‘मन की बात’ के अपने नवीनतम प्रसारण में, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने स्वतंत्रता दिवस के अपने भाषण में शामिल किए जाने वाले विषयों के संबंध में लोगों को अपने विचार भेजने को कहा. प्रधानमंत्री ने आगे आने वाले सालों के लिये एक मार्गसूचक कायम करने के उदेश्य से ये सुझाव मांगे.
इसलिए, इस दृष्टिकोण से यहां मैं अपनी ओर से पांच ऐसे प्रमुख क्षेत्रों का वर्णन कर रहा हूं, जिन पर प्रधानमंत्री को अपना ध्यान केंद्रित करना चाहिए, अपने भाषण और प्रशासन दोनों में.
1 शांति को बढ़ावा दें, युद्ध को नहीं
भारत-चीन सीमा विवाद को युद्ध में तब्दील न होने दें. हालांकि, चीन के समझौतों को तोड़ने की प्रवृत्ति और हमारी भूमि पर कब्जा करने की कोशिशों पर भी लगाम लगाने की आवश्यकता है, और इसके लिए निक्कोलो मैकियावेली के इस कथन को ध्यान में रखना भी जरूरी है कि यदि आप उस युद्ध में नहीं उतरते, जिसे लड़ना जरूरी है तो कल आपको वह युद्ध और भी भारी नुकसान उठा कर लड़ना पड़ेगा - फिर भी युद्ध को यथासंभव टालने का प्रयास करना चाहिए.
अपने हितों से समझौता किए बिना और अतीत में युद्ध की बजाय जरूरत से ज्यादा शान्तिपूर्ण ढंग से विवादों को निपटाने में की गई गलतियों को दोहराए बिना, हमें स्थिति को शांत करने की कोशिश करनी चाहिए. हालांकि चीन विश्व सिरमौर देश बनने का ख्वाब देख रहा है, लेकिन भारत में भी वैश्विक अभिलाषाएं मौजूद हैं. इस समय युद्ध की अपेक्षा दीर्घकाल तक एक-दूसरे का आमना-सामना करना पड़े या गतिरोध बने रहना पड़े तो वह भी बेहतर होगा।
2 आपसी व्यापार के माहौल में सुधार करना
क्या ‘मेक इन इण्डिया’ अकेले इतनी नौकरियां पैदा कर सकता है, जिनकी हमें आवश्यकता है? या क्या हम एक मुर्दे में जान डालने की कोशिश कर रहे हैं? क्या हमें देश में रोजगार के अवसर पैदा करने के लिये स्किल इन इण्डिया, रिसर्च इन इण्डिया, हील इन इण्डिया और एजुकेट इन इण्डिया की आवश्यकता नहीं है?
देश में सूक्ष्म सुधारों का भी स्वागत है जिनके कारण व्यापारिक माहौल में सुधार होता है. लेकिन कुछ विशेष सांस्कृतिक आचार-विचार को कतई बढ़ावा नहीं देना चाहिए जो लाखों-करोड़ों कर्मचारियों को रोजगार प्रदान करने वाले उद्योगों को शिथिल कर देते हैं. बिना सरकारी सहयोग के ऐसी अपेक्षायें कुम्हला कर दम तोड़ देती हैं.
हमें रोजगार उत्पन्न करने के लिए वैकल्पिक स्रोतों को भी सक्रिय करना चाहिए. व्यापार को व्यापार के सिद्धांतों द्वारा ही कार्य करने दें. एक गतिशील उद्योग पर बहुत अधिक नियंत्रण न रखें न कठोरता बरतें.
3 एक वैज्ञानिक सोच विकसित करें
एक समाज के रूप में, हमारे यहां वैज्ञानिक सोच को बहुत ज्यादा महत्त्व नहीं दिया जाता. न ही हम वैज्ञानिक काम-धंधों को बढ़ावा देते हैं, और यह वैज्ञानिकता में हमारे निरंतर गिरते हुए प्रदर्शन से दिखायी पड़ता है. हालांकि हम अपने खोये हुए राष्ट्रीय गौरव को पुनर्जीवित करने में मदद करने के लिए अपने गौरवशाली अतीत की ओर देखते हैं, लेकिन हमें यह अवश्य याद रखना चाहिए कि वे सभ्यताएं जो अति उत्साहपूर्ण ढंग से ऐसे मार्गों पर चलती हैं, अतीत का एक हिस्सा होकर रह जाती हैं और वर्तमान समय के साथ कदम से कदम मिला कर चलने में असफल हो बैठती हैं.
इन स्थितियों में समाज जीवन शक्ति से वंचित रह जाता है. युवा वर्ग अराजकतावादी या रूढ़िवादी गतिविधियों में लिप्त हो जाता है जो कि नई विश्व व्यवस्था के लिये बहुत हानिकारक है.
आज, साधारण व्यक्ति अक्सर यह कहता है,‘अल्पसंख्यक वर्ग बहुत कट्टर और आक्रामक होता जा रहा था. बीजेपी उसे उसकी हैसियत में रखने के लिए बहुत अच्छा कार्य कर रही है.' यह विचार सच है या नहीं, यह चर्चा का विषय है लेकिन देशवासियों को नीत्शे की इस पुरानी कहावत को हमेशा याद रखना चाहिए,‘राक्षसों से लड़ने वाले व्यक्ति को यह ध्यान रखना चाहिये उनसे लड़ते हुए ऐसा न हो कि वह स्वयं एक राक्षस बन जाए.’
