पिछले हफ्ते वायुसेना प्रमुख एयर चीफ मार्शल बी एस धनोआ ने 12 हजार एयरफोर्स अफसरों को एक निजी खत लिखा. इस चिट्ठी में वायुसेना प्रमुख ने एयरफोर्स के अफसरों को बेहद कम वक्त के नोटिस पर अभियान चलाने के लिए तैयार रहने को कहा. वायुसेना के अफसरों को एयरफोर्स चीफ के निजी खत लिखने का शायद ये पहला मामला है. हालांकि दो सेना प्रमुखों, फील्ड मार्शल के एम करियप्पा ने मई 1950 में और जनरल के सुंदरजी ने फरवरी 1986 में ऐसी चिट्ठियां अपने मातहतों को लिखी थीं.
यूं तो वायुसेना प्रमुख ने अपनी चिट्ठी में अफसरों का हौसला बढ़ाने के लिए बहुत सी बातें लिखी हैं. मगर इस चिट्ठी को ऐसे मौके पर भेजा गया है जब भारत और पाकिस्तान के रिश्ते बेहद खराब दौर से गुजर रहे हैं. साथ ही जम्मू-कश्मीर के हालात भी बेहद खराब हैं.
क्यों है खत खास !
एयरचीफ मार्शल धनोआ की चिट्ठी इसलिए भी अहम हो जाती है क्योंकि ऐसा कहा जा रहा है कि भारत को आगे चलकर दो मोर्चों पर एक साथ जंग लड़नी पड़ सकती है. जिस तरह से चीन की हरकतें बेलगाम हो रही हैं, उससे इस बात की आशंका बढ़ती जा रही है.
खबरों के मुताबिक दो मोर्चों पर जंग की सूरत में एयरफोर्स अपने नए लड़ाकू विमान रफाल को हरियाणा के अंबाला एयरबेस पर और पश्चिम बंगाल के हासीमारा एयरबेस पर तैनात करेगा. भारत ने हाल ही में 36 रफाल लड़ाकू विमान फ्रांस से खरीदने का समझौता किया है.
इसी साल जनवरी में आर्मी चीफ जनरल बिपिन रावत ने कहा कि भारतीय सेना एक साथ दो मोर्चों यानी चीन और पाकिस्तान के खिलाफ जंग के लिए पूरी तरह से तैयार है.
जनरल रावत ने कहा था कि, 'जहां तक सेनाओं का सवाल है तो हमें एक साथ दो मोर्चों पर जंग लड़ने के लिए तैयार रहने को कहा गया है. मेरा मानना है कि हम इस चुनौती के लिए तैयार हैं. जब भी राजनैतिक नेतृत्व इस बात का फैसला करके हमें जो भी जिम्मेदारी देगा, हम उसे निभाएंगे'.
जनरल रावत के बयान और एयरचीफ मार्शल धनोआ की चिट्ठी से कुछ सवाल खड़े होते हैं.
सबसे बड़े सवाल
पहला सवाल तो ये कि क्या युद्ध होगा? अगर युद्ध होगा तो क्या एक साथ दो मोर्चों पर लड़ा जाएगा? अगर दो मोर्चों पर जंग होगी तो एयरफोर्स इस चुनौती से निपट सकेगी या नहीं?
इन सवालों में से पहले के जवाब में ये कहा जा सकता है कि पाकिस्तान से जंग हो सकती है. कहा जाता है कि युद्ध लड़ने का फैसला कोई भी देश बहुत सोच-समझकर लेता है. मतलब ये कि उस देश के नेता समझदार होते हैं. बुरा-भला समझते हैं और नफा-नुकसान सोचकर ही हमला करने या बचाव में युद्ध लड़ने का फैसला करते हैं.
जहां तक युद्ध को सोच-समझकर लड़ने की बात है, तो इस हिसाब से युद्ध के होने की संभावना कम हो जाती है.
लेकिन जब किसी देश में सोच-समझकर फैसले लेने वाले नेताओं की कमी होती है, तो युद्ध होने की आशंका बढ़ जाती है. पाकिस्तान के मामले में ऐसा ही देखने को मिलता रहा है. वहां की फौज कट्टरपंथी होती जा रही है. पाकिस्तान में फौज सबसे बड़ी ताकत है. ऐसे में हमारे पश्चिमी मोर्चे पर जंग की आशंका ज्यादा है.
चीन और पकिस्तान साथ मिल कर लड़ेंगे ?
अब सवाल ये उठता है कि पाकिस्तान से जंग होने की सूरत में क्या चीन उसकी मदद करेगा? इस बात की उम्मीद कम ही है. इसकी कई वजहें हैं. पहली बात तो ये कि पाकिस्तान के मुकाबले, चीन के नेता सोच-समझकर फैसले लेने वाले हैं. भले ही वहां भी एक पार्टी की तानाशाही हो, मगर चीन के नेताओं के बारे में मशहूर है कि वो नफा-नुकसान देखकर ही कोई फैसला लेते हैं.
