आज के जमाने में पश्चिमी यूपी में माथे पर तिलक मोटरसाइकिल पर बंधा कांग्रेस का झंडा ध्यान न खींचे ऐसा हो ही नहीं सकता.
वरना तो पश्चिमी यूपी में कहीं जाइए सपा, बसपा, भाजपा के अलावा हद बेहद लोक दल की बात होती है. ऐसे में कांग्रेस! खैर बातचीत के क्रम में आगे पता लगा कि वो ब्राह्मण हैं, कांग्रेस के पुराने कार्यकर्ता भी. गुर्जर बहुल उनके गांव में ज्यादातर लोग भाजपा समर्थक हैं. बस कुछ उनकी तरह के ब्राह्मण हैं जो अब भी कांग्रेस के साथ नाता बचाए बैठे हैं.
हमने उनसे सीधा सा सवाल किया कि कांग्रेस का अखिलेश यादव से गठबंधन होने से इस चुनाव में कांग्रेस को फायदा होगा? उनका कहना था कि फायदा तो होगा, लेकिन लंबे समय में कांग्रेस के लिए नुकसानदेह रहेगा.
ऐसा क्यों?
हम उम्मीद कर रहे थे कि वो ये कहेंगे, अब उत्तर प्रदेश में कांग्रेस दोयम दर्जे की पार्टी हो गयी जो अब बैसाखी खोजने लगी है. लेकिन उनके अनुसार कांग्रेस एक धर्मनिरपेक्ष पार्टी है और सपा (मुलायम-अखिलेश) की सरकार का रवैया मुस्लिमों को खुश करने वाला रहा है . ऐसे में उनसे गठबंधन भविष्य के लिए ठीक नहीं होगा.
उनके जवाब में पश्चिमी उत्तर प्रदेश के मुजफ्फरनगर और उसके आस-पास के जिलों के राजनीतिक माहौल के तरफ भी एक इशारा था.
किसको वोट, किसका साथ
मुजफ्फरनगर से सटे मेरठ जिले के एक ठाकुर बहुल गांव में लोगों का साफ कहना था कि वे अपने भाजपा विधायक के कामकाज से खुश नहीं है पर सपा सरकार उनको भी ‘मुस्लिमपरस्त’ लगती है.
एक ठाकुर साहब ने उदाहरण देते हुए कहा ‘आज किसी घटना में चार हिंदू और चार मुसलमान मर जाएं तो मुसलमान को सरकार की तरफ से 15-15 लाख रुपए मिलेंगें लेकिन हिंदुओं को कोई पूछेगा भी नहीं.’
एक अन्य गुर्जर बहुल गांव में भी भाजपा के पक्ष में लोगों की मंशा साफ दिखती है. उसी जगह गुर्जर समुदाय के कुछ लोगो का कहना था, 'हमारा तो पूरा गांव ही बीजेपी को वोट देगा.'
पूछने पर उन्होंने बताया कि ‘सपा की सरकार तो सिर्फ मुसलमानों के लिए काम करती है. बसपा ने भी मुस्लिमों को ही सबसे ज्यादा टिकट बांटे हैं. सपा और बसपा मुस्लिमों को टिकट देकर सारे ऊंची जगह मुस्लिमों को दे रही हैं. हिंदुओं के लिए तो बीजेपी ही ठीक पार्टी है.’
दंगों का असर अभी भी
पश्चिमी उत्तर प्रदेश के मेरठ, मुजफ्फरनगर, सहारनपुर आदि जिलों में लोगों से बातचीत करने से यही झलका कि 2013 के मुजफ्फरनगर दंगे का दंश अभी भी उनके दिलोदिमाग में है. इस दंगे की वजह से हिंदुओं और मुस्लिमों के बीच 2014 के चुनावों में ध्रुवीकरण भी हुआ था, जिसके कारण बीजेपी को अप्रत्याशित सफलता मिली थी.
इस इलाके के 44 विधान सभा क्षेत्रो में 2012 में बसपा नें 17, सपा ने 10, भाजपा ने 9, कांग्रेस और रालोद गठबंधन ने 8 सीटें जीती थीं. 2014 लोक सभा चुनाव में भाजपा नें 44 में से 42 विधान सभा क्षेत्रो और सभी लोक सभा क्षेत्रो में जीत हासिल की.
