पिछले दो दिनों की लंबी खींचतान के बाद भूपेश बघेल ने छत्तीसगढ़ के तीसरे मुख्यमंत्री के तौर पर शपथ ले ली. भूपेश बघेल के अलावा मुख्यमंत्री पद की रेस में शामिल रहे टीएस सिंहदेव और ताम्रध्वज साहू ने भी मंत्री पद की शपथ ली. भूपेश बघेल के सीएम बनने के बाद पहली चुनौती मंत्रिमंडल गठन की आने वाली है. ऐसा माना जा रहा है कि इस समय दो दर्जन से भी अधिक विधायक मंत्री बनने की जुगत में रायपुर से दिल्ली चक्कर लगा रहे हैं.
भूपेश बघेल की परेशानी यह है कि राज्य में सिर्फ 13 मंत्री ही बनाए जा सकते हैं. सीएम रेस से बाहर हो चुके दो नाम टीएस सिंहदेव, ताम्रध्वज साहू मंत्री पद की शपथ ले चुके हैं. सोमवार को मुख्यमंत्री पद के एक और दावेदार चरणदास महंथ द्वारा मंत्री पद की शपथ नहीं लेना भी एक सवाल ही है. कहा जा रहा है कि चरणदास महंथ को विधानसभा का स्पीकरर बनाया जा सकता है. ऐसे में भूपेश बघेल के लिए 11 और नामों का मंत्रिमंडल में चुनना आने वाले दिनों में एक बड़ी चुनौती साबित होने वाला है.
जानकारों का मानना है कि बघेल की असली चुनौती तो मंत्रिमंडल गठन के बाद आने वाली है. ओबीसी समुदाय से आने वाले भूपेश बघेल काफी आक्रमक माने जाते हैं. बघेल मध्य प्रदेश में दिग्विजय सिंह मंत्रिमंडल में भी मंत्री रह चुके हैं. साल 2000 में छत्तीसगढ़ राज्य बनने पर भी वह अजित जोगी सरकार में मंत्री रह चुके हैं. इस लिहाज से देखा जाए तो बघेल काफी अनुभवी हैं.
लेकिन, डेढ़ दशक बाद तीन चौथाई बहुमत से राज्य की सत्ता में वापस लौटी कांग्रेस पार्टी से छत्तीसगढ़ की जनता को काफी उम्मीदें हैं. छत्तीसगढ़ एक आदिवासी बहूल राज्य है. नक्सलवाद यहां की एक बड़ी समस्या लगातार बना हुआ है. आए दिन यहां पर नक्सली हमले होते रहते हैं. नक्सलियों के द्वारा विकास कार्यों को भी आए दिन बाधित किया जाता है. ऐसे में नई सरकार के लिए नक्सली समस्या से निपटना एक बड़ी चुनौती साबित होगी.
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विधानसभा चुनाव के समय छत्तीसगढ़ कांग्रेस ने किसानों के लिए एक घोषणापत्र जारी किया था. नई सरकार पर इस घोषणापत्र में जो बातें कही गई हैं, उनको जल्द से जल्द से लागू करने का भी दबाव रहेगा. किसानों की कर्जमाफी का मामला हो या फिर उचित मूल्य पर खाद्य और बीज वितरण की बात हो उसको जल्द से जल्द लागू करना होगा.
नई सरकार के लिए तीसरी जो सबसे बड़ी समस्या है वह है छत्तीसगढ़ की अफसरशाही पर लगाम लगाना. ऐसा माना जा रहा है कि छत्तीसगढ़ की ब्यूरोक्रेसी पिछले 15 सालों से एक ही सत्ता के इर्द-गिर्द घूमती रही है. ऐसे में इन अफसरशाहों में सत्ता पक्ष के ही कुछ नेताओं के अगल-बगल घूमने की आदत पड़ गई है. कुछ पत्रकारों का भी मानना है कि छत्तीसगढ़ की ब्यूरोक्रेसी सिर्फ कागज पर ही मजबूत नजर आती है पर अंदर से बिल्कुल खोखली है.
नए सीएम भूपेश बघेल के लिए जो सबसे बड़ी चुनौती है वह है कांग्रेस की अंदरुनी गुटबाजी पर लगाम लगाने की. छत्तीसगढ़ कांग्रेस का लंबा इतिहास रहा है कि यहां पर कांग्रेस पार्टी के अंदर गुटबाजी के कारण विपक्षी पार्टियों ने खूब फायदा उठाया है. कुछ राजनीतिक विश्लेषकों का तो यहां तक मानना है कि रमन सिंह का 15 साल तक सीएम बने रहना भी कांग्रेस पार्टी की अंदरूनी गुटबाजी का ही नतीजा था.
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छत्तीसगढ़ की राजनीति के जानकार वरिष्ठ पत्रकार अनंत मित्तल फ़र्स्टपोस्ट हिंदी से बात करते हुए कहते हैं, 'भूपेश बघेल को कई मोर्चे पर चुनौती आनी वाली है. आर्थिक मोर्चे से लेकर कांग्रेस के अंदरूनी मोर्चे पर बघेल को निपटना होगा. 2500 रुपए क्विंटल धान की खरीद मूल्य देने का वादा और किसानों की ऋण माफी के वायदा को अगर अमल में लाया गया तो आने वाले दिनों में राज्य का खजाना खाली होने वाला है. ऐसे में आर्थिक मोर्चों पर सरकार कैसे संभल पाएगी यह एक बड़ा सवाल है? साथ ही राज्य में आदिवासियों की 36 प्रतिशत आबादी है और इस दफे 29 अदिवासी विधायक चुन कर भी आए हैं. ऐसे में इन 29 विधायकों को साधना भी बघेल के लिए बड़ी चुनौती साबित हो सकती है.अगर बघेल अफसरशाही से निपट भी लें तो सीएम पद के तीन-तीन दावेदारों से कैसे निपटेंगे?
कुलमिलाकर छत्तीसगढ़ के नए सीएम भूपेश बघेल के सामने चुनौतियों का पहाड़ खड़ा है. ऐसे में अब दिग्विजय सिंह और अजित जोगी के मंत्रिमंडल में काम करने का पुराना अनुभव बघेल के काम आ सकता है. फिलहाल तो कांग्रेस आलाकमान का भी आशीर्वाद प्राप्त है, लेकिन यह कांग्रेस पार्टी के पुराने इतिहास को देखते हुए कब तक रहेगा, यह कहना थोड़ी जल्दबाजी होगी.
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