मध्यप्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने पिछले साल दिसंबर में प्रदेश में हार के बाद अपने कार्यकर्ताओं को संबोधित करते हुए कहा था, ‘चिंता करने की कोई बात नहीं, टाइगर अभी जिंदा है.’ बॉलीवुड के स्टार सलमान खान की मूवी की तर्ज पर शिवराज सिंह चौहान का यह फिल्मी डायलॉग खूब चर्चा में रहा. उनके बयान का मतलब यही निकाला गया कि कम अंतर से कांग्रेस से पिछड़ जाने के बाद अभी वो अपने कार्यकर्ताओं के बीच यह संदेश देना चाहते हैं कि पार्टी में उनकी पकड़ कम नहीं है, सत्ता से बेदखल हुए तो क्या फिर से वापसी की संभावना से इनकार नहीं किया जा सकता.
शिवराज ने मध्यप्रदेश में ही रहने और और वहीं मरने की बात भी की थी. उन्होंने कहा था, ‘मैं मध्यप्रदेश में ही रहूंगा और यहीं पर मरूंगा.’ अपने इन बयानों से मध्यप्रदेश की सत्ता हाथ से फिसल जाने के बाद भी वे अपनी प्रासंगिकता को प्रदेश के भीतर बनाए रखना चाहते हैं. बेशक पार्टी में प्रदेश के भीतर आज भी उनकी लोकप्रियता और कद के मुकाबले कोई दूसरा नेता नहीं है. लेकिन, लगता है कि अब ‘जिंदा टाइगर’ को मध्यप्रदेश की राजनीति से उठाकर केंद्र की राजनीति में लाने का पार्टी ने फैसला कर लिया है.
शिवराज विदिशा से लड़ सकते हैं लोकसभा चुनाव
शिवराज सिंह चौहान को पार्टी ने राष्ट्रीय उपाध्यक्ष बनाकर केंद्रीय टीम में शामिल कर लिया है. लेकिन, शिवराज सिंह चौहान की बातों से लग रहा है कि वो दिल्ली आने के बजाए प्रदेश की राजनीति में ही ज्यादा खुश और संतुष्ट हैं. शिवराज सिंह चौहान मौजूदा वक्त में सीहोर जिले की परंपरागत बुधनी सीट से विधायक हैं. पार्टी सूत्रों के मुताबिक, अगले लोकसभा चुनाव में इन्हें पार्टी की तरफ से मैदान में उतारा जा सकता है. अपनी परंपरागत सीट रही विदिशा से शिवराज लोकसभा चुनाव में पार्टी के उम्मीदवार हो सकते हैं. विदिशा की मौजूदा सांसद सुषमा स्वराज ने पहले ही लोकसभा चुनाव नहीं लड़ने का ऐलान कर दिया है.
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मध्यप्रदेश में पार्टी ने गोपाल भार्गव को विधानसभा में नेता प्रतिपक्ष बनाकर नए नेतृत्व को सामने लाने की कोशिश भी शुरू कर दी है. भार्गव 1985 से लगातार आठ बार विधायक रहे हैं. लेकिन, अब जबकि प्रदेश में सरकार नहीं है तो विपक्ष में रहने के बजाए केंद्रीय टीम में शिवराज को लाना उन्हें प्रदेश की राजनीति से अलग रखने के संकेत के तौर पर देखा जा रहा है. राज्य के मुख्यमंत्री रहने के पहले भी शिवराज सिंह चौहान बीजेपी के महासचिव पद पर तैनात थे.
शिवराज सिंह चौहान के अलावा छत्तीसगढ़ के पूर्व मुख्यमंत्री रमन सिंह और राजस्थान की पूर्व मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे को भी पार्टी का राष्ट्रीय उपाध्यक्ष बनाया गया है.
गौरतलब है कि पिछले साल की आखिर में हुए विधानसभा चुनाव में तीनों ही राज्यों में बीजेपी की हार हुई थी. लेकिन, ये तीनों ही नेता मौजूदा वक्त में अपने-अपने राज्यों से विधायक हैं. ऐसे में अपने-अपने राज्यों की विधानसभा में इनकी सक्रियता देखी जा सकेगी. लेकिन, पार्टी ने इन्हें राष्ट्रीय स्तर पर संगठन में लाकर प्रदेश के भीतर इनकी सक्रियता को कम करने का संकेत दिया है.
नेता प्रतिपक्ष के लिए भी रमन सिंह दरकिनार
शिवराज के बाद बात रमन सिंह की करें तो रमन सिंह छत्तीसगढ़ की राजनांदगांव सीट से विधायक हैं. लेकिन, उन्हें भी लोकसभा चुनाव लड़ने के लिए कहा जा सकता है. मौजूदा वक्त में उनके बेटे अभिषेक सिंह गृह जिले राजनांदगांव से ही सांसद हैं. लेकिन, इस बार पार्टी आलाकमान रमन सिंह को लोकसभा चुनाव लड़ने के लिए कह सकता है.
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छत्तीसगढ़ में रमन सिंह और ब्रजमोहन अग्रवाल जैसे नेताओं को दरकिनार कर धर्मपाल कौशिक को विधानसभा में नेता प्रतिपक्ष की जिम्मेदारी सौंपी गई है. कौशिक छत्तीगढ़ बीजेपी अध्यक्ष भी हैं. इसके पहले वो छत्तीसगढ़ के विधानसभा अध्यक्ष भी रह चुके हैं. अब राज्य में रमन सिंह के 15 साल के शासन का अंत होने के बाद पार्टी चाहती है कि उनकी जगह नए चेहरे को राज्य में सामने लाकर लोकसभा चुनाव से पहले संभावित नुकसान से बचा जा सके.
वसुंधरा की राज्य में मनमानी रोकने की कोशिश
चुनाव परिणाम आने के एक महीने बाद भी राजस्थान में नेता प्रतिपक्ष का चुनाव नहीं हो पाया है. लेकिन, पार्टी ने वसुंधरा राजे के बजाए किसी और को यह जिम्मेदारी देने के संकेत दे दिए हैं. उन्हें राष्ट्रीय उपाध्यक्ष बनाकर उनकी जगह किसी दूसरे विधायक को यह जिम्मेदारी दी जा सकती है. संभव है कि राजस्थान में लोकसभा चुनाव से पहले पार्टी आलाकमान अपनी पसंद का प्रदेश अध्यक्ष भी बना दे. यानी पार्टी आलाकमान लोकसभा चुनाव में वसुंधरा की बजाए कमान अपने हाथों में लेने की पूरी तैयारी में है.
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सूत्रों के मुताबिक, वसुंधरा राजे को लोकसभा चुनाव के लिए मैदान में उतारा जा सकता है. राजस्थान की झालावड़ सीट से वसुंधरा राजे के बेटे दुष्यंत सिंह सांसद हैं, ऐसे में पार्टी आलाकमान की तरफ से बेटे की जगह वसुंधरा राजे को लोकसभा चुनाव में टिकट दिया जा सकता है या फिर हो सकता है कि उन्हें धौलपुर से भी पार्टी की तरफ से लोकसभा चुनाव में उम्मीदवार बनाया जाए.
विधानसभा चुनाव से पहले प्रदेश अध्यक्ष पद को लेकर पार्टी के भीतर बहुत खींचतान देखने को मिली थी. उस वक्त वसुंधरा राजे ने पार्टी आलाकमान की बातों को दरकिनार कर दिया था. लेकिन, अब चुनाव हारने के बाद शायद इस बार राजे अपनी मनमानी नहीं कर सकेंगी.
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