2014 चुनाव में दो और और समीकरण टूटे.
बनते-बिगड़े समीकरण
पहला, पश्चिमी उत्तर प्रदेश में जाट-मुस्लिम समीकरण जिसकी वजह से अजित सिंह के राष्ट्रीय लोक दल को कुछ सीटें मिल जाती थी. लेकिन ध्रुवीकरण के चलते 2014 में इस इलाके से रालोद का सफाया हो गया. दूसरा, दलितों नें बसपा को छोड़ एक अच्छी खासी संख्या में भाजपा को वोट डाला.
जब लोगों के बीच धार्मिक कटुता उतनी कम नहीं हुई है और न ही प्रधानमंत्री मोदी के खिलाफ कोई बहुत बड़ा मोहभंग हुआ है, तो इस परिस्थिति में क्या 2017 का चुनाव 2014 के चुनाव से अलग होगा?
वैसे तो हर चुनाव अपने आप में एक अलग समीकरण या मुद्दों के साथ लड़ा जाता है. ऐसा नहीं कि समीकरण ज्यों के त्यों हैं. पश्चिमी उतर प्रदेश में एक बड़ा बदलाव ये दिख रहा है कि दलित वोटरों का रुझान फिर से बसपा की तरफ हुआ है.
पुरकाजी विधान सभा के एक जाटव मोहल्ले में लोगों ने इस बार बसपा को फिर से वोट देने का मन बनाया है क्योंकि ये ‘बिरादरी की पार्टी है’. दलितों का बसपा के प्रति झुकाव सिर्फ बिरादरी का ही मामला नहीं है. सरधना विधान सभा के एक जाटव गांव में हमें बताया गया कि जब बहनजी की सरकार होती है तो उनकी बात पुलिस और सरकारी अफसरशाही सुनती है.
ऐसा नहीं है कि सभी ऐसा होने से खुश है. जिस मुस्लिम समुदाय को बसपा ने अभी तक का सबसे ज्यादा टिकट दिया है, उसी समुदाय के कुछ लोगों की बहनजी की शासन के बारे में कुछ अलग राय है.
सरधना विधानसभा के ही एक पशु मेले में एक मुस्लिम युवा ने बताया कि ‘मायावती कानून तो अच्छा चलाती है लेकिन उनके राज में दलित लोग किसी पर भी हरिजन एक्ट लगवा देते है.’ यह जवाब शायद दिखाता है कि मायावती का ‘दलित+मुस्लिम’ का सपना पूरा होना आसान नहीं है.
हालांकि मायावती की उम्मीदें निराधार भी नहीं है क्योंकि समाजवादी पार्टी की अंदरुनी उठापटक ने मुस्लिम समुदाय को कशमकश में डाल दिया है.
किस ओर जाएगा मुस्लिम वोटर
मेरठ जिले के एक मुसलिम बहुल गांव में आमराय यह थी कि मुलायम सिंह बड़े और पुराने नेता है जो अपने गुट से भी किसी मजबूत उम्मीदवार को टिकट देंगे. इस परिस्थिति में मुस्लिमों के समक्ष कठिन सवाल खड़ा हो जाएगा और “मुसलमान बसपा को सपोर्ट करेंगे, क्योंकि बसपा को दलितों का एकमुश्त वोट मिलेगा और भाजपा को हराया जा सकेगा.'
पश्चिमी उत्तर प्रदेश में इस तरह के विभिन्न समीकरणों को देखते हुए इसके चुनाव परिणामों की भविष्यवाणी सिर्फ अंकगणित के माध्यम से ही नहीं समझी जा सकती. इस क्षेत्र के अंदर पनप रही राजनीतिक बहस अंतिम समय में चुनाव का रुख किसी भी ओर मोड़ सकती है.
(आशीष रंजन और भानु जोशी सेंटर फॉर पालिसी रिसर्च (CPR) दिल्ली से जुड़े हैं)
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