पूर्व केंद्रीय मंत्री और बीजेपी नेता संघप्रिय गौतम ने बीजेपी संगठन और सरकार में कुछ बदलाव करने की मांग की है. उन्होंने कहा है, ‘केंद्रीय मंत्री नितिन गडकरी को केंद्र सरकार में उप प्रधानमंत्री बनाया जाना चाहिए, जबकि पार्टी अध्यक्ष की जिम्मेदारी मध्यप्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान को दी जानी चाहिए.’ उनका कहना है कि मौजूदा पार्टी अध्यक्ष अमित शाह केवल राज्यसभा पर ध्यान केंद्रित करें तो बेहतर होगा.
इसके अलावा संघप्रिय गौतम यूपी में भी योगी आदित्यनाथ को बदलने की भी वो बात कर रहे हैं. उनका कहना, ‘केंद्रीय गृह मंत्री राजनाथ सिंह को यूपी की कमान सौंप कर योगी आदित्यनाथ को धर्म के काम में लगा देना चाहिए.’
पार्टी के बुजुर्ग नेता संघप्रिय गौतम ने 13 दिसंबर 2018 को एक पत्र लिखकर इन सभी मुद्दों पर अपनी बात रख दी है, जिसके दो दिन पहले ही पांच राज्यों का चुनाव परिणाम आया था. इन पांच राज्यों में से तीन राज्यों मध्यप्रदेश, छत्तीसगढ़ और राजस्थान में बीजेपी सत्ता से बेदखल हो गई थी, इन तीनों ही राज्यों में अब कांग्रेस की सरकार है. जबकि मिजोरम और तेलंगाना में भी पार्टी का प्रदर्शन बेहतर नहीं था.
पत्र के माध्यम से उनका कहना है कि 2014 के लोकसभा चुनाव से ही मोदी-मंत्र और अमित शाह का जादू सर चढ़कर बोल रहा था, लेकिन, अब इनका जादू बेअसर हो रहा है. फ़र्स्टपोस्ट से बातचीत में संघप्रिय गौतम कहते हैं, ‘लोकसभा चुनाव में भी अब मोदी-शाह का जादू नहीं चलेगा. लिहाजा हम अब नहीं जीत पाएंगे.’
हालांकि, अपनी पार्टी से नाराजगी का कारण पूछने पर वे कहते हैं, ‘सरकार हर मोर्चे पर विफल रही. कालेधन, घोटाले, महंगाई और भ्रष्टाचार के मुद्दे पर हम सत्ता में आए थे, लेकिन, इस दिशा में कुछ भी काम नहीं हुआ. यहां तक कि कालेधन का एक पैसा भी हम नहीं ला सके. उल्टा, नौजवानों और किसानों की नाराजगी ही बढ़ी है.’
वो कहते हैं, ‘रोजगार के अवसर नहीं पैदा होने से नौजवान नाराज हैं, जबकि, किसानों की कर्जमाफी नहीं हुई.' लेकिन, वो इन सारी समस्याओं का समाधान भी सुझा रहे हैं. उनका दावा है कि अगर किसानों की कर्जमाफी हो, नौजवानों को रोजगार देकर खुश किया जाए और सरकार-संगठन में उनके द्वारा सुझाए गए मुद्दों पर गौर किया जाए तो इस परिवर्तन से सबकुछ ठीक हो जाएगा.
संघप्रिय गौतम एससी और एसटी समुदाय की नाराजगी का मुद्दा भी उठा रहे हैं. उनका दावा है कि एससी-एसटी एक्ट के मुद्दे पर हुए आंदोलन के वक्त से भी समाज के भीतर नाराजगी है, लिहाजा यूपी समेत कई दूसरे राज्यों में भी पार्टी को इसका नुकसान पड़ सकता है.
पहली भी देते रहे हैं ऐसे बयान!
