उत्तर प्रदेश में सियासत में उबाल है. लोकसभा चुनाव करीब है. राजनीति के कई धुरंधर हाशिए पर हैं. जिसकी वजह से राजनीतिक दलों के भीतर वजूद बचाने के लिए लड़ाई चरम पर है. समाजवादी पार्टी (एसपी) के संस्थापक सदस्य शिवपाल यादव ने नई पार्टी बना ली है. अखिलेश यादव से नाराज नेता इस पार्टी से जुड़ रहें हैं. अब बारी कुंडा के विधायक और पूर्व राजा रघुराज प्रताप सिंह की है. कुंडा नरेश अपनी नई पार्टी का ऐलान 30 नवंबर को करने वाले हैं.
पार्टी बनाने का सबब
सियासत में पहली बार कुंडा के राजा दलीय राजनीति में उतर रहे हैं. बीजेपी से लेकर एसपी के करीबी रहे हैं लेकिन पार्टी में कभी शामिल नहीं हुए. एसपी से गोपालजी जरूर चुनाव लड़ते रहे और सांसद बने. रघुराज प्रताप सिंह के समर्थकों को प्रतापगढ़ और कौशांबी से टिकट मिलता रहा है. लेकिन अब राजनीतिक हालात बदल रहे हैं. राज्यसभा चुनाव में एसपी-बीएसपी के उम्मीदवार के खिलाफ वोट देने से अखिलेश यादव से तल्खी बढ़ गई है. जिससे उन्हें नई राजनीतिक राह तलाश करनी पड़ रही है. बीएसपी में रघुराज प्रताप सिंह के लिए जगह नहीं है. जबकि सत्ताधारी बीजेपी की राजनीति में तरजीह मिलने की संभावना कम है.
राजा भइया की राजनीति तो चलती रहने की संभावना है. लेकिन उनके समर्थकों में बेचैनी है. सवाल यह उठ रहा है कि 2019 के लोकसभा चुनाव में उनको किस पार्टी से टिकट दिलाएंगे. एसपी में दाल गलनी नहीं है. बीएसपी से उनकी अदावत जग-जाहिर है. ऐसे में अपनी पार्टी बनाकर समर्थकों को एडजस्ट करने की योजना है. प्रतापगढ़ से बीजेपी की सहयोगी अपना दल का सासंद है. कौशांबी बीजेपी के कब्जे में है. इसके अलावा प्रदेश के कई जगह उनके समर्थक हैं. जिनको सेट करने की मजबूरी है.
ठाकुर राजनीति में दखल
रघुराज प्रताप सिंह की ठाकुर राजनीति में पैठ पहले थी. मगर अब हालात बदल गए हैं. बीजेपी के मुख्यमंत्री खुद राजपूत जाति से हैं. जिससे राजपूत ज्यादातर बीजेपी के साथ है. मुख्यमंत्री पर अति ठाकुरवादी होने के आरोप लग रहे हैं. बीजेपी में योगी आदित्यनाथ के अलावा राजनाथ सिंह भी इस बिरादरी से ताल्लुक रखते हैं. गोरखनाथ पीठ का भी इस बिरादरी पर प्रभाव है.
प्रतापगढ़ में रघुराज प्रताप सिंह के मजबूत विरोधी ठाकुर ही हैं. पूर्व रियासत कालांकाकर की राजकुमारी रत्ना सिंह और पूर्व सासंद सीएन सिंह. पूर्व सासंद सीएन सिंह एसपी के महत्वपूर्ण नेता थे लेकिन रघुराज प्रताप सिंह की एसपी से करीबी के कारण वो हाशिए पर चले गए. रत्ना सिंह कांग्रेस में है. पूर्व विदेश मंत्री दिनेश प्रताप सिंह के घर से ताल्लुक है.
राजपूत का सियासी दखल प्रदेश में काफी प्रभावी है. हर इलाके में छोटी-मोटी पूर्व रियासतें हैं जिनका असर उस इलाके में हैं. जहां तक वोट का सवाल है 5 से 8 फीसदी तक वोट राजपूत समुदाय का है, जो ब्राह्मण से कम है. लेकिन यूपी में बीजेपी का फोकस राजपूत पर ज्यादा है. बीजेपी ने 2017 के विधानसभा चुनाव में उन्हें टिकट भी ज्यादा दिया था. योगी मंत्रिमंडल में 6 मंत्री ठाकुर हैं.
बीजेपी का गेमप्लान?
