उत्तर प्रदेश में समाजवादी पार्टी में जो भी घटित हुआ है उसके कारण केवल राजनीतिक हैं, ऐसी बात गले से नीचे नहीं उतरती. वजह ये है कि चुनाव के एकदम पहले जब तक कोई बहुत ही बड़ा कारण नहीं हो, तब तक कोई अनुभवी राजनेता और वो भी मुलायम सिंह जैसा नेता आनन-फानन में ऐसा फैसला कैसे ले सकता है जिससे पार्टी के दो फाड़ होने का रास्ता खुल जाए.
अगर हम देखें तो इस झगड़े के पीछे जो कारण बताए जाते हैं वो इतने बड़े नहीं है कि केवल उन कारणों के आधार पर पार्टी को दांव पर लगा दिया जाए.
अमर सिंह को पार्टी में वापस लाने का विरोध
अखिलेश को अमर सिंह की वापसी पसंद नहीं थी. मुख्तार अंसारी के कौमी एकता दल के एसपी में विलय की बात भी अखिलेश को नामंजूर थी. कुछ ऐसे मंत्री थे जिनके काम से अखिलेश नाखुश थे और जिन पर तमाम किस्म के आरोप थे और अखिलेश उनको हटाना चाहते थे. शिवपाल इन मंत्रियों को सरकार में बनाए रखना चाहते थे.
टिकटों को लेकर विवाद था. कुछ लोगों को अखिलेश टिकट देना चाहते थे पर शिवपाल उनके खिलाफ थे. कुछ लोगों को शिवपाल टिकट देना चाहते थे जिनका अखिलेश विरोध कर रहे थे. पर चुनाव के पहले टिकटों के बंटवारे को लेकर इस तरह के मतभेदों का पार्टियों में उभरना कोई नई बात नहीं है. तो इस तरह के मामूली से मुद्दे पर पार्टी के टूटने की नौबत क्यों आ गई.
जब चुनाव नजदीक हों तो कुछ मंत्रियों को लेकर इतने गहरे मतभेद उभरें कि पार्टी टूटने की नौबत आ जाए, ये भी बड़ा अजीब लगता है. इस पूरे मामले में मुलायम सिंह यादव ने शिवपाल यादव और अखिलेश यादव के बीच में सुलह-सफाई करने की कोई बड़ी कोशिश की हो, ऐसा भी नहीं लगता.
तो सवाल यही है कि अगर राजनीतिक विवाद थे तो भी वो इतने बड़े विवाद नहीं थे कि सुलझाए नहीं जा सकें. तो आखिर क्या रहस्य है कि ऐसे मुद्दों पर पार्टी के टूटने की नौबत आ गई जो बहुत बड़े नहीं थे.
विवाद का कारण क्या था?
अमर सिंह एक वक्त में समाजवादी पार्टी में बड़े प्रभावशाली नेता थे फिर अचानक वो निकाल दिए गए. कुछ बरस बाद उनकी वापसी हुई वो भी अखिलेश और आजम खां के विरोध के बावजूद. इस वापसी की वजह क्या थी अब तक किसी को नहीं मालूम.
शिवपाल यादव 2012 में अखिलेश को मुख्यमंत्री बनाए जाने के पक्ष में नहीं थे. वो चाहते थे कि मुलायम ही मुख्यमंत्री बनें और अगर बनाना ही है तो अखिलेश को ज्यादा से ज्यादा उप मुख्यमंत्री बना दें. उस समय भी पार्टी में बड़ा ड्रामा हुआ था. बड़े ऊहापोह और सस्पेंस के बाद ही अखिलेश को मुख्यमंत्री बनाने का एलान हुआ था.
तब से लेकर अब तक अखिलेश और शिवपाल के बीच में एक ठंडा सा रिश्ता किसी तरह से निभाया जा रहा था. वजह यही थी कि अखिलेश मुलायम का साथ नहीं छोड़ सकते थे और शिवपाल तो खैर मुलायम का साथ कभी छोड़ ही नहीं सकते.
अब मुलायम सिंह ने भी यह साफ तौर पर बता दिया कि बेटे के बजाए वो शिवपाल और अमर सिंह को ही तरजीह देंगे. ये थोड़ा अटपटा नहीं लगता?
मुलायम सिंह हमेशा ये कहते रहे कि पार्टी खड़ी करने में शिवपाल यादव की बड़ी भूमिका है
एक बेटे ने ऐसी कौन सी बड़ी गलती की थी जिसकी वजह से उसे घर निकाला दे दिया जाए. आखिर क्यों मुलायम बेटे को छोड़ कर शिवपाल को चुनते हैं?.
शिवपाल ने पार्टी बनाने में साथ दिया है ?
मुलायम कहते हैं ‘शिवपाल ने पार्टी बनाने में उनका बड़ा साथ दिया है साइकिल पर गांव-गांव घूमे हैं, अखिलेश ने क्या किया है. अखिलेश को तो सत्ता विरासत में मिली है.’
लेकिन फिर वही सवाल उठता है कि अगर चचा-भतीजे में झगड़ा था तो इसे सुलझाने की वैसी कोशिश मुलायम ने क्यों नहीं की?
जाहिर है कि मुलायम सिंह के लिए शिवपाल का महत्व कहीं ज्यादा है लेकिन ये थोड़ा अजीब लगता है कि शिवपाल ने पार्टी के लिए बड़ा काम किया.
पार्टी के लिए तो रामगोपाल ने भी बहुत काम किया. पार्टी में कुछ और भी नेता है जिन्होंने बहुत काम किया. तो शिवपाल का मुलायम के ऊपर जो दबदबा है उसके कुछ ऐसे कारण जरूर होंगे जो हममें से किसी को पता नहीं.
अब मुलायम सिंह ने समाजवादी पार्टी को लेकर इतना बड़ा जोखिम उठाया है. मुलायम जानते हैं कि अखिलेश की छवि इधर बहुत निखरी है और कोई दूसरा आदमी इस समय पार्टी का चेहरा हो ही नहीं सकता. खुद मुलायम भी नहीं हो सकते.
समाजवादी पार्टी के वोटरों की निगाह में आज अखिलेश का कद मुलायम से कहीं ज्यादा बड़ा है. अगर पार्टी दो फाड़ होती है तो यह तो तय है कि दोनों गुटों को बहुत नुकसान होगा. लेकिन मुलायम के गुट को ज्यादा नुकसान होगा. मुलायम वोटरों के बीच किस बात की मार्केटिंग करेंगे.
वो फिल्मी डायलॉग है न 'तुम्हारे पास क्या है?'
अखिलेश कहेंगे मेरे पास विकास है पर मुलायम के पास बताने को क्या होगा! अमर सिंह और शिवपाल?
क्या वो अपने बेटे के पांच साल के काम की आलोचना करेंगे? क्या वो अखिलेश से बड़ा कोई विकास का मॉडल दे पाएंगे?
क्या अमर और शिवपाल के चेहरे पर मुलायम को इतने वोट मिल सकेंगे?
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