पार्टी के भीतर अपनी उपेक्षा का आरोप लगा रहे संघप्रिय गौतम का बयान नया नहीं है. इसके पहले भी नवंबर 2015 में बिहार विधानसभा चुनाव के वक्त पार्टी की हार के बाद उन्होंने कई सवाल खड़े किए थे. जब बीजेपी के वरिष्ठ नेता लालकृष्ण आडवाणी, मुरली मनोहर जोशी, शांता कुमार और यशवंत सिंहा ने बिहार विधानसभा चुनाव की हार के बाद कड़ा बयान जारी करते हुए हार की जिम्मेदारी लेने की बात कही थी तो उस वक्त भी संघप्रिय गौतम ने उनके सुर में सुर मिलाया था.
उस वक्त भी गौतम ने राजनाथ सिंह को एक बार फिर पार्टी की कमान सौंपने की मांग की थी. संघप्रिय गौतम ने आरएसएस प्रमुख मोहन भागवत को भी राजनीति छोड़ संगठन पर ध्यान केंद्रित करने की नसीहत दी थी. अब एक बार फिर वो कुछ इसी तरह का बयान देने लगे हैं.
कौन हैं संघप्रिय गौतम ?
दरअसल, संघप्रिय गौतम बीजेपी के संस्थापक सदस्यों में से एक हैं. लंबे वक्त तक ये पार्टी के दलित चेहरा के तौर पर भी रहे हैं. 88 साल के संघप्रिय गौतम अटल-आडवाणी की टीम में काम कर चुके हैं. वो राज्यसभा के सदस्य रहने के साथ-साथ अटल बिहारी वाजपेयी सरकार में मंत्री भी रह चुके हैं. इसके अलावा राज्यसभा में पार्टी के चीफ व्हिप और डिप्टी चेयरमैन भी रह चुके हैं.
संघप्रिय गौतम ने पार्टी संगठन में भी काम किया है. लालकृष्ण आडवाणी जब बीजेपी अध्यक्ष के थे तो उनकी टीम में वो बीजेपी के केंद्रीय सचिव थे, जबकि कुशाभाऊ ठाकरे के पार्टी अध्यक्ष बनने के बाद वे महासचिव बनाए गए. बीजेपी से जब बंगारू लक्ष्मण को पार्टी का अध्यक्ष बनाया गया तो उस वक्त भी संघप्रिय गौतम पार्टी के उपाध्यक्ष बनाए गए. जब दलित बीजेपी अध्यक्ष की चर्चा चल रही थी, तो उस वक्त बंगारू लक्ष्मण के अलावा संघप्रिय गौतम का नाम भी चर्चा में रहा था, लेकिन, बंगारू लक्ष्मण को ही अध्यक्ष बनाया गया.
इनके बयान का कितना है असर?
पार्टी के दलित चेहरे के तौर पर अपनी पहचान रखने वाले संघप्रिय गौतम आज पार्टी में हाशिए पर हैं. अटल-आडवाणी का युग अब पूरी तरह से खत्म हो चुका है. लालकृष्ण आडवाणी और मुरली मनोहर जोशी भले ही सांसद हों लेकिन, उनकी भूमिका पार्टी के भीतर मार्गदर्शक मंडल तक सिमट कर रह गई है. ऐसे में अटल-आडवाणी के दौर के पार्टी के दलित चेहरे के तौर पर अपनी पहचान रखने वाले संघप्रिय गौतम भी अब पार्टी के भीतर हाशिए पर हैं. बुजुर्ग नेता की जगह अब नई पीढ़ी के युवा दलित चेहरों ने ले ली है.
उनकी तरफ से इस तरह का दिया गया बयान पार्टी की नीति और रणनीति पर कोई असर डालने वाला नहीं लगता है. पार्टी के भीतर उनके इस बयान को तवज्जो देकर उनके सुझाव पर अमल करने के लिए भी कोई तैयार नहीं होगा. लेकिन, लोकसभा चुनाव से पहले उनका पत्र विरोधियों को एक मौका जरूर देगा.
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