संघ परिवार और बीजेपी ने अपने जन्म से लेकर अब तक जिस मुस्लिम वोट-बैंक और तुष्टीकरण का ढोल पीटा है, वो ढोल भी 2017 की मोदी-लहर में फट गया!
अबकी बार बीजेपी को उन मुसलमानों ने भी खूब वोट दिया है जिनसे भगवा खानदान को सबसे अधिक नफरत और शिकायत रही है. उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव के इस सबसे दिलचस्प पहलू का सहारनपुर जिले की देवबंद विधानसभा सीट पर दिखाई दिया. वहां के नतीजे को लेकर सियासी गलियारों में भारी गहमागहमी है.
इसकी सबसे दिलचस्प वजह ये है कि देवबंद एक ऐसा विधानसभा क्षेत्र है जहां मुसलमान 79 प्रतिशत हैं. वहां से बीजेपी के उम्मीदवार ब्रजेश ने चुनाव जीता है वो भी 29400 वोटों के भारी अंतर से. ब्रजेश को 1,02,244 वोट मिले, वहीं बीएसपी के माजिद अली (72,844) दूसरे और एसपी के माविया अली (55,385) तीसरे स्थान पर रहे. इन तीनों के अलावा जिन पांच उम्मीदवारों की जमानत जब्त हुई उनमें तीन हिंदू और दो मुसलमान हैं. इन पांचों को कुल 3035 वोट मिले, जबकि 798 वोट NOTA के खाते में गए.
इस तरह 2017 में देवबंद के कुल 2,34,306 लोगों अर्थात 66.5% ने मतदान किया. 2012 के विधानसभा चुनाव में यहां 67.02% प्रतिशत मतदान हुआ था. मतदाताओं के लिहाज से देखें तो 2012 में देवबंद विधानसभा क्षेत्र में 2,92,273 वोटर थे, वहीं 2017 में इनकी तादाद 3,52,340 हो गई.
चुनाव आयोग के इन आंकड़ों पर बहुत बारीकी से गौर कीजिए क्योंकि इन्हीं में देवबंद की कहानी छिपी हुई है. 2011 की जनगणना के मुताबिक, देवबंद की आबादी में मुसलमान 71%, हिंदू 28%, ईसाई 0.25%, सिख 0.22%, जैन 0.44% और बौद्ध 0.01% थे. देवबन्द के मतदाताओं में करीब 2,50,161 मुसलमान हैं और 1,02,179 गैर-मुस्लिम.
आंकड़े कहते हैं कहानी
66.5% मतदान के हिसाब से देवबंद के तकरीबन 1,66,357 मुसलमानों और 67,949 गैर-मुस्लिमों ने ही अपने मताधिकार का इस्तेमाल किया. इन दोनों संख्याओं का योग वही 2,34,306 है, जो चुनाव आयोग का भी अधिकृत आंकड़ा है.
अब जरा बीजेपी के सफल उम्मीदवार ब्रजेश को मिले 1,02,244 वोटों की तुलना कुल गैर-मुस्लिम वोटों यानी 1,02,179 से करें तो आप पाएंगे कि…
(1) यदि सारे के सारे गैर-मुस्लिम वोट बीजेपी को मिले तो भी उसे कम से कम 65 मुसलमानों के वोट तो मिले ही हैं!
(2) यदि सारे गैर-मुसलिम वोट सिर्फ़ बीजेपी को ही मिले तो मुसलमानों के 1,66,357 का बंटवारा बीएसपी के माजिद अली (72,844) और एसपी के माविया अली (55,385) के बीच हुआ होगा.
(3) साफ है कि मुसलमानों का वोट एसपी और बीएस के बीच बुरी तरह से बंट गया. वैसे ऐसा हो नहीं सकता कि एसपी और बीएसपी को खासी तादाद में गैर-मुस्लिम वोट नहीं मिले होंगे. ये कितने होंगे? ये बता पाना तो किसी के लिए भी संभव नहीं है, लेकिन सहज तर्क इतना बताता ही है कि इन दोनों को जितने भी वोट गैर-मुस्लिमों के मिले होंगे, उतने और मुसलमानों के वोट बीजेपी के खाते में गए होंगे.
(4) बाकी बचे 3767 वोट यदि मुसलमानों के नहीं रहे होंगे तो भी इसमें से जितने गैर-मुस्लिम रहे होंगे उतने ही मुस्लिमों के वोट बीजेपी के खाते में और गए होंगे.
(5) देवबंद के बारे में अगला रोचक तथ्य ये भी है कि इस मुसलिम बहुल निर्वाचन क्षेत्र में हुए पिछले सभी चुनावों में से अधिकतर बार हिंदू उम्मीदवार ही जीते हैं. 2014 के लोकसभा चुनाव में यहां बीजेपी को पहली बार कामयाबी मिली और उसके उम्मीदवार राघव लखनपाल सांसद बने. तब वहां 75.4% का रिकॉर्ड मतदान हुआ था. राघव ने कांग्रेस के इमरान मसूद को 65 हजार मतों से हराया था.
(6) फरवरी 2016 में देवबंद सीट पर हुए उपचुनाव को जीतकर कांग्रेस के माविया अली विधायक बने थे लेकिन इस बार माविया यहां साइकिल के निशान पर लड़े थे. ये उपचुनाव इसी सीट से 2012 में विजयी रहे समाजवादी पार्टी के उम्मीदवार राजेन्द्र सिंह राणा के निधन की वजह से हुआ था.
साफ है कि जो लोग इस मुगालते में हैं कि देवबंद के मुसलमानों ने बीजेपी को वोट नहीं दिया है, वो गलत हैं. इसमें कोई शक नहीं कि मुस्लिम वोट-बैंक में बीजेपी ने सफलतापूर्वक सेंध लगा दी है.
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