनों के ही सबसे भरोसेमंद विधायकों में से रहे हैं.
पलानीसामी जयललिता और पन्नीरसेल्वम सरकार में मंत्री रह चुके हैं. उनके पास राजमार्ग, लोक निर्माण और लघु बंदरगाह जैसे महत्वपूर्ण विभागों का दायित्व था. बतौर पथ निर्माण मंत्री पलानीसामी के कामकाज की तारीफ होती है.
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चार बार के विधायक पलानीसामी सबसे पहली बार 1989 में चुनाव जीतकर आए थे. वो इदापडी सीट से 1989, 1991, 2011 और 2016 में चुनाव जीतकर विधायक बने. हालांकि, मंत्री बनने के लिए उन्हें 2011 तक इंतजार करना पड़ा.
इस दौरान, 1998 में एक बार तिरुचेंगोडे से लोकसभा चुनाव जीतकर पलानीसामी संसद भी पहुंच चुके हैं.
परिवार की 461 फीसदी बढ़ी संपत्ति
2006 में चुनाव आयोग को सौंपे शपथपत्र में पलानीसामी ने अपनी और अपने रिश्तेदारों की संपत्ति 1.34 करोड़ रूपये घोषित की थी. लेकिन केवल दो विधानसभा चुनाव बाद ये बढ़कर 7.8 करोड़ रूपये हो गई. पिछले 10 साल में ही पलानीसामी और उनके संबंधियों की संपत्ति में 461 फीसदी से ज्यादा का उछाल आया है. इस दौरान पलानीसामी की पत्नी राधा और उनके पहले बेटे मिथुन की संपत्ति में खासी बढ़ोतरी हुई है.
पलानीसामी परिवार के बैंक अकाउंट में जमा रकम भी इस दौरान तीन गुना बढ़ी है. 2006 में बैंकों में जहां उनके और उनके परिवार के अकाउंट में 4.43 लाख रूपये जमा थे. 2016 में ये बढ़कर 13.61 लाख हो गया.
गौंडर समुदाय से ताल्लुक रखने वाले पलानीसामी की गिनती सलेम जिले के कद्दावर नेताओं में होती है. गौंडर बैकवर्ड जाति को थेवर कम्युनिटी के अलावा एआईएडीएमके का बड़ा वोट बैंक माना जाता है.
पिछले साल दिल का दौरा पड़ने के बाद जयललिता को जब अस्पताल में भर्ती कराया गया था तब मुख्यमंत्री के लिए उनका नाम भी सामने आया था. हालांकि बाद में पन्नीरसेल्वम को सत्ता की कमान सौंप दी गई.
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