साम्प्रदायिकता का उत्तर जवाबी साम्प्रदायिकता नहीं है. यह सार्थक परिवर्तन ही होता है जो ऐसे साम्प्रदायिक आह्वानों को पंगु बनाता है. जातिवाद का उत्तर जवाबी जातिवाद नहीं है. यह समाज में होने वाला सुधार ही है जो जातिवाद को अप्रसांगिक बनाता है.
हालांकि मैं अपनी विरासत को लेकर बहुत गौरवान्वित महसूस करता हूं लेकिन मैं अपने वर्तमान पर भी गर्व करता हूं. अतीत पर बहुत ज्यादा ध्यान केंद्रित रखने से भी वर्तमान का सर्वनाश हो जाता है. आज का भारत ऐसी स्थिति से बहुत दूर है. समाज को कट्टरता से मुक्त करने और नागरिकों में एक वैज्ञानिक सोच पैदा करने की आवश्यकता है.
4 एक नये प्रकार की राजनीति
बीजेपी के दृढ़ संकल्पी नेता ही ज्यादातर उसकी राजनीति को विस्तार प्रदान कर रहे हैं. इसके अतिरिक्त, यह नेतृत्व नियमों को तोड़ने-मरोड़ने से और इस तथ्य में सहजता महसूस करने से भी नहीं घबराता कि वह तो केवल अपने पूर्ववर्ती शासक दल यानि कांग्रेस द्वारा स्थापित उदाहरणों का ही अनुकरण कर रहा है.
यह पूरी सफाई के साथ नीतिहीन अतीत से संबंध तोड़ कर उससे मुक्त हो जाने का समय है. मोदी में हम एक ऐसे राजनेता को देखते हैं जिसमें ऐसा करने का साहस भी है और क्षमता भी.
आपराधिक जगत से संबंध रखने वाले सांसदों के खिलाफ चल रहे मुकदमों में तेजी लाने की जरूरत है. राजनीतिक नक्शे से उनका अस्तित्व ही समाप्त कर देना चाहिए. जल्द से जल्द लोकपाल की नियुक्ति होनी चाहिए. राजनेताओं को केवल अपने राजनीतिक लाभ प्राप्त करने के लिये सीबीआई और ईडी जैसे संस्थानों पर अपने प्रभाव का इस्तेमाल करने से बचना चाहिए.
5 अहंकार नहीं, कार्यकुशलता
नौकरशाही में कार्यकुशलता बढ़ रही है. वरिष्ठ अधिकारियों के स्तर पर भ्रष्टाचार सही मायनों में समाप्त सा हो रहा है. नौकरशाहों द्वारा सत्ता के प्रतीकों जैसे लाल बत्ती के इस्तेमाल को बंद कर दिया गया है. लेकिन जहां अहंकार व्यक्त करने के पुराने तरीकों को तिलांजलि दे दी गयी है, वहीं अपने पद की हेकड़ी जमाने के नये-नये तरीके भी अक्सर देखने को मिल जाते हैं.
नौकरशाह और नेता अपने अहंकार का प्रदर्शन करने के लिए अब राष्ट्रीयता या देशप्रेम जैसे नए बहानों का सहारा ले रहे हैं. असहमति व्यक्त करने वाले विचारों को अब लांछन युक्त हमलों से मात दी जा सकती है. उदाहरण के लिए, हमसे असहमत व्यक्ति पश्चिमी देशों में अपनी शिक्षा ग्रहण करने के कारण हमारे गौरवशाली अतीत की प्रशंसा नहीं कर पा रहा है और यही पश्चिमी शिक्षा अपनी मातृभूमि के लिये उसके मन में प्रेम की कमी के लिये जिम्मेदार है.
शायद ही कोई भारतीय हो जो राष्ट्रवादी भावनाओं के प्रति अपना विरोध प्रकट करता हो. हमें डर उन लोगों से है जिन्होंने राष्ट्रवादी तर्कों में अपने पूर्वाग्रहों को छिपा लिया है. ऐसे लोग कहर बरपा सकते हैं. हमें राष्ट्रवाद के बारे में चिन्ता करने की कोई जरूरत नहीं है बल्कि हमें उन घृणित तत्वों से चिंतित होने की आवश्यकता है जो अपनी हकीकत को राष्ट्रवाद के दामन में छिपा कर रखते हैं.
इस प्रकार, मेरी अन्तिम कामना है कि नौकरशाहों के बीच मौजूद वीवीआईपी संस्कृति को पूर्ण रूप से समाप्त किया जाए. उन्हें कहा जाये कि वे कम बोलें, अधिक सुनें और अधिकाधिक मुस्करायें. इसके इलावा, अपनी बात अपने से वरिष्ठ वर्ग के सामने ज़रूर रखें, सार्वजनिक रूप से न सही, लेकिन कम से कम निजी रूप से ज़रूर.
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