पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह इन दिनों काफी गुस्से में हैं. उनकी यह नाराजगी किसी और से नहीं बल्कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से है. रविवार को मोदी ने गुजरात चुनाव के लिए प्रचार करते हुए बनासकांठा की अपनी रैली में इशारों-इशारों में मनमोहन सिंह को लेकर गंभीर आरोप लगाए थे.
अपने पूरे करियर में एक नौकरशाह के तौर पर कार्य करने वाले मनमोहन सिंह को पूर्व प्रधानमंत्री पी वी नरसिम्हा राव राजनीति में लेकर आए थे. मगर राजनीतिक आरोप-प्रत्यारोपों से मनमोहन सिंह का वास्ता पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी ने करवाया था.
वाजपेयी के नेतृत्व वाले विपक्ष ने तत्कालीन राव सरकार में वित्त मंत्री रहे मनमोहन सिंह की कड़ी आलोचना की थी. इससे आहत होकर मनमोहन सिंह ने राजनीति छोड़ने का निर्णय ले लिया था. तब नरसिम्हा राव ने वाजपेयी के पास जाकर उनसे आग्रह किया था कि वो नाराज मनमोहन सिंह से जाकर मिलें.
वाजपेयी ने तब मनमोहन से मुलाकात कर उन्हें समझाते हुए कहा कि वो आलोचना को निजी तौर पर न लें. सरकार के कार्यों की आलोचना करना विपक्ष का कर्तव्य है.
उस दिन से बदले हुए मनमोहन सिंह सत्ता में रहते हुए या विपक्ष के तौर पर शामिल होने वाली सार्वजनिक बहस में हिस्सा लेते रहे हैं. आम तौर पर वो अपनी शिष्टता वाली छवि को बरकरार रखते हैं.
अपने कार्यकाल के दौरान उन्होंने संसद के सदस्यों की बातों को गौर से सुना
प्रधानमंत्री के रूप में अपने एक दशक लंबे कार्यकाल में डॉ मनमोहन सिंह ने बातें कम की, लेकिन उन्होंने संसद के सदस्यों की बातों को गौर से सुना. 2009 के लोकसभा चुनाव के दौरान उन्हें निशाना बनाया गया लेकिन उन्होंने इसपर पलटवार करना उचित नहीं समझा.
बीजेपी के उस समय के प्रधानमंत्री के उम्मीदवार लालकृष्ण आडवाणी ने मनमोहन सिंह को बार-बार 'कमजोर प्रधानमंत्री' कहा, तब मनमोहन ने जवाब देते हुए कहा था कि 'कारगिल युद्ध के दौरान जब जवाब देने की बारी आई थी तब 'लौह पुरुष' पिघल गए थे.'
मनमोहन सिंह और लोकसभा में विपक्ष की नेता सुषमा स्वराज के बीच कविता की भाषा में हुए वाद-विवाद ने मीडिया में काफी सुर्खियां बटोरी थीं.
2013 में राष्ट्रपति के अभिभाषण पर अपने धन्यवाद भाषण में सुषमा स्वराज ने यूपीए-2 सरकार की नीतियों पर सवाल खड़ा करते हुए शायर बशीर बद्र की लाइनों का जिक्र करते हुए कहा था, 'कुछ तो मजबूरियां रही होंगी, यूं को कोई बेवफा नहीं होता.'
जवाब में, प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने मिर्ज़ा गालिब को याद करते हुए कहा कि 'हमें है उनसे वफा की उम्मीद, जिन्हें नहीं मालूम है वफा क्या है' कहकर अपना भाषण खत्म किया था.
2014 के आम चुनावों में मिली जबरदस्त हार के बाद, मनमोहन सिंह संसद के हर सत्र में नियमित रूप में हिस्सा लेते रहे हैं. मगर वो कम ही विषयों पर बोलते और सवाल उठाते हैं. लेकिन जब भी वो कुछ बोलते हैं उनके सियासी विरोधी भी उनकी बातों को गंभीरता से सुनते हैं.
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