यूपी की जनता ने चुनाव के नतीजों में विरोधियों को मटियामेट कर दिया है. मोदी लहर में बीजेपी 300 का आंकड़ा पार करती दिख रही है. 90 के दशक में पार्टी जब अपने चरम पर थी तो भी उसे यहां इतनी कामयाबी नहीं मिली थी जितनी अब मिल रही है.
बिना किसी चेहरे के चुनाव में उतरी बीजेपी को इकलौते मोदी का सहारा था. इसलिए सबके निशाने पर मोदी ही थे. किसी ने उन्हें रावण कहा, तो किसी ने राक्षस. हद तो तब हो गई जब 'यूपी के लड़के' और उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने उन्हें इशारों-इशारों में ‘गुजरात का गधा’ तक कह डाला.
अखिलेश ने अपने प्रचार में मालूम नहीं कि किसके कहने पर यह बयान दिया. लेकिन अब इसी गधे ने अपनी ताकत दिखा दी. गधे की दुलत्ती ‘यूपी के लड़के’ को बड़ा भारी पड़ी है. जनादेश में समाजवादी पार्टी और कांग्रेस गठबंधन की बुरी हार हुई है.
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अति आत्मविश्वास और घमंड ने हराया
प्रचार के दौरान अखिलेश जोर-शोर से ‘काम बोलता है’ का नारा देते थे. लखनऊ मेट्रो, लखनऊ-आगरा एक्सप्रेस, बुजुर्गों को पेंशन का हवाला देकर विकास का दावा करते थे. लखनऊ और दूसरे बड़े शहरों समेत प्रदेश के राजमार्गों के किनारे बड़े-बड़े फ्लैक्स और होर्डिंग लगवाकर अपने विकास का डंका पीटा लेकिन ये सब फुस्स साबित हुआ. यूपी के 14 करोड़ वोटरों ने अखिलेश के घमंड की हवा निकाल दी. अखिलेश को मोदी और बीजेपी से ज्यादा उनके अति आत्मविश्वास और घमंड ने हराया है.
वैसे तो बीते हर चुनाव को प्रचार की भाषा के लिहाज से बुरा कहा जाता है. लेकिन इस बार का चुनाव वाकई प्रचार की सीमा के निम्नतम स्तर को छू गया था. अखिलेश यादव का गुजरात के गधे का प्रचार वाला बयान ये ही दर्शाता है.
एक मुख्यमंत्री के मुंह से देश के प्रधानमंत्री के लिए ऐसे शब्द निकलना कहां तक सही है.
अखिलेश ने सिर्फ नरेंद्र मोदी की ही तुलना ‘गधा’ से नहीं की बल्कि उन्होंने गुजरात की 6 करोड़ जनता की भी उस जानवर से तुलना कर अपमानित किया. अखिलेश को ये बोलते वक्त नहीं भूलना चाहिए था कि गुजरात की धरती पर ही देश और दुनिया को शांति का पाठ पढ़ाने वाले महात्मा गांधी का जन्म हुआ था. अखिलेश ये भूल गए थे कि आजाद भारत को एक सूत्र में बांधकर रखने वाले सरदार वल्लभ भाई पटेल भी गुजरात में ही पैदा हुए थे. अखिलेश का बयान कहीं न कहीं इन महापुरुषों को भी अपमानित करने वाला था.
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बड़बोलापन पसंद नहीं आया
वोटरों को अखिलेश का बड़बोलापन पसंद नहीं आया, इसके विपरीत मोदी अपने भाषणों में हमलावर होते हुए भी संयम बरतते थे. उन्होंने तीखे और कटाक्ष से भरा बयान तो दिया लेकिन विरोधियों के लिए अपमानजनक बोल नहीं बोले.
जिस तरह जीत का कोई एक कारण नहीं होता उसी तरह हार के लिए कोई एक कारण जिम्मेदार नहीं होता. अखिलेश ने पांच साल में बहुत सारी गलतियां की हैं जिनमें से सबसे आखिरी गलती उन्हें जनता के चुने एक प्रधानमंत्री की तुलना 'गधे' से बोलकर की है.
यूपी की जनता ने फिर से बीजेपी से ज्यादा मोदी पर अपना भरोसा जताया है. मोदी को ये देखना होगा कि जनता का ये विश्वास टूटे नहीं जिससे 2019 और 2022 के चुनावी समर में जब वो फिर देश के सबसे बड़े सूबे की खाक छानें तो तो मतदाता उनकी झोली में वोट का आशीर्वाद दें.
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