पूर्वोत्तर के राज्यों में बढ़त के बाद हिंदी भाषी राज्यों में भारतीय जनता पार्टी की करारी हार ने कई विरोधियों को ये कहने का साहस दे दिया है कि अब केंद्र में बीजेपी के शासन के अंत की शुरुआत हो चुकी है. तीन राज्यों में हुई हार के पहले ही गोरखपुर और फूलपुर लोकसभा उपचुनावों में बीजेपी की अपमानजनक हार के बाद से ही ऐसी भविष्यवाणियों का आगाज हो गया था.
तब दबे-दबे लफ्जों में कांग्रेस, तृणमूल कांग्रेस, समाजवादी पार्टी और कई अन्य दल अगले लोकसभा चुनावों में भगवा पार्टी की हार का दावा ठोकने लगे थे. यहां तक कि बीजेपी की लंबे समय से सहयोगी रही शिवसेना ने अपने मुखपत्र सामना में कहा था कि 2019 में लोकसभा चुनावों में बीजेपी को 100-110 सीटें कम मिलेंगी. 2014 में बीजेपी ने 282 सीट जीती थीं.
हिंदी भाषी राज्यों में बीजेपी के जनाधार में हुई है कमी
हालांकि अब आगामी आम चुनावों में ज्यादा समय शेष नहीं है. लेकिन हाल ही में आए चुनावों के नतीजों ने बीजेपी को बैकफुट पर ला दिया है. 2014 में मोदी लहर पर सवार होकर, बीजेपी ने हिंदी भाषी और पश्चिमी राज्यों में 237 सीटों पर जीत हासिल की थी. पार्टी ने दक्षिणी और पूर्वी भारत में 26 और पूर्वोत्तर और जम्मू और कश्मीर में 11 सीटों पर जीत दर्ज की थी.
बीजेपी नेता स्वीकार करते हैं कि हिंदी बेल्ट, खासकर यूपी, बिहार, मध्य प्रदेश, राजस्थान और गुजरात में अपने 2014 के प्रदर्शन को दोहराना खासा मुश्किल होगा. यहां तक कि अन्य हिंदी भाषी राज्यों जैसे कि बिहार, झारखंड, दिल्ली और हरियाणा में भी पार्टी की स्थिति बेहतर नहीं है. गोरखपुर और फूलपुर उपचुनावों के लिए बहुजन समाज पार्टी के साथ समाजवादी पार्टी के गठबंधन ने बीजेपी की चिंता और बढ़ा दी.
मुस्लिम, यादव और ओबीसी आए साथ तो बिगड़ जाएगा बीजेपी का खेल
2014 में एसपी और बीएसपी के बीच मुस्लिम वोटों का विभाजन हुआ था. अगर 18 प्रतिशत मुस्लिम, 12 प्रतिशत यादव और 22 प्रतिशत ओबीसी एसपी-बीएसपी गठबंधन के साथ आते हैं. तो बीजेपी के लिए काफी मुश्किल खड़ी हो सकती हैं. यूपी ही नहीं, मध्य प्रदेश में भी बीजेपी को कांग्रेस और एसपी-बीएसपी की तरफ से टक्कर दी जा रही है. खासकर राज्य के गोंडवाना और बुंदेलखंड क्षेत्रों में. मध्य प्रदेश के गोंडवाना और बुंदेलखंड क्षेत्रों में बीएसपी की मजबूत पकड़ है, जबकि एसपी का भी कई सीटों पर अच्छा प्रभाव है.
राजस्थान में, बीएसपी का दलितों के बीच एक मजबूत आधार है. और पहले से ही राज्य में बीजेपी के खिलाफ एंटी-इनकंबेंसी से महागठबंधन के पक्ष में माहौल बन रहा है. लेकिन ऐसा बिलकुल नहीं है कि बीजेपी ने सब कुछ खो दिया है. बीजेपी का सबसे मजबूत हथियार हैं प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी. जिनके राजनीतिक कौशल को उनके विरोधी भी स्वीकार करते हैं. उनकी रणनीति और चुनावी दौरे अन्य पार्टियों का खेल भी बिगाड़ सकती हैं.
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