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मुलायम सिंह यादव के अपराध-प्रेम की अंतहीन कहानी

समाजवादी पार्टी ने पत्नी की हत्या के आरोपी अमनमणि त्रिपाठी को भी टिकट दिया है

Updated On: Dec 28, 2016 08:49 PM IST

Krishna Kant

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मुलायम सिंह यादव के अपराध-प्रेम की अंतहीन कहानी

पार्टी के प्रत्याशियों की सूची जारी करके मुलायम सिंह यादव ने यह संकेत दे दिया है कि उनका अपराधी प्रेम जारी रहेगा. मुलायम सिंह ने जिन 325 उम्मीदवारों की सूची जारी की उनमें बाहुबलियों का खासा ख्याल रखा गया है. सूबे के बाहुबली अमरमणि त्रिपाठी के बेटे अमनमणि त्रिपाठी को भी पार्टी ने विधानसभा का टिकट दिया है.

इस लिस्ट के जारी होने के बाद यह तो तय है कि समाजवादी पार्टी को आपराधिक छवि वाले नेताओं, बाहुबलियों और दागियों से न कोई परहेज था, न आगे होने जा रहा है. अखिलेश यादव अपनी उस कोशिश में कामयाब नहीं हो सकेंगे जिसके तहत वे अपनी साफ-सुथरी बनाना चाहते हैं.

मुख्यमंत्री की कमान संभालने के बाद अखिलेश यादव ने पश्चिमी यूपी के बाहुबली नेता डीपी यादव को पार्टी से बाहर का रास्ता दिखा दिया था. कुख्यात नीतीश कटारा हत्याकांड में डीपी यादव का बेटा राकेश यादव को आजीवन कारावास की सजा काट रहा है.

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अमनमणि त्रिपाठी

अमनमणि त्रिपाठी का भी मामला डीपी यादव परिवार जैसा है. अमनमणि के पिता व पूर्व विधायक अमरमणि त्रिपाठी फिलहाल कवयित्री मधुमिता शुक्ला हत्याकांड मामले में पत्नी के साथ आजीवन कारावास की सजा काट रहे हैं. अमनमणि पर भी अपनी पत्नी की हत्या का आरोप है. फिलहाल वे जेल में हैं.

अमनमणि ने लखनऊ की रहने वाली 27 वर्षीय सारा से जुलाई 2013 में प्रेम विवाह किया था. अमनमणि और सारा 9 जुलाई, 2015 को कार से दिल्ली आ रहे थे. फिरोजाबाद में नेशनल हाइवे पर उनकी कार का एक्सीडेंट हुआ और सारा की मौत हो गई. अमनमणि को खरोंच तक नहीं आई.

सारा के परिवार वालों ने अमनमणि पर ही हत्या का अरोप लगाया. अमनमणि को पत्नी सारा की हत्या के आरोप में हाल ही में सीबीआई ने गिरफ्तार किया है. इसके पहले उन्हें एक अन्य मामले में गिरफ्तार किया गया था. बीते पांच दिसंबर को उन्हें सीबीआई अदालत में पेश किया गया था.

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सारा की मां सीमा सिंह

सारा की मां सीमा सिंह ने मुख्यमंत्री अखिलेश से गुहार लगाई है कि अमनमणि को टिकट न दिया जाए और उन्हें फांसी की सजा मिले.

कुछ समय पहले सपा ने कुछ उम्मीदवारों की घोषणा की थी. अमनमणि का नाम उस लिस्ट में थे. लेकिन सारा की मां की गुहार के बाद माना जा रहा था कि उनका नाम उम्मीदवारों की सूची से हट सकता है.

दो दिन पहले जब मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने अपनी तरफ से पार्टी को उम्मीदवारों की सूची भेजी तो उसमें अमनमणि का नाम नहीं था. लेकिन नई सूची बता रही है कि उन्हें नौतनवां सीट से टिकट मिल गया है.

