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यूपी उपचुनाव: गिरकर संभलने की अदा अभी सीख नहीं पाया विपक्ष

बीजेपी की 2014 में यूपी में जीत विपक्षी वोट के बंटवारे की वजह से मुमकिन हुई थी. SP और BSP का वोट अगर एक होता, तो बीजेपी यहां चमत्कार नहीं कर पाती

Updated On: Feb 22, 2018 08:27 AM IST

Dilip C Mandal Dilip C Mandal
लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं.

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यूपी उपचुनाव: गिरकर संभलने की अदा अभी सीख नहीं पाया विपक्ष

लोकसभा चुनाव से पहले विपक्ष के लिए अपनी एकता दिखाने का यह बड़ा मौका था. यूपी में 13 मार्च को गोरखपुर और फूलपुर लोकसभा सीट के लिए उपचुनाव हो रहे हैं. यूपी के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ और उप-मुख्यमंत्री केशव प्रसाद मौर्य के इस्तीफे से ये सीटें खाली हुई हैं.

इन चुनावों के नतीजों से लोकसभा के सत्ता समीकरण पर कोई असर नहीं पड़ने वाला है. न ही, ये कोई निर्णायक चुनाव या सेमीफाइनल जैसी कोई चीज है. इस उपचुनाव के बाद कर्नाटक, मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़ और राजस्थान में विधानसभा चुनाव होने हैं. लोकसभा चुनाव से पहले राजनीति की शक्ल इन चुनावों से काफी हद तक तय होगी.

लोकसभा चुनावों में मिली जीत बरकरार रख पाएगी बीजेपी?

इस मायने में देखा जाए तो कोई यह कह सकता है कि गोरखपुर और फूलपुर में जीत और हार से राजनीति पर खास असर नहीं पड़ेगा, लेकिन ये उपचुनाव दो तरीके से महत्वपूर्ण है. एक, इससे देश के सबसे बड़े राज्य उत्तर प्रदेश के मतदाताओं के मूड का पता चलेगा. यह महत्वपूर्ण है क्योंकि यूपी में 80 लोकसभा सीटें हैं. बीजेपी को 2014 में इनमें से 71 सीटें मिली थीं.

सहयोगी अपना दल की जीती हुई दो सीटों को जोड़ दें तो एनडीए का आंकड़ा यहां 73 पर था. लोकसभा में वर्तमान सरकार को जो बहुमत हासिल है, वह काफी हद तक यूपी से ही आया है. इसलिए यूपी में क्या हो रहा है, इसका न सिर्फ राष्ट्रीय, बल्कि कई अर्थों में निर्णायक महत्व है.

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इस उपचुनाव का दूसरा महत्व यह है कि इसमें गैर-बीजेपी दलों के आंतरिक समीकरणों का पता चलेगा. बीजेपी की 2014 में यूपी में जीत विपक्षी वोट के बंटवारे की वजह से मुमकिन हुई थी. यहां विपक्ष का मतलब गैर-बीजेपी दल हैं. SP और BSP का वोट अगर एक होता, तो बीजेपी यहां चमत्कार नहीं कर पाती. हालांकि यह स्थिति 2014 में ही बनी. वरना लगभग डेढ़ दशक से यूपी में सत्ता और विपक्ष की जगह पर कभी समाजवादी पार्टी तो कभी बहुजन समाज होती थी, लेकिन 2014 में बीजेपी यूपी में नंबर एक पार्टी बन गई.

SP दूसरे और BSP तीसरे नंबर पर खिसक गई. कांग्रेस चौथे नंबर की पार्टी बन गई. 2017 के विधानसभा चुनाव में SP और कांग्रेस में गठबंधन हुआ, लेकिन हालात नहीं बदले. बीजेपी अब भी नंबर एक पार्टी है. SP-कांग्रेस दूसरे नंबर पर और BSP तीसरे नंबर पर चली गई.

Akhilesh Mayawati

शरद यादव से क्यों अलग हुई समाजवादी पार्टी?

गोरखपुर और फूलपुर का उपचुनाव विपक्षी दलों के लिए नई संभावनाएं तलाशने का मौका था, जिसे गंवा दिया गया. अब स्थिति यह है कि BSP हमेशा की तरह इस बार भी उपचुनाव नहीं लड़ रही है, न ही उसने किसी को समर्थन देने की घोषणा की है. वहीं कांग्रेस और SP का विधानसभा चुनाव का गठबंधन टूट गया है और दोनों पार्टियों ने उपचुनाव के लिए प्रत्याशी उतार दिए हैं. इन चुनावों में किस पार्टी का कैसा प्रदर्शन रहेगा और कौन जितेगा-हारेगा से अलग एक बात तो तय हो गई है कि विपक्षी दलों में अभी किसी महागठबंधन के सूत्र नहीं बन पा रहे हैं. विपक्षी एकता के बिना बीजेपी को कैसे रोका जाएगा, इसका फार्मूला किसी विपक्षी दल के पास नहीं है.

