उत्तर प्रदेश में मुसलमान ऐसी पहेली हैं, जिसे हर राजनीतिक दल समझना चाहता है और सुलझाना चाहता है, खास तौर से चुनाव के वक्त.
तमाम सवाल उठते हैं. उनके जवाब तलाशे जाते हैं. मसलन, मुसलमान किस पार्टी को वोट देंगे? वो किस उम्मीदवार का समर्थन करेंगे? वो किसके इशारे पर चलेंगे? क्या मुसलमान एकमुश्त वोट देंगे या फिर अपने-अपने हिसाब से अलग-अलग वोट देंगे? क्या मुसलमान किसी फुसलावे में आएंगे? क्या वो स्थानीय मुल्लाओं के इशारे पर वोट देंगे? मुसलमान वोटरों को लेकर ऐसे ही सवाल दर सवाल खड़े होते हैं. मगर किसी भी सवाल का तसल्लीबख्श जवाब नहीं मिलता.
जो पार्टियां ये दावा करती हैं कि उन्होंने मुसलमान मतदाताओं की पहेली को समझ लिया है, उसे सुलझा लिया है, वो या तो सरासर झूठ बोलते हैं. या फिर वो सच्चाई से कोसों दूर होते हैं. उन्हें ये समझ नहीं होती कि वो क्या बात कर रहे हैं. उनकी बातों का भारतीय राजनीति के पेंच-ओ-खम से दूर-दूर का वास्ता नहीं होता.
इस बार संकेत साफ हैं
हालांकि इस साल यूपी के मुसलमान साफ तौर पर ये संदेश दे रहे हैं कि वो एक समुदाय के तौर पर उसी को वोट देंगे, जिसके बारे में उन्हें ये यकीन है कि वो बीजेपी को हरा सकता है. इस बार के विधानसभा चुनाव में मुसलसमानों का वोट समाजवादी पार्टी और कांग्रेस के गठजोड़ के लिए है.
आजमगढ़ से लेकर गोरखपुर और जौनपुर तक के मुसलमान अखिलेश यादव और राहुल गांधी के गठबंधन के समर्थन में बोल रहे हैं.
आजमगढ़ के एक मुस्लिम प्रोफेसर कहते हैं कि, 'हमें पता है कि किसी एक पार्टी के लिए बीजेपी को हराना बेहद मुश्किल है. इसीलिए हमने तय किया है कि हम समाजवादी पार्टी और कांग्रेस के गठबंधन को वोट देंगे, क्योंकि वो बीजेपी से लड़ पाने की बेहतर स्थिति में हैं'.
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यूपी में मुस्लिम वोटरों की अच्छी खासी तादाद है. वो कई सीटों पर उम्मीदवारों को जिताने और हराने का दम रखते हैं. ऐसे में उनका समाजवादी पार्टी-कांग्रेस गठबंधन के समर्थन का फैसला क्या गुल खिलाएगा, ये इस बार के चुनाव के नतीजे और 2019 के लोकसभा चुनाव के नतीजों से पता चलेगा.
बीजेपी के खिलाफ बिहार के सबक
बिहार में बीजेपी से लड़ने के लिए लालू और नीतीश ने पुरानी दुश्मनी भुलाकर हाथ मिलाया और दोनों ने मिलकर बीजेपी को शिकस्त दी.
यूपी के मुसलमानों ने बिहार के इस तजुर्बे से सबक लिया है और यूपी में भी समाजवादी पार्टी और कांग्रेस के गठजोड़ के साथ वैसा ही तजुर्बा दोहराने की कोशिश कर रहे हैं. अब अगर मुस्लिम समुदाय 2019 के आम चुनाव में भी इसी रणनीति पर अमल करता है, तो हम देश की राजनीति में कई नए समीकरण बनते देखेंगे.
आम मुस्लिम किसी अनजान से बात करने और अपनी पसंद जाहिर करने से बचते हैं. लेकिन इस बार मुस्लिम मतदाता खुलकर ये कह रहे हैं कि हिंदूवादी पार्टी यानी बीजेपी से राजनीतिक जंग में जीत के लिए पार्टियों का गठबंधन ही कारगर साबित होगा.
आजमगढ़ से गोरखपुर जाने वाले रास्ते में टोपियां पहनने वाले तमाम लोगों ने ये बात कही. उन लोगों ने कहा कि मायावती के पास राजनैतिक ताकत है. उनके कुछ उम्मीदवार भी अच्छे हैं. लेकिन मौजूदा हालात में समाजवादी पार्टी और कांग्रेस का गठबंधन ही बेहतर विकल्प है. इस रास्ते में पड़ने वाली एक मस्जिद में जमा मुसलमानों ने एक सुर से कहा कि वो गठबंधन के लिए वोट करेंगे.
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मस्जिद में मौजूद मुसलमानों ने एक सुर से कहा कि, 'मायावती ने हमेशा हमारी सुरक्षा की है. हमारे लिए काम किया है. लेकिन जिस तरह लालू और नीतीश ने मिलकर बिहार में बीजेपी को हराया, वैसे ही हमें अखिलेश और राहुल गांधी से उम्मीद है कि वो मिलकर यूपी में बीजेपी को हराने में कामयाब होंगे'.
मुसलमानों का सताता है मोदी का डर?
बनारस से आजमगढ़ की सड़क की हालत बेहद खस्ता है. इसकी हालत देखकर साफ लगता है कि बनारस के विकास का जो लंबा चौड़ा ख्वाब पीएम मोदी ने दिखाया था, वो आज भी हकीकत से कोसों दूर है. बल्कि उस दिशा में एक कदम भी नहीं बढ़ा है.
लोगों को पता है कि कुछ चुनावी वादे कभी नहीं पूरे किए जाते. शायद यही वजह है कि इस इलाके में पीएम मोदी की लोकप्रियता में रत्ती भर भी फर्क नहीं आया है.
लोगों को लगता है कि 2019 में भी नरेंद्र मोदी जीत हासिल करने में कामयाब होगे और पांच साल सरकार चलाएंगे. इसी डर से मुसलमान उस गठबंधन के हक में लामबंद हो रहे हैं जिसके बारे में उन्हें लगता है कि वो बीजेपी को हरा सकेगा. उन्हें लगता है कि 2017 के इलेक्शन में हार से 2019 के लोकसभा चुनाव में बीजेपी की जीत की उम्मीद को झटका लगेगा.
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