यूं तो सभी पार्टियां बाहुबलियों पर इनायतें बरसातीं हैं. लेकिन यूपी की राजनीति में ज्यादातर बाहुबली या दागी नेता ऐसे हैं जो स्वीकृत हैं. इलाके में दबंगई करके, हत्या, अपहरण, उगाही आदि करवाने वाले लोगों के लिए उत्तर प्रदेश में नेता बनने की गारंटी है. लेकिन मुलायम को ऐसे लोगों से भी परहेज नहीं हैं जिनपर सीधा हत्या का आरोप हो.

अमनमणि बाहुबलियों की दबंग छवि वाले नेता नहीं हैं. उन पर अपनी ही पत्नी की हत्या का आरोप है. अमनमणि उस क्षेत्र से भी ताल्लुक रखते हैं जो उत्तर प्रदेश की राजनीति के अपराधीकरण की प्रयोग शाला रही है.

उत्तर प्रदेश की राजनीति के अपराधीकरण की शुरुआत हुई गोरखपुर से, जिसके अगुवा बने हरिशंकर तिवारी. हरिशंकर तिवारी की एक जमाने में पूर्वांचल की राजनीति में तूती बोलती थी. उस क्षेत्र में रेलवे और पीडब्लूडी के जितने ठेके जारी होते थे, वे सब हरिशंकर को मिलते थे. इन ठेकों को उठाने की हिम्मत किसी में नहीं थी क्योंकि हरिशंकर तिवारी ठेके हासिल करने के लिए किसी भी हद तक जा सकते थे.

हरिशंकर तिवारी ने दबंगई और अपराध का सहारा लेकर ठेके हासिल किए और अपना विशाल साम्राज्य खड़ा कर लिया. पूर्वांचल में वे चुनाव जीतने की गारंटी रहे हैं. उनका इतना दबदबा था कि भारतीय राजनीति में जेल में रहकर चुनाव जीतने वाले पहले नेता हैं. हरिशंकर तिवारी मुलायम सिंह, कल्याण सिंह और मायावती तीनों की सरकारों में शामिल रह चुके हैं.

गोरखपुर का दूसरा नाम है वीरेंद्र प्रताप शाही का. उनकी 1996 में एक जानलेवा हमले में हत्या कर दी गई थी. साथ में उनका सरकारी गनर भी मारा गया था. गोरखपुर की राजनीति के दो ध्रुव थे, एक हरिशंकर तिवारी तो दूसरी तरफ वीरेंद्र प्रताप शाही. उनकी हत्या का आरोप जिस पर लगा, वे हैं बिहार के बाहुबली राजेंद्र उर्फ राजन तिवारी.

शाही को मारने वाला व्यक्ति था श्रीप्रकाश शुक्ला. एक समय उत्तर प्रदेश की राजनीति में उसकी गहरी पैठ थी. श्रीप्रकाश का सपना था कि उसे हरिशंकर तिवारी और वीरेंद्र शाही दोनों की जगह कब्जानी है. उसे भी बाद में एक मुठभेड़ में मारा गया. श्रीप्रकाश शुक्ला को मारने के लिए ही उत्तर प्रदेश में पहली बार एसटीएफ का गठन हुआ था.

अमरमणि त्रिपाठी भी इस इलाके के नेता हैं जो पत्नी समेत कारावास की सजा काट रहे हैं. मुलायम सिंह को इस सिलसिले में एक नया नाम जोड़ने का श्रेय दिया जाना चाहिए कि उन्होंने एक ऐसे नेता के बेटे को टिकट दिया जो खुद पत्नी के साथ प्रेमिका की हत्या के अपराध में जेल में है और बेटा पत्नी की हत्या के आरोप में.

मुलायम सिंह के इस कदम से यह साफ है कि उत्तर प्रदेश की राजनीति को अपराध और गैंगेस्टर के चंगुल से निकलने में अभी वक्त लगेगा.

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