उत्तर प्रदेश के विधानसभा चुनाव भारतीय जनता पार्टी के लिए 2019 के लोकसभा चुनाव के संदर्भ में जीवन-मरण का सवाल बन गया है.
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और बीजेपी अध्यक्ष अमित शाह लगातार यह कहते रहे हैं कि उत्तर प्रदेश सहित अन्य चार राज्यों में हो रहे विधानसभा चुनावों में बीजेपी विकास के मुद्दे पर ही चुनाव लड़ेगी.
जैसे-जैसे उत्तर प्रदेश में पहले चरण के मतदान की तारीख नजदीक आ रही है, बीजेपी ने अपने प्रचार अभियान में रामबाण औषधि के तौर पर हिंदुत्व का तड़का लगाना शुरु कर दिया है.
बीजेपी के वरिष्ठ नेता अयोध्या में राम मंदिर के निर्माण के सवाल पर यह कहते रहे हैं कि यह चुनावी मुद्दा नहीं है, यह हमारी आस्था का सवाल है.
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उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव के लिए जारी किए गए घोषणा-पत्र में बीजेपी ने यह वादा किया है कि यदि उसे बहुमत मिला तो वह अयोध्या में भव्य राम मंदिर बनाने का प्रयास करेगी.
इसका सीधा अर्थ यह है कि बीजेपी राम मंदिर मुद्दे का चुनावी दोहन करना चाहती है. चुनाव घोषणा-पत्र में गौहत्या और कैराना में हिंदुओं के पलायन का भी प्रमुखता से जिक्र किया गया है.
बीजेपी अध्यक्ष अमित शाह ने अपने ताजा इंटरव्यू में कहा कि हमारी सरकार संवैधानिक मर्यादा का ख्याल रखते हुए मंदिर निर्माण के लिए कटिबद्ध है.
उनका कहना है कि उत्तर प्रदेश की विशेष स्थिति है, जहां वोट बैंक और तुष्टिकरण की राजनीति हुई है.
अमित शाह ने गौहत्या के संदर्भ में ‘गौहत्या’ की बजाय ‘पशुधन’ शब्द का इस्तेमाल कर राजनीतिक चतुराई का परिचय दिया है. यह शब्द ‘डिजीधन’ जैसा ही है.
हिंदू मतों का ध्रुवीकरण
पश्चिमी उत्तर प्रदेश में हिंदुओं के कथित पलायन के मुद्दे को भी बीजेपी प्रमुखता के साथ उठा रही है. इस संदर्भ में चौंकानेवाली बात यह है कि अमित शाह पार्टी द्वारा गठित एंटी-रोमियो स्क्वॅायड को साम्प्रदायिक नहीं मानते हैं.
सवाल उठता है कि क्या समाज के किसी भी समुदाय को कानून अपने हाथ में लेने का अधिकार है?
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समाजवादी पार्टी विकास की आड़ में धर्म व जातिगत आधार पर समर्थन जुटाने की कोशिश कर रही है, उसी तरह बीजेपी ने भी विकास की आड़ में हिंदू वोटों के ध्रुवीकरण पर काम शुरु कर दिया है.
दुखद तथ्य यह है कि पाकिस्तान के खिलाफ हुई सर्जिकल स्ट्राइक को भी बीजेपी हिंदू वोट पाने का जरिया बना रही है. सेना को इस तरह राजनीति का औजार बनाना देश के रक्षा हितों के खिलाफ है.
बीजेपी की इन कोशिशों का अर्थ यह है कि उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव में नरेंद्र मोदी का विकास का मुद्दा पूरी तरह फ्लॉप होता नजर आ रहा है.
कुछ माह पूर्व अमित शाह ने दलितों को बीजेपी के साथ जोड़ने का विशेष अभियान चलाया था जो सफल नहीं हो पाया.
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समाजवादी पार्टी व कांग्रेस के बीच गठबंधन बनने के बाद बीजेपी ने अपनी चुनावी रणनीति में अचानक बदलाव किया है.
बीजेपी को लगा कि एसपी-कांग्रेस गठबंधन बनने के बाद मुस्लिम मतों का तीन तरफा विभाजन संभव नहीं होगा और मुस्लिम मतदाता एकजुट होकर इस गठबंधन के पक्ष में वोट देंगे. उत्तर प्रदेश में बीजेपी की चुनाव रणनीति का मुख्य आधार मुस्लिम मतों का विभाजन ही था.
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बदले हुए राजनीतिक परिदृश्य में अब बीजेपी की चुनावी रणनीति का मुख्य आधार यह है कि मुस्लिम मतों के संभावित ध्रुवीकरण के खिलाफ हिंदू मतों का ध्रुवीकरण करने का प्रयास किया जाए.
इसी ध्रुवीकरण की राजनीति के माध्यम से अतीत में बीजेपी को उत्तर प्रदेश में सरकार बनाने का अवसर मिला है. उत्तर प्रदेश बीजेपी के हिंदुत्व की राजनीति की प्रयोगशाला रहा है. इस वजह से यह मानना नादानी होगी कि हिंदुत्व बीजेपी के एजेंडे से गायब हो जाएगा.
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