अपने आपको महाशक्ति बनाने के लिए चीन को पहले अपनी अर्थव्यवस्था मजबूत करनी है. इसके लिए आर्थिक सहयोग की जरूरत होती है. दुनिया के तमाम देशों से तालमेल और बेहतर संबंधों की जरूरत होती है. चीन को अपनी तरक्की के लिए भारत की भी जरूरत है.
आज भले ही चीन और भारत में कई मुद्दों पर गंभीर मतभेद हैं. मगर दोनों देशों के रिश्ते किन्हीं दो-तीन मुद्दों की बुनियाद पर नहीं टिके हैं. बहुत से अंतरराष्ट्रीय मसलों पर चीन और भारत की राय एक है.
इतिहास क्या कहता है ?
पहले भी ऐसा माना जाता था कि चीन, पाकिस्तान का साथ देगा. मगर 1965 और 1971 की लड़ाइयों में चीन ने पाकिस्तान का खुलकर साथ नहीं दिया था. ये उस दौर में हुआ था जब चीन और भारत के बीच 1962 की लड़ाई के बाद रिश्ते बेहद बुरे दौर से गुजर रहे थे. बल्कि दोनों देशों में ताल्लुक था ही नहीं. आज तो दोनों देशों के रिश्ते सामान्य भी हैं और कई मोर्चों पर दोनों एक-दूसरे का सहयोग भी कर रहे हैं.
हालिया इतिहास को देखें तो एक साथ दो मोर्चों पर जंग की मिसालें कम ही मिलती हैं. तर्क तो लोग ये भी दे सकते हैं कि अमेरिका एक साथ अफगानिस्तान और इराक में युद्ध लड़ रहा था. पर सच तो ये है कि दोनों देशों में गृह युद्ध छिड़ा हुआ था और अमेरिका ने किसी एक धड़े के समर्थन में ही दोनों जगह दखल दिया था. अमेरिका ने अफगानिस्तान और इराक के खिलाफ खुलकर जंग नहीं लड़ी.
दो मोर्चों पर लड़ने से भारत का क्या होगा ?
अब सवाल ये है कि क्या भारतीय वायुसेना एक साथ दो मोर्चों पर जंग लड़ सकती है. हम यहां जीतने की बात नहीं कर रहे हैं. एटमी हथियारों के दौर में आज जंगें बहुत छोटे पैमाने पर लेकिन बेहद निर्णायक तरीके से लड़ी जाती हैं. दुनिया के तमाम देश, दो बड़ी ताकतों के बीच लंबे वक्त तक युद्ध नहीं चलने देंगे. वो जंग रोकने के लिए दखल देंगे, ये तय है.
एयरचीफ मार्शल ने अपने मातहतो को जो चिट्ठी लिखी, वो भविष्य के नहीं, बल्कि मौजूदा हालात के हिसाब से लिखी थी और बेहद कम वक्त की तैयारी में ऑपरेशन के लिए तैयार रहने को कहा था.
एयरचीफ मार्शल धनोआ की चिट्ठी का मतलब ये है कि भले ही आज हमारे पास संसाधन कम हैं. फिर भी हमें देश के प्रति अपनी जिम्मेदारी का एहसास है और हम इसे बखूबी निभाएंगे.
एयर फ़ोर्स के हौसला तो है पर क्या साधन भी हैं?
पिछले साल उप वायुसेना प्रमुख के तौर पर एयर चीफ मार्शल धनोआ ने माना था कि वायुसेना के पास लड़ाकू जहाजों की कमी है. दो मोर्चों पर जंग की सूरत में वायुसेना के पास लड़ने के लिए पर्याप्त संसाधन नहीं हैं.
इस वक्त एयरफोर्स जिन लड़ाकू विमानों का इस्तेमाल कर रही है, उनमें से आधे अगले 9 सालों में रिटायर हो जाएंगे. इस वक्त वायुसेना के पास 35 फाइटर स्क्वाड्रन हैं. जबकि सरकार ने 42 स्क्वाड्रन की मंजूरी दी हुई है. जबकि जरूरत 45 स्क्वाड्रन की है. संसद की स्थायी समिति की हालिया रिपोर्ट पर यकीन करें तो इस वक्त वायुसेना की असल ताकत 25 स्क्वाड्रन तक सिमट गई है.
इन 25 स्क्वाड्रन में से 14 के पास मिग-21 और मिग-27 लड़ाकू विमान हैं. ये विमान 2015 से 2024 के बीच रिटायर होंगे. 2024 तक वायुसेना की ताकत 11 स्क्वाड्रन तक सिमट जाएगी.
संसदीय समिति का मानना है कि जिस रफ्तार से वायुसेना के लड़ाकू विमान रिटायर हो रहे हैं, उनके बदले नए विमान खरीदने में ज्यादा वक्त लग रहा है.
