वृहद मुंबई महानगर परिषद का वार्षिक बजट 37 हजार करोड़ रुपए है, जो देश के कुछ छोटे राज्यों के बजट से ज्यादा है. 1984 में शिवसेना के सुप्रीमो बाला साहेब ठाकरे और बीजेपी नेता प्रमोद महाजन ने बीजेपी-शिवसेना गठबंधन की नींव रखी थी.
यह गठबंधन 2014 के महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव में पूरी तरह टूट गया था. दोनों दलों के बीच गठबंधन का मुख्य आधार हिंदुत्व की विचारधारा और कांग्रेस-विरोध था.
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शिवसेना व अकाली दल भाजपा के सबसे पुराने पार्टनर रहे हैं. मुंबई महानगरपालिका के चुनाव में दोनों दलों का रिश्ता 25 साल से अधिक रहा है.
शिवसेना का राजनीतिक जन्म ही मुंबई महापालिका के चुनाव के माध्यम से ही हुआ है. इस वजह से शिवसेना को लगता है कि मुंबई महानगरपालिका पर उसके अधिकार को चुनौती नहीं दी जा सकती है.
शिवसेना के नेता उद्धव ठाकरे व महाराष्ट्र के भाजपाई मु्ख्यमंत्री देवेंद्र फड़णनवीस ने अलग-अलग घोषणा की है कि वृहद मुंबई नगर पालिका चुनाव में वे अकेले ही चुनाव मैदान में उतरेंगे.
शिवसेना को छोटे भाई की भूमिका स्वीकार नहीं
2014 के विधानसभा चुनाव नतीजों के बाद महाराष्ट्र की राजनीति का परिदृश्य पूरी तरह बदल गया है, जिसे शिवसेना अभी भी स्वीकार नहीं कर पा रही है. शिवसेना को छोटे भाई की भूमिका मुंबई में स्वीकार नहीं है.
कार्टूनिस्ट से राजनेता बने शिवसेना सुप्रीमो बाला साहेब ठाकरे के 2012 में निधन के पहले से ही शिवसेना के कमजोर होने के सिलसिला शुरु हो गया था.
बीजेपी के लिए यह मौका था कि वह महाराष्ट्र की राजनीति में शिवसेना के छोटे भाई होने का तमगा फेंककर खुद बड़ा भाई बन जाए. दो साल के भीतर ही बीजेपी ने यह करिश्मा कर दिखाया.
एनसीपी की चालों से मजबूर शिवसेना
इस वजह से यह आश्चर्य की बात नहीं है कि विधानसभा चुनाव में टकराने के बाद अब मुंबई महानगरपालिका के चुनाव में भी बीजेपी और शिवसेना एक-दूसरे के सामने खड़े दिखाई देंगे. 2014 के विधानसभा चुनाव नतीजों में सबसे बड़ी पार्टी के तौर पर उभरने के बाद शिवसेना से इतर राजनीतिक विकल्पों की तलाश शुरू कर दी थी.
तब राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी ने सरकार बनाने के लिए बीजेपी को बिना शर्त समर्थन देने की घोषणा करके चकित कर दिया था. राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी की इस राजनीतिक पैंतरेबाजी का ही नतीजा था कि शिवसेना को बीजेपी के नेतृत्व में बननेवाली सरकार में शामिल होने के लिए विवश होना पड़ा. फिर मंत्रियों के विभागों के बंटवारे पर दोनों दलों के बीच खुला टकराव हुआ था.
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बाला साहेब ठाकरे के निधन के पूर्व ही बीजेपी ने तय कर लिया था कि किस तरह शिवसेना के जनाधार को अपने भीतर समाहित कर लिया जाए? शिवसेना प्रमुख उद्धव ठाकरे भी इस तथ्य से अच्छी तरह परिचित थे कि बीजेपी शिवसेना के जनाधार को हड़पने की कोशिश कर रही है.
जिस हिंदुत्व के आधार पर दोनों दलों के बीच राजनीतिक एकता कायम हुई थी, वह अब एक सिरे से गायब था. दोनों दलों के बीच अब शुद्ध रूप से सत्ता संघर्ष चल रहा है.
दिलचस्प बात यह है कि विधानसभा और मुंबई महानगरपालिका के चुनाव में बीजेपी और शिवसेना एक-दूसरे से टकरा रहे हैं, लेकिन केंद्रीय मंत्रिमंडल में बने रहने में शिवसेना को कोई परेशानी नहीं है.
कोई आश्चर्य नहीं होगा यदि मुंबई महानगरपालिका के चुनाव के बाद दोनों मिलकर सत्ता पर काबिज हो जाएं. फर्क इतना ही होगा कि पहले शिवसेना अपनी शर्तें थोपने की स्थिति में थी और अब बीजेपी अपनी शर्तें थोप रही है.
केंद्र में विकल्पहीन है शिवसेना
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने शिवसेना के बारे में एक बार टिप्पणी की थी कि यह हफ्ता पार्टी है जो मुंबई में लोगों से धन वसूली करती है. महाराष्ट्र में शिवसेना की छवि एक दबंगई पार्टी के रूप में रही है, जिससे बीजेपी स्वयं को अब अलग करने की कोशिश कर रही है. सभी जानते हैं कि नरेंद्र मोदी ने शिवसेना के राज ठाकरे गुट को बढ़ावा देने की कोशिश की थी.
महाराष्ट्र में 32 साल तक शिवसेना के साथ भाग्य आजमाने के बाद अब बीजेपी अपने नए विकल्पों पर विचार कर रही है.
2014 के विधानसभा चुनाव में राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी ने कांग्रेस से नाता तोड़कर महाराष्ट्र में नए राजनीतिक समीकरण बनाने का असफल प्रयास किया था. कमजोर शिवसेना के पास राष्ट्रीय स्तर पर फिलहाल बीजेपी के अलावा कोई दूसरा विकल्प नहीं दिखाई देता है.
2019 के लोकसभा चुनाव में यह तय माना जाना चाहिए कि भाजपा शिवसेना को उतनी सीटें देने के लिए तैयार नहीं होगी, जितनी सीटें उसे 2014 लोकसभा के चुनाव में मिली थीं.
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