बात सिर्फ चुनाव की भी नहीं है. यूपी में विपक्षी दलों के बीच कामकाजी एकता की भी कमी है. विधानसभा में उनके बीच फ्लोर कोऑर्डिनेशन का भी घोर अभाव है. वे जनता के मुद्दे भी मिलजुलकर नहीं उठाते. मिसाल के तौर पर, SP और BSP दोनों की राय है कि चुनाव वोटिंग मशीन के जरिए नहीं होने चाहिए. दोनों पेपर बैलेट से मतदान के समर्थन हैं. लेकिन वोटिंग मशीन का विरोध करने के लिए जब समाजवादी पार्टी विपक्षी दलों की बैठक बुलाती है, तो BSP उसमें नहीं आती. मुमकिन है कि BSP को ढंग से बुलाया भी न गया हो. अंदरखाने क्या हुआ, यह तो नेता बता सकते हैं, लेकिन तमाम विपक्षी दलों के एक मंच पर नजर आने का मौका गंवा दिया गया.

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विपक्षी दलों के साथ आने का एक और मौका जेडी(यू) के पूर्व सांसद शरद यादव की पहल पर देश भर में चल रहे साझा विरासत सम्मेलन थे. इस कड़ी का पहला सम्मेलन जब दिल्ली में हुआ तो कांग्रेस और वामपंथी दलों के अलावा SP और BSP भी इसमें शामिल हुई, लेकिन पहले सम्मेलन के बाद से SP ने अपने बड़े नेताओं को इस सम्मेलन में भेजना बंद कर दिया, वहीं BSP ने इस सर्वदलीय आयोजन में अपना प्रतिनिधि भेजना ही बंद कर दिया. यूपी के दो प्रमुख दलों की भागीदारी के बिना इन सम्मेलनों ने अपना अर्थ खो दिया और लोकसभा चुनाव से पहले शुरू हुई इस पहल को ग्रहण लग गया.

New Delhi: Congress Vice-President Rahul Gandhi, former PM Manmohan Singh, former JD(U) president Sharad Yadav and CPI(M) General Secretary Sitaram Yechuri attend a day-long convention 'Sajha Virasat Bachao Sammelan' in New Delhi on Thursday. PTI Photo by Kamal Kishore (PTI8_17_2017_000025B) *** Local Caption ***

यूपी में कांग्रेस की हार का मुख्य कारण क्या है?

ऐसा क्या है कि SP और BSP एकजुट नहीं हो पा रही हैं? इसकी कुछ संभावित वजहें ये हो सकती हैं.

एक, इन दो दलों के बीच पिछले दो दशक में इतनी कड़वाहट पैदा हो चुकी है कि अपने सबसे बुरे दौर में भी ये आपस में संवाद करने की स्थिति में नहीं हैं. हालांकि SP की कमान मुलायम सिंह के हाथ से खिसक कर अखिलेश यादव के पास आ चुकी हैं, लेकिन इससे कोई फर्क नहीं पड़ा. ऐसा लगता नहीं है कि दोनों दलों के नेता कोई साझा हित या कॉमन ग्राउंड तलाशना चाहते हैं.

दो, ये दोनों दल अब तक इस हकीकत को स्वीकार नहीं कर पाए हैं कि ‘एक बार हम और दूसरी बार तुम’ यानी कभी दो दलों के बीच ही कभी पक्ष तो कभी विपक्ष वाली यूपी की राजनीति 2014 में निर्णायक तौर पर बदल चुकी है. अब उनके बीच या तो या तो विपक्षी स्पेस को ज्यादा घेरने की प्रतियोगिता हो सकती है या फिर मिलकर काम करने की संभावना. अभी तक के संकेत हैं कि दोनों दल पहले विकल्प पर ही काम कर रहे हैं. यानी उनके बीच प्रतिद्वंद्विता जारी है.

तीन, इन दो दलों की राजनीति पर जांच एजेंसियां हावी हैं. दोनों दलों के कुछ बड़े नेता और पदाधिकारी आर्थिक घोटालों की जांच के दायरे में हैं. यह मुमकिन है कि दोनों दल यह जोखिम नहीं उठा पा रहे हैं कि एकजुट हो जाएं, क्योंकि ऐसे स्थिति में केंद्रीय जांच एजेंसियां अपनी सक्रियता बढ़ा सकती हैं.

चार, कांग्रेस नहीं चाहती कि यूपी की राजनीति में SP और BSP मजबूत बनी रहे. पूरे देश में कांग्रेस की जो दुर्दशा है, और 1984 के बाद आज तक लोकसभा में उसके बहुमत से दूर रहने की एक बड़ी वजह बिहार और यूपी में तीसरी धारा के राजनीतिक दलों का उभार है. यह समस्या बीजेपी की भी है. 2014 में केंद्र में अरसे बाद पूर्ण बहुमत की सरकार इसलिए बन पाई क्योंकि यूपी और बिहार में तीसरी धारा के दलों का प्रदर्शन बहुत कमजोर रहा. कांग्रेस यूपी में फिर से अपनी खोई जमीन हासिल करने की कोशिश कर रही है. इसलिए उसने तालमेल की कोई पहल नहीं की.

वजह चाहे जो भी हो, स्थिति यही है कि उपचुनाव में यूपी का विपक्ष विभाजित है. हार-जीत से परे भी, बीजेपी के लिए इससे खुशी की बात और क्या हो सकती है.

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