अच्छी बात ये है कि एयरफोर्स ने 272 सुखोई-30 फाइटर प्लेन खरीदने का फैसला कर लिया था. ये विमान वायुसेना को 2020 तक मिल जाएंगे, इससे 13 स्क्वाड्रन की कमी पूरी हो सकेगी. यानी वायुसेना अपनी ताकत में 13 स्क्वाड्रन का इजाफा 2020 तक ही कर पाएगी.
साथ ही देश में ही बने लाइट कॉम्बैट एयरक्राफ्ट (LCA) यानी तेजस को भी वायुसेना में शामिल किया जा रहा है. साथ ही भारत ने रूस के साथ पांचवीं पीढ़ी के लड़ाकू विमान के विकास का समझौता भी किया है. हाल ही में रफाल लड़ाकू विमान खरीदने का सौदा भी हुआ है. फिर भी हालात तसल्लीबख्श नहीं कहे जा सकते.
चीन और पाकिस्तान के मुकाबले कहाँ खडा है भारत?
फिलहाल भारत को पाकिस्तान पर बढ़त हासिल है. भारतीय सेना, पाकिस्तान की फौज से दोगुनी ताकतवर है. एयरफोर्स की ताकत पाकिस्तान से करीब डेढ़ गुना ज्यादा है. वहीं नौसेना की ताकत पाकिस्तान की नेवी से तीन गुना ज्यादा है. लेकिन चीन से मुकाबले की सूरत में हालात इसके उलट हो जाते हैं.
अगर हम चीन और पाकिस्तान की ताकत को जोड़ दें तो भारतीय सेनाओं की ताकत बेहद दयनीय नजर आती है. दोनों देशों से एक साथ मुकाबले के लिए हमें अपना रक्षा बजट 50 फीसद बढ़ाना होगा.
इन बातों ये मतलब नहीं कि अगर छोटे पैमाने पर दो मोर्चों पर जंग छिड़ी तो हम मुकाबला नहीं कर सकेंगे. ये मानकर चलिए कि दो मोर्चों पर एक साथ युद्ध हुआ तो वो कम वक्त ही चलेगा.
चीनी एयर फोर्स के मुकाबले भारतीय वायु सेना
एयरफोर्स की बात करें तो फिलहाल हमें चीन पर भी बढ़त हासिल है. उनके विमान ऊंचाई वाले एयरबेस से उड़ान भरेंगे. वो कम ईंधन और हथियार लेकर ही उड़ सकेंगे. उनके पास हवा में ईंधन भरने वाले विमान भी नहीं हैं. इसलिए उनकी वायुसेना के मुकाबले हमारी स्थिति बेहतर है.
मिग-29, मिराज-2000, C-17 ग्लोबमास्टर मालवाहक विमान और लॉकहीड मार्टिन कंपनी का बनाया C-130J सुपर हरक्यूलिस मालवाहक विमानों के अलावा हमारे पास सुखोई-30 जैसे लड़ाकू विमान हैं, जो तीन हजार किलोमीटर दूर तक मार कर सकते हैं. वो लगातार पौने चार घंटे तक हवा में रह सकते हैं.
सुखोई-30 बेहद शानदार लड़ाकू विमान हैं. इनकी रफ्तार भी 2120 किलोमीटर प्रति घंटा है और इनकी रेंज भी काफी अच्छी है. ये लड़ाकू विमान एक साथ पाकिस्तान और चीन के मोर्चे पर भेजे जा सकते हैं. इस दौरान इन्हें फिर से ईंधन भरने की जरूरत भी नहीं होगी. वो एक साथ तिब्बत और पाकिस्तान के मोर्चे पर बम बरसा सकते हैं.
भारत के पास ब्रह्मोस जैसी मिसालइ भी है. इनकी रफ्तार 2.8 माख यानी 952 मीटर प्रति सेकेंड की है. इनके आगे दुश्मन के रडार फेल हो जाते हैं. और अगर तीस किलोमीटर के दायरे में दुश्मन का रडार इनका पता भी लगा लेता है तो उससे कोई फर्क नहीं पड़ता. क्योंकि उन्हें अगले तीस सेकेंड में इन्हें रोकने की कोशिश करनी होगी.
ब्रह्मोस मिसाइलें हमारे दुश्मनों को भारी नुकसान पहुंचा सकती हैं. उनके टैंक, एयरबेस, जहाजों और कम्यूनिकेशन सेंटर तबाह किए जा सकते हैं. पहले ये काम लड़ाकू विमान किया करते थे. अच्छी बात ये है कि ये मिसाइलें रूस के सहयोग से भारत में ही बनाई जा रही हैं.
कुल मिलाकर अगर छोटे पैमाने पर दो मोर्चो पर युद्ध छिड़ा तो हमारी वायुसेना देश की रक्षा करने में पूरी तरह सक्षम है. हां, युद्ध लंबा खिंचा तो हालात मुश्किल हो सकते हैं.
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