रघुराज प्रताप सिंह राजनीति के माहिर खिलाड़ी हैं. वो समझ रहे हैं कि बीजेपी से पंगा लेना अभी मुफीद नहीं है. ऐसे में एसपी-बीएसपी से नाराज लोगों को लामबंद कर सकते हैं. बाद में बीजेपी के साथ कोई समीकरण बना सकते हैं. चाहे सीक्रेट तरीके से या सार्वजनिक तौर पर बीजेपी के साथ जा सकते हैं. दूसरे इलाहाबाद (अब प्रयागराज)-जौनपुर के इलाके में ऐसे उम्मीदवार उतार सकते हैं जिससे बीजेपी को फायदा हो सकता है. बीजेपी के एक मौजूदा राजपूत सांसद का कहना है कि ठाकुर वोट पर इस पार्टी का प्रभाव नहीं रहेगा, क्योंकि राजपूत मुख्यमंत्री को अपने नेता के तौर पर देख रहा है.
बीजेपी की पूरी कार्ययोजना महागठबंधन की काट के लिए चल रही है. बीजेपी की निगाह हर सीट पर है. इस हिसाब से बिसात बिछाने की तैयारी चल रही है. हालांकि फूलपुर उपचुनाव में अतीक अहमद के लड़ने के बाद भी एसपी के उम्मीदवार को कामयाबी मिली थी. यही हाल कैराना और गोरखपुर में भी रहा.
राजनीति में सिल्वर जुबली
राजा भइया की 30 नंवबर को राजनीति में सिल्वर जुबली है. रघुराज प्रताप सिंह इसी दिन राजनीति में 25 साल पूरे कर रहें हैं. राजा भइया का सत्ता से बेहद करीब का वास्ता रहा है. मायावती को छोड़कर लगभग हर सरकार में वो मंत्री बनते रहे हैं. वर्ष 1991 से 2007 तक यूपी में किसी भी राजनीतिक दल को बहुमत नहीं मिला था. जिसकी वजह से प्रदेश में जोड़-तोड़ की सरकार चलती रही. जिसमें छोटे दलों और निर्दलीय विधायकों की अहमियत बढ़ गयी थी. राजा भइया कल्याण सिंह, राम प्रकाश गुप्त, मुलायम सिंह और अखिलेश यादव के मंत्रिमंडल में शामिल रहे हैं. रघुराज प्रताप सिंह 1993 से लगातार विधायक हैं. भदरी इस्टेट के इस पूर्व राजा की धमक लखनऊ में हमेशा सुनाई देती रही है.
मायावती से अदावत
राजा भइया राजनीति में पर्दापण से ही अपनी दबंग छवि की वजह से जाने जाते रहें हैं. मायावती के समर्थन वापसी के बाद 1997 में कल्याण सिंह की सरकार बचाने में उनका अहम योगदान रहा था. जिसकी वजह से मंत्रिमंडल में उन्हें जगह दी गई थी लेकिन 2002 में तत्कालीन मायावती सरकार ने रघुराज प्रताप सिंह, उदय प्रताप सिंह और गोपालजी पर पोटा लगा दिया. जिसकी वजह से उन्हें जेल जाना पड़ा था. मायावती ने भदरी रियासत पर पुलिसिया कार्रवाई की थी, जिसके बाद मुलायम सिंह ने राजनीति में उन्हें सहारा दिया था.
विवाद और राजा भइया
अखिलेश यादव की सरकार में मंत्री रहते हुए डीएसपी जिआउल हक की हत्या हो गई थी. जिसमें राजा भइया पर आरोप लगे. दबाव के कारण उन्हें मंत्री पद से इस्तीफा देना पड़ा. बाद में सीबीआई से क्लीनचिट मिल गई. इस तरह 2002 में पूर्व विधायक पूरन सिंह बुंदेला ने भी अपहरण की कोशिश करने का इल्ज़ाम लगाया था. जिसके बाद मायावती ने पोटा के तहत कार्रवाई की थी.
पहले कांग्रेसी परिवार
भदरी के राजा बंजरग बहादुर सिंह के कांग्रेस से अच्छे ताल्लुकात थे. हिमाचल प्रदेश के गवर्नर भी बने लेकिन राजा भइया के पिता उदय प्रताप सिंह की विश्व हिंदू परिषद (वीएचपी) से नजदीकी थी जिससे खानदान के कांग्रेस से रिश्ते खराब हो गए. लेकिन जो नाम रघुराज प्रताप सिंह ने बनाया उससे भदरी रियासत है. हालांकि इसके कई कारण हैं जिसमें उनकी दबंगई मुख्य वजह है.
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